For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बोलते पलों का घर .....

बोलते पलों का घर .....

हमारे और तुम्हारे बीच
कितनी मौनता है
एक लम्बे अंतराल के बाद हम
एक दूसरे के सम्मुख
किसी अपराध बोध से ग्रसित
नज़रें नीची किये ऐसे खड़े हैं
जैसे किसी ताल के
दो किनारों पर
अपनी अपनी खामोशी से बंधी
दो कश्तियाँ//

कितने बेबस हैं हम
अपने अहंकार के पिघलते लावे को
रोक भी नहीं सकते//

चलो छोडो
तुम अपने तुम को बह जाने दो
मुझे भी कुछ कहने को
बह जाने दो
शायद ये खारा पानी
हमारी मौनता को स्वर दे दे
अंतर्मन की गहन कंदराओं में व्याकुल
मौन भावों को
जीवन रागिनी से झंकृत
बोलते पलों का घर दे दे//

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 413

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on January 21, 2016 at 9:07pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सृजन में निहित भावों को आपकी सहमति ने जो मान दिया है उसके लिए बंदा आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार है। आपका सुझाव स्वागतेय है। मौनता के स्थान पर मौन किया जा सकता है उससे भाव में को फर्क नहीं पड़ेगा। इस सुझाव के लिए हार्दिक आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 21, 2016 at 7:31pm

आदरणीय सरना भाई , एक मनः स्थिति का सुन्दर अभिव्यक्ति हुई है , हार्दिक बधाई ।

मुझे लगता है  मौनता की जगह मौन सी काफी है , देख लीजियेगा ।

Comment by Sushil Sarna on January 21, 2016 at 1:36pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी प्रस्तुति में निहित भावों को अपने स्नेहासक्त शब्दों से मान देने का हार्दिक आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 20, 2016 at 9:08pm

आदरणीय सुशील सरना सर, बहुत बढ़िया भावाभिव्यक्ति हुई है. हार्दिक बधाई 

Comment by Sushil Sarna on January 19, 2016 at 7:29pm

आदरणीय   TEJ VEER SINGH   जी प्रस्तुति पर मन मुदित करती आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by TEJ VEER SINGH on January 19, 2016 at 1:10pm

हार्दिक बधाई अदरणीय सुशील सर्ना जी!बेहतरीन प्रस्तुति!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
6 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
15 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
15 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service