For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सबके अपने अपने मठ हैं - नवगीत

व्हाट्सएप्प हो या मुखपोथी*

सबके अपने-अपने मठ हैं

दिखते हैं छत्तीस कहीं पर,

और कहीं पर वे तिरसठ हैं

*फेसबुक 

 

रंग निराले, ढंग अनोखे,

ओढ़े हुए मुखौटे अनगिन

लाइक और कमेंट खटाखट,

चलते ही रहते हैं निशदिन

 

छंद हुए स्वच्छंद सरीखे,

गीत, ग़ज़ल के भी नव हठ हैं

 

नजर लक्ष्य पर रखते अपनी,

बगुले जैसा ध्यान लगाते

कोई मछली दिखी कहीं पर,

उधर तुरत ही चौंच बढ़ाते

 

फैलाने को अपनी सत्ता,

हरदम लगनशील कर्मठ हैं  

 

मेरी मुर्गी तीन टाँग की,

हर हालत में सिद्ध कर रहे

भले स्वयं की गागर रीती,

लेकिन सबका कलश भर रहे

 

आलोचक की जगह नहीं है,

कहते हैं सब लेख सुपठ हैं

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

Views: 502

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बसंत कुमार शर्मा on December 12, 2018 at 11:34am

आदरणीय  Samar kabeer  जी शुभ प्रभातम, आपकी प्रतिक्रिया का दिल से शुक्रिया, कुछ और तरीके से कोशिश करता हूँ।  सादर नमन आपको 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on December 12, 2018 at 11:33am

आदरणीय  PHOOL SINGH जी शुभ प्रभातम, आपकी प हौसलाअफजाई का दिल से शुक्रिया 

Comment by Samar kabeer on December 11, 2018 at 10:10pm

जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,नवगीत अच्छा है लेकिन आप जो कहना चाहते हैं वो पूरी तरह उजागर नहीं हो सका,ख़ैर ! इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by PHOOL SINGH on December 11, 2018 at 2:14pm

क्या बात है सर जी बहुत सूंदर बधाई 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on December 10, 2018 at 9:20am

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी शुभ प्रभातम, आपकी हौसलाअफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 10, 2018 at 6:52am

आ. भाई बसंत जी, सुंदर रचना हुयी है । हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय सुशील सरना सर, सर्वप्रथम दोहावली के लिए बधाई, जा वन पर केंद्रित अच्छे दोहे हुए हैं। एक-दो…"
13 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
35 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सुशील सरना जी उत्सावर्धक शब्दों के लिए आपका बहुत शुक्रिया"
35 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय निलेश भाई, ग़ज़ल को समय देने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया। आपके फोन का इंतज़ार है।"
36 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर 'बागपतवी' साहिब बहुत शुक्रिया। उस शे'र में 'उतरना'…"
37 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर,ग़ज़ल पर विस्तृत टिप्पणी एवं सुझावों के लिए हार्दिक आभार। आपकी प्रतिक्रिया हमेशा…"
40 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, ग़ज़ल को समय देने एवं उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका हार्दिक आभार"
41 minutes ago
Sushil Sarna posted blog posts
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा

आँखों की बीनाई जैसा वो चेहरा पुरवाई जैसा. . तेरा होना क्यूँ लगता है गर्मी में अमराई जैसा. . तेरे…See More
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर, मैं इस क़ाबिल तो नहीं... ये आपकी ज़र्रा नवाज़ी है। सादर। "
17 hours ago
Sushil Sarna commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय जी  इस दिलकश ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारकबाद सर"
17 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया और सुझाव  का दिल से आभार । प्रयास रहेगा पालना…"
17 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service