मापनी 22 22 22 22
पंछी को अब ठाँव नहीं है,
पीपल वाला गाँव नहीं है.
दिखते हैं कुछ पेड़ मगर,
उनके नीचे छाँव नहीं है.
लाती जो पिय का संदेशा,
कागा की वह काँव नहीं है
…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 2, 2020 at 5:19pm — 4 Comments
मापनी 2122 1212 22/112
दोस्त जो आसपास बैठे हैं,
जाने क्यों सब उदास बैठे हैं
सोचते हैं कि कोई आएगा,
ले के खाली गिलास बैठे हैं.
फिर से दरबार सज गया उनका,
लोग सब ख़ास ख़ास बैठे…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on May 5, 2020 at 8:28pm — 7 Comments
मापनी 2122 1212 22/112
गर कहो तो जनाब हो जाऊँ
तुम जो देखो वो ख़्वाब हो जाऊँ
रोज पढ़ने का गर करो वादा
प्रेम की मैं क़िताब हो जाऊँ
मुझको काँटों से डर नहीं लगता
चाहता हूँ गुलाब हो…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on May 1, 2020 at 12:30pm — 6 Comments
मापनी २१२२ २१२२ २१२२ २१२२
दूध को जो दूध और पानी को पानी लिख रहे हैं
लोग वो कम ही बचे जो हक़बयानी लिख रहे हैं
खेत में ओले पड़े हैं नष्ट सब कुछ हो चुका है
कूल है मौसम बहुत वे ऋतु सुहानी लिख रहे हैं
…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 27, 2020 at 6:59pm — 10 Comments
2122 2122 2122 2
एक ग़ज़ल मीठी सुनाकर बैठ जाऊँगा
मैं तुम्हारे दिल में आकर बैठ जाऊँगा
वक्त मुझको अपने आने का बताओ तो
राह में पलकें बिछाकर बैठ जाऊँगा
सामने सबके कहूँगा प्यार है तुझसे
ये न सोचो मैं…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 21, 2020 at 5:30pm — 4 Comments
जीवन के रिश्तों में इतने झोल नहीं होते
अपने मुँह में जो ये कड़वे बोल नहीं होते
रस्ता एक पकड़ कर यदि चलते ही जाते हम
मंजिल तक अपने पग डाँवाडोल नहीं होते
कृष्ण भक्ति में अगर नहीं डूबी होती मीरा
उसके प्याले में भी…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 18, 2020 at 9:10am — 6 Comments
2122 1122 1122 22
नींद आँखों से मेरी कोई चुराने वाला
आ गया फिर से नए ख्वाब दिखाने वाला
उन दुकानों पे मिलेंगे तुम्हें झंडे-डंडे
पास अपने तो है ये काम किराने वाला
जान लेने के लिए लोग खड़े लाइन…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on September 13, 2019 at 8:44pm — 10 Comments
आप आये अब गले हमको लगाने के लिए
जब न आँखों में बचे आँसू बहाने के लिए
छाँव जब से कम हुई पीपल अकेला हो गया
अब न जाता पास कोई सिर छुपाने के लिए
तितलियाँ उड़ती रहीं करते रहे गुंजन भ्रमर
पुष्प में मकरंद जब तक था लुभाने…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 19, 2019 at 9:26am — 4 Comments
मापनी २१२*4
चाहते हम नहीं थे मगर हो गए
प्यार में जून की दोपहर हो गए
हर कहानी खुशी की भुला दी गई
दर्द के सारे किस्से अमर हो गए
खो गए आपके प्यार में इस कदर
सारी दुनिया से हम बेखबर हो…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 17, 2019 at 11:56am — 6 Comments
है कहाँ फूल जैसा खिला आदमी
हो गया है ग़मों का किला आदमी
मंदिरों, मस्जिदों में रहे ढूँढते
जब मिला आदमी में मिला आदमी
गाँठ दिल में लगी तो खुली ही नहीं
भूल पाया न शिकवा-गिला आदमी
…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on May 24, 2019 at 10:07am — 9 Comments
मापनी २२१२ १२१ १२२ १२१२
हमने रखा न राज़ सभी कुछ बता दिया
खिड़की से आज उसने भी परदा हटा दिया
बंजर जमीन दिल की’ हुई अब हरी-भरी
सींचा है उसने प्रेम से’ गुलशन बना दिया
जज्बात मेरे’ दिल के’ मचलते चले…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 19, 2019 at 9:00pm — 3 Comments
मापनी - 2122, 1122,1122, 22(112)
दूर साहिल हो भले, पार उतर जाता है
इश्क में जब भी कोई हद से गुज़र जाता है
है तो मुश्किल यहाँ तकदीर बदलना लेकिन
माँ दुआ दे तो मुकद्दर भी सँवर जाता है
हमसफ़र साथ रहे कोई…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 15, 2019 at 9:30am — 6 Comments
लेकर आये
हैं जुगाड़ से,
रंग-बिरंगे झंडे
सजा रहे
हर जगह दुकानें,
राजनीति के पंडे
खंडित जन
विश्वास हो रहा…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 13, 2019 at 10:07pm — 6 Comments
मन तिरता आकाश
नैनों में सपने तिरते हैं,
मन तिरता आकाश
देखूं जब भी तेरा मुखड़ा,
लगता खिला पलाश
मधुरिम गीत लिख रही मेंहदी,
पायल गाती है
माथे पर कुमकुम…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on February 7, 2019 at 5:15pm — 4 Comments
बह्र - फैलुन *४
जो मेरी दीवानी होगी
आग नहीं वो पानी होगी
हाथ बढ़ाया है जब उसने
कुछ तो मन में ठानी होगी
एक नजर में लूट लिया दिल
कुछ तो बात पुरानी होगी
…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on January 25, 2019 at 3:42pm — 5 Comments
व्हाट्सएप्प हो या मुखपोथी*
सबके अपने-अपने मठ हैं
दिखते हैं छत्तीस कहीं पर,
और कहीं पर वे तिरसठ हैं
*फेसबुक
रंग निराले, ढंग अनोखे,
ओढ़े हुए मुखौटे अनगिन…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on December 9, 2018 at 9:30pm — 6 Comments
मापनी २२१ १२२२ २२१ १२२२
नफरत के’ किले सारे, हमको ही’ ढहाना है
जो हाथ मिलाया है, तो दिल भी’ मिलाना है
यूँ रोज हमें खलती, पानी की’ कमी बेशक…
Added by बसंत कुमार शर्मा on December 6, 2018 at 4:49pm — 8 Comments
एक नवगीत
समीक्षा का हार्दिक स्वागत
रैली, थैली, भीड़-भड़क्का,
सजी हुई चौपाल
तंदूरी रोटी के सँग है,
तड़के वाली दाल
गली-गली में तवा गर्म है,
लोग पराँठे सेक रहे
जन गण के दरवाजे जाकर,
नेता घुटने टेक रहे
पाँच साल के बाद सियासत,
दिखा रही निज चाल
वादों की तस्वीरें…
Added by बसंत कुमार शर्मा on November 29, 2018 at 1:00pm — 4 Comments
मापनी २१२२ २१२२ २१२२ २१२
द्वार पर जो दिख रही सारी सजावट आप से है
आज अधरों पर हमारे मुस्कुराहट आप से है
आपकी आमद से मौसम हो गया कितना सुहाना
जो हुई महसूस गरमी में तरावट आप से है
यूँ तो मेरी जिन्दगी…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on November 27, 2018 at 9:08am — 9 Comments
मापनी - २१२२ 12 1222
चाहते हैं मगर नहीं आती
हर ख़ुशी सबके’ घर नहीं आती
दिल में’ थोड़ी सी’ गुदगुदी कर दे
आजकल वो खबर नहीं आती
मैं इधर जब उदास होता हूँ
नींद उसको उधर नहीं…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on November 1, 2018 at 5:30pm — 30 Comments
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