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योगराज प्रभाकर's Blog – August 2010 Archive (3)

एक भाई के दिल की पुकार ... ओ मेरी लाडली बहन

ओ मेरी लाडली बहन, ओ मेरी माँ जाई,

तुझ पे कुर्बान है सदा, तुम्हारा ये भाई !



जहाँ में चाँद सितारे हैं कायम जब तक,

तेरा सुहाग भी अमर रहे सदा तब तक !



तुम्हारे गाँव से बस ठंडी हवा आती रहे,

जिंदगानी तुम्हारी यूँ ही मुस्कुराती रहे !



मेरे बाबा की मेरी माँ की निशानी तू है

मेरे कुनबे की शर्म-ओ-लाज की बानी तू है !



दिल ये कहता है कि मैं फिर से मनाऊँ तुझको ,

अपने कन्धों पे बिठा फिर से घुमाऊँ तुझको !



तुम्हारी कपडे की गुडिया बहुत… Continue

Added by योगराज प्रभाकर on August 23, 2010 at 11:30pm — 10 Comments

ग़ज़ल-7 (योगराज प्रभाकर)

कत्ल पेड़ों का हुआ तो, हो गया प्यासा कुआँ !

तिश्नगी अब क्या बुझाएगा भला तिश्ना कुआँ !



पनघटों पर ढूँढती फिरती सभी पनिहारियाँ,

एक दिन ये लौट कर आयेगा बंजारा कुआँ !



बस किताबों में नजर आएगा, ये अफ़सोस है

हो गया इतिहास अब ये भूला बिसरा सा कुआँ !



एक दिन बेटी को जिसकी खा गया था रात में,

उसको तो ख़ूनी लगे उसदिन से ही अँधा कुआँ !



मौत शायद टल ही जाये धान की इंसान की,

गर किसी सूरत कहीं ये हो सके ज़िन्दा कुआँ…
Continue

Added by योगराज प्रभाकर on August 12, 2010 at 12:30am — 11 Comments

ग़ज़ल-6 (योगराज प्रभाकर)

कई बरसों के बाद घर मेरे चिड़ियाँ आईं

बाद मुद्दत ज्यों पीहर में बेटियाँ आईं !



ज़मीं वालों के तो हिस्से में कोठियाँ आईं,

बैल वालों के नसीबों में झुग्गियाँ आईं !



जाल दिलकश बड़े ले ले के मकड़ियां आईं

कत्ल हों जाएँगी यहाँ जो तितलियाँ आईं !



झोपडी कांप उठी रूह तलक सावन में,

ज्योंही आकाश पे काली सी बदलियाँ आईं !



ऐसे महसूस हुआ लौट के बचपन आया,

कल बड़ी याद मुझे माँ की झिड़कियां आईं !



बेटियों के लिए पीहर में पड़ गए ताले

हाथ… Continue

Added by योगराज प्रभाकर on August 2, 2010 at 9:00pm — 7 Comments

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