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Sushil Sarna's Blog (886)

मुलाकातें....

(22 22 22)

छोटी छोटी बातें
छोटी छोटी रातें

.

छोटे छोटे लम्हे
जीवन की सौगातें

.

भीगा भीगा मौसम
गुन गुन करती रातें

.

दिल में आग लगायें
रिमझिम सी बरसातें

.

तेरे मेरे सपने

दिल से दिल की बातें

.

आंसू आंसू शिकवा
आंसू आंसू बातें

.

याद रही खामोशी
भूले न मुलाकातें

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on June 1, 2016 at 1:30pm — 4 Comments

अपनी क़बा में .....

अपनी क़बा में .....

अहसासों की कभी

हदें नहीं होती

नफ़स और नफ़स के दरमियाँ

ये ज़िंदा रहते हैं

ये तुम्हारा वहम है कि

तुम मुझसे दूर हो

तुम जहां भी हो

मेरी साँसों की हद में हो

तुम कस्तूरी से

मेरी रूह में बसे हो

हर शब मैं तुम्हारी महक से लिपट

परिंदा बन जाती हूँ

तुम से मिलने की

इक अज़ीब सी ज़िद कर जाती हूँ

बंद पलकों में

तुम्हारे ख़्वाबों की दस्तक से

रूह जिस्मानी क़बा से

बाहर आ…

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Added by Sushil Sarna on May 26, 2016 at 8:14pm — 2 Comments

उदास चेहरा ...

उदास चेहरा ...

तुम आये

और मैं तुम्हें

बंद पलकों से

निहारती रही

तुम्हारी हर आहट को

मैं अपने अंदर समेटती रही

वो चुप सा

तुम्हारा उदास चेहरा

मेरी मजबूरी को कचोटता रहा

तुम्हारे हाथों के गुलाब की

इक इक पंखुड़ी

अश्कों में भीगी

मुझपर गिरती रही

मैं तुम्हारे अश्कों की आतिश में

इक शमा सी पिघलती रही

तुम ज़मीं तक

मुझपर झुकते चले गए

बेबस पुकार मुझसे टकराकर

कहीं खला में खो गयी

तुम मेरी लहद में

आ…

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Added by Sushil Sarna on May 25, 2016 at 1:49pm — 12 Comments

इक जान हो जाएगी ....

इक जान हो जाएगी ....

बड़ा अज़ीब मंज़र होगा

जब बहार आएगी

हर गुलशन

गुलों की महक से

लबरेज़ होगा

सब कुछ नया नया होगा

हर गुल में

तू मेरा अक्स ढूंढेगी

हर पंखुड़ी में कसमसाती

मैं तेरी उठान देखूँगा

कितना सुखद अहसास होगा

जब मेरी नज़रों के लम्स

तेरे जिस्म से गुफ़्तगू करेंगे

तेरा हिज़ाब

तुझसे अदावत करेगा

तेरे लबों पे

तिलभर हंसी की जुम्बिश…

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Added by Sushil Sarna on May 21, 2016 at 10:00pm — 4 Comments

इंतज़ार ....

इंतज़ार ....

ये बादे सबा

आज किसकी सदा लाई है

कुछ कम्पन्न है

कुछ नमी है

कुछ भीगी सी तन्हाई है

शायद ! अधूरे अहसासों ने

ज़हन में करवट ली है

लफ्ज़ लबों की हदों पर

तिश्नगी के अज़ाब में

डूबे नज़र आते हैं

इन साँसों की बेचैनियों में

जाने किस अजनबी का ख़ुलूस

करवटें लेता है

ये मेरी तदब्बुर में

किसके लम्स रक्स करते हैं

कोई तो नाख़ुदा होगा

जो मेरी हयात के सफ़ीने को

साहिल तक ले जाएगा

दबे पाँव आकर

मेरी…

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Added by Sushil Sarna on May 18, 2016 at 4:32pm — 16 Comments

फ़रेबी रात …

फ़रेबी  रात …

छोडिये साहिब !

ये तो बेवक्त

बेवजह ही

ज़मीं खराब करते हैं

आप अपनी अंगुली के पोर

इनसे क्यूं खराब करते हैं

ज़माने के दर्द हैं

क्योँ अपनी रातें

हमारी तन्हाई पे खराब करते हैं

ज़माने की निगाह में

ये नमकीन पानी के अलावा

कुछ भी नहीं

रात की कहानी

ये भोर में गुनगुनायेंगे

आंसू हैं,निर्बल हैं

कुछ दूर तक

आरिजों पे फिसलकर

खुद-ब-खुद ही सूख जायेंगे

हमारे दर्द हैं

हमें ही उठा लेने दीजिये…

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Added by Sushil Sarna on May 16, 2016 at 4:31pm — 6 Comments

ख्वाब-ऐ-बशर ...

ख्वाब-ऐ-बशर ...

आज फिर

किसी का चूल्हा

उदास ही

बिन जले सो गया।

आज फिर

सांझ के दामन पे

भूख लिख गया कोई।

आज फिर

पेट की आग

झूठी आशा की बर्फ से

ठंडी कर

सो गया कोई।

आज फिर

कटोरे से

सिक्कों की आवाज़

रूठी रही।

आज फिर

खारा जल

पकी दाढ़ी को

धोता रहा।

आज फिर

निराशा का कफ़न ओढ़े

बिन साँसों के

सो गया कोई।

आज फिर…

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Added by Sushil Sarna on May 12, 2016 at 2:47pm — 6 Comments

ज़िंदगी के फ्रेम में ....

ज़िंदगी के फ्रेम में ....

यादें

आज पर भारी

बीते कल की बातें

वर्तमान को अतीत करती

कुछ गहरी कुछ हल्की

धुंधलके में खोई

वो बिछुड़ी मुलाकातें

हाँ ! यही तो हैं यादें

ये भीड़ में तन्हाई का

अहसास कराती हैं

आँखों से अश्कों की

बरसात कराती हैं

सफर की हर चुभन

याद दिलाती हैं

जब भी आती हैं

ये ज़ख़्म कुरेद जाती हैं

अहसासों के शानों पर

ये कहकहे लगाती हैं

ज़हन की तारीकियों में

ये अपना घर बनाती हैं…

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Added by Sushil Sarna on May 10, 2016 at 3:54pm — 4 Comments

ये रास्ते ....

कितने थक गए हैं 

ये लम्बे तन्हा रास्ते 

सृजन और संहार की 

इनमें सदियाँ समाई हैं…

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Added by Sushil Sarna on May 7, 2016 at 7:30pm — 4 Comments

अखियाँ ढूंढें अपना गाँव ...

अखियाँ ढूंढें अपना गाँव ...

दूर दूर तक

काली सड़कें

न पीपल न छाँव

अखियाँ ढूंढें अपना गाँव

नीला अम्बर

पड़ गया काला

अब धरा पे फैला धुंआ

अखियाँ ढूंढें अपना गाँव

कंक्ट्रीट के

जंगल फैले

अब दिखता नहीं कुआं

अखियाँ ढूंढें अपना गाँव

हल-बैल का

अब युग बीता

ट्रैक्टर हुआ जवां

अखियाँ ढूंढें अपना गाँव

सांझ के खेले

ढपली मेले

खो गए जाने कहाँ

अखियाँ ढूंढें अपना…

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Added by Sushil Sarna on May 6, 2016 at 6:01pm — 6 Comments

ख़्वाबों के पैराहन से ....

ख़्वाबों के पैराहन से ....

कभी कभी ज़िंदगी

अपने फैसलों पर

खुद पशेमाँ हो जाती है

मुहब्बत के हसीं मंज़र

ग़मों की गर्द में छुप जाते हैं

थरथारते लबों पे

लफ्ज़ कसमसाते हैं

तल्खियां हर कदम राहों में

यादों के नश्तर चुभोती हैं

खबर ही नहीं होती

मौसम पलकों पे ही बदल जाते हैं

चार कदम के फासले

मीलों में बदल जाते हैं

हमदर्दियों के बोल

लावों में तब्दील हो जाते हैं

सांसें अजनबी बन जाती हैं

कोई अपना

कब चुपके से…

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Added by Sushil Sarna on May 5, 2016 at 8:27pm — 4 Comments

तन्हा सफ़र ....

तन्हा सफ़र ....

२ २ १ २ / २ १ २ २ /२ २ २ २ / २ १ २

तन्हा सफर और तेरी परछाईयाँ साथ हैं

तुमसे मिली संग मेरे तन्हाईयाँ साथ हैं !!१ !!//

अब तो हमें ज़िंदगी से नफरत सी हो ने लगी

यादें तुम्हारी और वही रुसवाईयाँ साथ हैं !!२!!//



भीगी हुई चांदनी में वो शोला सा इक बदन//

भीगे बदन की ज़हन में अँगड़ाइयाँ साथ हैं !!३!!//

लगने लगे मौसम सभी अब बेगाने से हमें

यादें वही और तेरी रुसवाईयाँ साथ हैं !!४!!//

लगने लगा है अब *हरीफ़…

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Added by Sushil Sarna on May 3, 2016 at 5:49pm — 6 Comments

जब से पिया गए परदेस ...



जब से पिया गए परदेस ...

प्रेम हीन अब

इस जीवन में

कुछ भी नहीं है शेष

जब से पिया गए परदेस//

नयन घट

सब सूख गए

बिखरे घन से केश

जब से पिया गए परदेस//

दर्पण सूना

हुआ शृंगार से

सूना हिया का देस

जब से पिया गए परदेस//

लगे दंश से

बीते मधुपल

दीप जलें अशेष

जब से पिया गए परदेस//

बिरहन का तो

हर पल सूना

रहे अश्रु न शेष

जब से पिया गए…

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Added by Sushil Sarna on May 2, 2016 at 4:54pm — 14 Comments

1. रोशनी ..../२. यकीन ....

1. रोशनी ....

क्या ज़मीं

क्या आसमां

हर तरफ

चटख़ धूप है

सहर से सांझ तक

उजालों की बारिश है

बस, तुम आ जाओ

कि मेरी तारीकियों को

रोशनी मिले //

२. यकीन ....

चटख धूप में भी

अब्र चैन नहीं लेते

आधी सी धूप में

आधी सी बारिश है

जैसे अधूरी सी ज़िंदगी की

अधूरी से ख्वाहिश है

सबा भी बेसब्र नज़र आती है

लगता है कोई रूठा पल

मिलन को बेकरार है

शायद कोई वादा

मेरी तन्हाई में

आरज़ू-ऐ-शरर बन के…

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Added by Sushil Sarna on April 28, 2016 at 2:27pm — 6 Comments

हौले हौले-(ग़ज़ल - एक प्रयास)

हौले हौले-(ग़ज़ल - एक प्रयास)

बहर -२२ २२ २२ २

हौले हौले रात चली

हौले हौले बात चली !!१!!

हौले हौले  होंठ  हिले

हौले से बरसात चली !!२!!

हौले  हौले   आँखों    में

प्यासी प्यासी रात चली !!३!!

हौले   हौले   जीत   हुई

आलिंगन की बात चली !!४!!

हौले  हौले  ख़्वाबों की

आँखों से बरसात चली !!५!!

हौले  हौले  आँखों   से

जागी जागी रात चली !!६!!

हौले  हौले  वो  महकी

जुगनू की बारात चली !!७!!



सुशील सरना…

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Added by Sushil Sarna on April 27, 2016 at 4:40pm — 15 Comments

सुधि आँगन ....

सुधि आँगन ....

याद  आये  वो   बैन   तुम्हारे

तृषित नयनों का सिंगार हुआ

संग समीर के

उलझी अलकें

स्मृति कलश से फिर

छलकी पलकें

याद  आये  वो  अधर तुम्हारे

फिर मूक पल हरसिंगार हुआ



स्मृति मेघों की

निर्मम गर्जन

देह कम्पन्न का

करती अभिनन्दन



याद आये वो स्पर्श तुम्हारे

आलिंगन क्षण अंगार हुआ



जब देह से देह की

गंध मिली

तब स्वप्निल पवन

मकरंद चली

याद आये…

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Added by Sushil Sarna on April 26, 2016 at 9:41pm — 8 Comments

ज़िंदगी के सागर से ....

ज़िंदगी के सागर से ....



मेरी आँखों के मुंडेरों पर

तुम आज भी

मेरे ख़्वाबों के

रूहे मुहब्बत का

पहला अहसास बने बैठे हो //



तुम्हारे साथ गुजरे लम्हे

मेरी तन्हाईयों के साथ

सरगोशियां करते हैं //



तमाम शब मेरा बदन

तुम्हारे लम्स की गिरफ़्त में

करवटें बदलता है //



बारिशों के मौसम में

रुख़सार पर गिरी ज़ुल्फ़ों के ख़म

अब तक किसी के इंतज़ार में उलझे

हवाओं से शिकायत करते हैं //



तुम्हारे अलम * में

गुजरता… Continue

Added by Sushil Sarna on April 22, 2016 at 10:03pm — 11 Comments

ज़िंदगी डूब जाती है ....

ज़िंदगी डूब जाती है ....

ऐ बशर !

इतना ग़रूर अच्छा नहीं

ये दौलत का सुरूर अच्छा नहीं

साया तेरे करमों का

हर कदम तेरे साथ है

कुछ दूर तक दिन है

फिर लम्बी अंधेरी रात है

रातों में साये भी रूठ जाते हैं

दिन के करम

तमाम शब सताते हैं

शब की तारीकियों में

अहम के पैराहन

जिस्म से उतर जाते हैं

ज़न्नत और दोज़ख

सब सामने आ जाते हैं

बशर ख़ाके सुपुर्द हो जाता है

लाख चाहता है

फिर लौट नहीं पाता है

फिर न कोई रहबर होता…

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Added by Sushil Sarna on April 19, 2016 at 9:48pm — 4 Comments

आईने तो आईने हैं ...

आईने तो आईने हैं ...

क्यूँ ,आखिर क्यूँ

आईनों से बात करते हो

ये करीबियां ये दूरियां

सब फ़िज़ूल हैं

कांच के टुकड़ों की तरह

टूटे हुए ज़ज़्बात

कब जुड़ पाते हैं

गर्द की आंधियां

ज़र्द पत्तों पर ही कहर ढाती हैं

बेज़ान जिस्मों पर

कब कोई तरस खाता है

बेमन से ही सही

हर कोई उसे ख़ाके सुपुर्द कर जाता है

कुछ भी तो हासिल न होगा

यूँ अपने अक्स से बात करके

हर सवाल मुंह चिढ़ाएगा

हर जवाब मुहं मोड़ जाएगा

आँखों का भीगापन…

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Added by Sushil Sarna on April 12, 2016 at 9:49pm — 2 Comments

कुछ लम्हे ....

कुछ लम्हे ....

वो कुछ लम्हे

जो हमने मिलकर

अपनी झोली फैलाकर

ख़ुदा की हर चौखट पर

सर झुकाकर

मांगे थे //

वो कुछ लम्हे

जो हमारे ज़हन में

आज तक

इक दूसरे के वास्ते

वक्ते इज़हार के इंतज़ार में

ज़िंदा हैं //

वो कुछ लम्हे

जो हम दोनों ने

दो जिस्म इक जां

हो जाने के लिए मांगे थे

अब जब वो लम्हे

हमें नसीब हुए

तुम उनसे विमुख होने का सोच रही हो

अपनी ही आरज़ुओं का

अजन्मे ही गला घोंट…

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Added by Sushil Sarna on April 12, 2016 at 2:01pm — 2 Comments

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