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अपना अधिकार रहने दो ....

अपना अधिकार रहने दो ....

व्यथित हृदय
कुछ तो रहने दो मन में
व्यथा को शब्दों के लिबास मत दो
शब्द सज संवर के आएंगे
जाने क्या क्या कह जाएंगे
अपने मौन को
शब्दों के आश्रित मत करो
सफर में शब्द भाव बदल देते हैं
जो अपनी होती है
वही बात
शब्दों के परिधान पहन
पराई हो जाती है
अपनी बात को
लोचन में पिघलने मत दो
अन्यथा व्यथा का रूप बदल जाएगा
बात का अपनापन
परायेपन की आशंका से
व्यर्थ में गीला हो जाएगा
बात अपनी पराई हो जाएगी
जा के कहीं और सो जाएगी
जग हंसाई हो जाएगी
हृदय व्यथा को व्यर्थ में
शब्दों से मत अलंकृत करो
बस अपनी व्यथा
अपने पास ही रहने दो
कुछ भी खो लो लेकिन
अपनी बात पर
अपना अधिकार रहने दो

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on February 9, 2016 at 1:12pm

आदरणीया    pratibha pande   जी प्रस्तुति आपके आत्मीय स्नेह के लिए  कृतज्ञ है। हार्दिक आभार आपका।

Comment by pratibha pande on February 8, 2016 at 10:22pm

जो अपनी होती है 
वही बात 
शब्दों के परिधान पहन 
पराई हो जाती है ......बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय सुशील जी 
 

Comment by Sushil Sarna on February 7, 2016 at 3:41pm

आदरणीया   मिथिलेश वामनकर  जी प्रस्तुति आपके आत्मीय स्नेह के लिए  कृतज्ञ है। हार्दिक आभार आपका।


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Comment by मिथिलेश वामनकर on February 6, 2016 at 11:36pm

आदरणीय सुशील सरना सर बहुत बढ़िया प्रस्तुति.... हार्दिक बधाई 

Comment by Sushil Sarna on February 6, 2016 at 6:52pm

आदरणीया  Samar kabeer   जी प्रस्तुति आपके आत्मीय स्नेह के लिए  कृतज्ञ है। हार्दिक आभार आपका।

Comment by Samar kabeer on February 6, 2016 at 2:41pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,हमेशा की तरह ये कविता भी पसन्द आई,बहुत ख़ूब वाह वाह क्या कहने,ढेरों बधाई आपको इस उत्तम रचना के लिये स्वीकार करें |

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