For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जब जब बेटी के ससुराल से फोन आता तो भार्गव जी अन्दर तक काँप उठते. दरअसल शादी के एकदम बाद दामाद ने नई कार देने की मांग रख दी थी. उसी वजह से कई बार बिटिया मायके आ भी चुकी थी. मामूली सी पेंशन पाने वाले भार्गव जी हर बार बिटिया को समझा बुझा कर वापिस भेज देते. लेकिन इस बार ससुराल का इतना दबाव था कि बिटिया समझाने पर भी नहीं मान रही थी और ज़िद पकड़ कर बैठ गई थी. भार्गव जी को समझ नहीं आ रहा था कि वे करें तो क्या करें.

आखिर एक दिन
अचानक दामाद के लिए नई कार आ ही गई, और बेटी अगले रोज़ अपने पति के साथ नई गाड़ी में ख़ुशी ख़ुशी विदा हो गई. भार्गव जी के मन से एक भारी बोझ उतरा, लेकिन उनकी पत्नी ऐसी अनुचित मांग को पूरा करने पर बेहद नाराज़ थी.

"आज तो आपने इनकी मांग पूरी कर दी, लेकिन कल इन्होने कोई और महंगी चीज़ मांग ली तब आप क्या करोगे ?"
"चिंता काहे करती हो भगवान्, अभी तो एक और किडनी मौजूद है मेरे शरीर में."

Views: 1461

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by शरद कुमार on September 29, 2012 at 6:21pm

 बहुत ही मर्मस्पर्शी


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on July 2, 2012 at 11:42am

शुक्रिया राज़ साहिब.

Comment by राज़ नवादवी on June 29, 2012 at 7:19pm

मर्मस्पर्शी!


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 28, 2012 at 8:28pm
आपने लघुकथा के मर्म को पहचाना और पसंद किया, हार्दिक आभार सावी जी.
Comment by savi on June 28, 2012 at 6:32pm

prbhakar ji, kidni to shrir me do hi hai par dahej ke rakhsh ke sir anek, aakhir majbur pita beti ke sukh ke liye kya kya bachega | sach me bete aur beti ke bich fark krane ke liye ye dahej namk asur hi to hai | dil ko chu lene vali kahani ke liye aapko badhai |


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 26, 2012 at 9:57am

भाई उमाशंकर मिश्र जी, लघुकथा पसंद करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.  


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 26, 2012 at 9:57am

भाई राज तोमर जी, उत्साहवर्धन हेतु ह्रदय से आभार.

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 26, 2012 at 9:12am

अत्यंत मर्मस्पर्शी लघु कथा है भाई संजय मिश्र हबीब के कथन से सहमत हूँ पर इश्वर से प्रार्थना है की ऐसा घटित ना हो

Comment by Raj Tomar on June 25, 2012 at 10:38pm

सर जी , यह कथा बहुत ही मर्मस्पर्शी है.किस पहलू को देखा जाये समझ नहीं आता. एक बाप अपनी बिटिया की खुशी के लिए किडनी बेंच दिया...जिंदगी अपनी दाव पर लगा दिया..घर की हालत देखते हुए भी बिटिया कार ले ली..:(
अजीब बात है न.? बाप इसके बाद आगे भी तैयार है..क्या दृश्य है ..


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 25, 2012 at 8:13pm

तह-ए-दिल से शुक्रिया अनुज संजय मिश्र जी, आपको लघुकथा पसंद आई मेरा श्रम सार्थक हुआ. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" posted a blog post

ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है

1212 1122 1212 22/112मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना हैमगर सँभल के रह-ए-ज़ीस्त से गुज़रना हैमैं…See More
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधकह दूँ मन की बात या, सुनूँ तुम्हारी बात ।क्या जाने कल वक्त के, कैसे हों…See More
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
""रोज़ कहता हूँ जिसे मान लूँ मुर्दा कैसे" "
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"जनाब मयंक जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, गुणीजनों की बातों का संज्ञान…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक भाई , प्रवाहमय सुन्दर छंद रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई "
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय बागपतवी  भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक  आभार "
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आदाब, ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ, गुणीजनों की इस्लाह से ग़ज़ल…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
10 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
10 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
12 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service