For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्यार में .......

नहीं नहीं
मैं अभी मृत्यु को
अंगीकार नहीं करना सकता//

अभी तो प्रेम सृजन का
शृंगार अधूरा है//

वृक्ष विहीन प्रेम पंथ पर
तलवों की तपिश का
संहार अधूरा है//

पाषाण बने पलों में
किसी लहर के
तट से मिलन का
इंतज़ार अधूरा है//

अभी तो मृत्यु से पूर्व
मुझे उसके लिए जीना है
जिसने आसमान के टूटे तारे से
बंद आँखों से
संग संग जीने की
दुआ माँगी है //


जो मेरे जीने के लिए
हर पल
मेरे मृत्यु पल से लड़ी है //


भला कैसे मैं
उसके जीवन में
विरह पलों का संचार करूँ//

सच मुझे अभी तो जीना है
ताकि मैं
उसके निच्छल प्यार में
मर सकूँ//


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 338

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on February 23, 2016 at 1:31pm

आदरणीया कान्ता रॉय जी आपकी प्रतिक्रिया पर एक डायलॉग याद आ रहा है कि ''अगर सुनने वाले के दिल से वाह न निकले तो कलाकार के दिल से आह निकलती है ''  बड़ी शिद्दत से लिखी पंक्तियों पर जब प्रतिक्रिया की उदासीनता नज़र आती है तो लगता है शायद सृजन में ही खोट है। खैर इस रचना की बुतफ़रोशी को आपने दिल से सराहा , उसमें निहित भावों को आत्मीय मान दिया , सच सृजन सफल हो गया। आपके इस आत्मीय सम्मान के लिए मैं दिल की असीम गहराईयों से आपका आभार व्यक्त करता हूँ। 

Comment by kanta roy on February 23, 2016 at 10:56am
भला कैसे मैं
उसके जीवन में
विरह पलों का संचार करूँ//
सच मुझे अभी तो जीना है
ताकि मैं
उसके निच्छल प्यार में
मर सकूँ//

------उफ्फ ! कितना गहरा लिखते है आप संवेदनाओं को ! चकित हो उठती हूँ पढकर आपको । कुछ देर के लिए मानों जड़ ही हो उठती हूँ । बेहतरीन रचना है यह आपकी आदरणीय सुशील सरना जी । बधाई कबूल कीजियेगा ।
Comment by Sushil Sarna on February 17, 2016 at 1:12pm

आदरणीय  Kewal Prasad   जी प्रस्तुति में निहित भावों को आत्मीय सम्मान देने का हार्दिक आभार। 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 17, 2016 at 8:30am

आ० सरना भाई जी,  बहुत ही रहस्यपूर्ण कविता....

"नहीं नहीं 
मैं अभी मृत्यु को 
अंगीकार नहीं करना सकता//

अभी तो प्रेम सृजन का 
शृंगार अधूरा है//

वृक्ष विहीन प्रेम पंथ पर 
तलवों की तपिश का 
संहार अधूरा है//

पाषाण बने पलों में 
किसी लहर के 
तट से मिलन का 
इंतज़ार अधूरा है//

अभी तो मृत्यु से पूर्व 
मुझे उसके लिए जीना है 
जिसने आसमान के टूटे तारे से 
बंद आँखों से ......."   बधाई स्वीकार करें. सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
1 hour ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
10 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
10 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service