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Rajesh kumari's Blog – June 2012 Archive (7)

मूसलाधार

आग उगलते सूरज का रथ

दौड़ रहा था

अनवरत, अन्तरिक्ष पर

पीछे जन्म लेते

धूल के गुबार ने ढक

दिए सब वारि के सोते

कुम्भला गए दम घोंटू

गर्द में कोमल पौधों के पर

चिपक गए परिधान बदन से

हाँफते हुए ,पसीनों से लथपथ

उसके अश्वों के स्वेद सितारे

छितरा गए सागर की चुनरी पर

मिल गए खारे सागर की बूंदों से

जबरदस्त उबाल उठा

सागर के अंतर में

प्यासी धरा की आहें

कर बैठी आह्वान

मंथन से मुक्त होकर

उड़ चला वो वाष्पित आँचल…

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Added by rajesh kumari on June 26, 2012 at 2:30pm — 15 Comments

सिलेंडरों की रेल

निर्मल मन मैला बदन , नन्हे नन्हे हाथ 

रोटी का कैसे जतन,समझ ना पाए बात (1) 



तरसे एक -एक कौर को ,भूखे कई हजार 

गोदामों में सड़ रहे, गेहूं के आबार (2) 



शून्य में देखते नयन , पूछ रहे है बात 

प्रजा तंत्र के नाम पर,क्यूँ करते हो घात (3) 



सीना क्यूँ फटता नहीं, भूखे को बिसराय 

हलधर का अपमान कर,धान्य, जल में बहाय (4) 



शासन की सौगात हो, या किस्मत की हार 

निर्धन को तो झेलनी, ये जीवन की मार (5) 



रंक का चूल्हा…

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Added by rajesh kumari on June 23, 2012 at 1:00pm — 26 Comments

कह मुकरियाँ

नयन लाज से झुक- झुक जाएँ

दिल में प्रीत म्रदंग बजाये

मादक मेघ चुराए काजल

क्या सखी साजन ??

ना सखी बादल |



चुपके से दृग द्वार पे आयें

गुदगुदाती बयार साथ में लायें

प्रीत छुपाये दिल में अपने

क्या सखी साजन ??

ना सखी सपने |



चित्त कल्पना में डूबता जाए

मन मीत हाथों पे लकीरे बनाए

सतरंगों से सजाये सवेरा

क्या सखी साजन ??

ना सखी चितेरा |



रुत खामशी से अगन लगाए

जहां…
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Added by rajesh kumari on June 21, 2012 at 12:00pm — 20 Comments

आधुनिकता

कहाँ गई वो मेरे देश की खुशबु

जिसमे सराबोर  रहते थे

इंसानों के देश प्रेम के जज्बे ,

कहाँ गई वो माटी की सुगंध

जिससे जुडी रहती थी जिंदगी  

कहाँ गए वो आँगन 

जिनमे हर रोज जलते थे 

सांझे चूल्हे 

जहां बीच में रंगोली सजाई जाती थी 

जो परिचायक थी 

उस घर की एकता और सम्रद्धि की 

जिसमे खिल खिलाता था बचपन 

लगता है वक़्त की ही 

नजर लग गई…

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Added by rajesh kumari on June 20, 2012 at 11:43am — 18 Comments

बदनामियों की गठरी



//घुप्प अँधेरा, उफनता तूफ़ान, कर्कश हवाओं कि साँय-साँय, पागल चड चडाती दरख्तों की शाखाएं. किसी भी क्षण उसके सर पर आघात करने को उदद्यत, पर उसके कदम अनवरत गति से बढ़ते जा रहे हैं. काले स्याह मेघ कोप से उत्तेजित हो परस्पर टकरा टकरा कर दहाड़ रहे हैं, जिसकी आवाज ने उन दोनों की साँसों की आवाज को निगल लिया है. दामिनी थर्रा रही है गिडगिडा रही है, उसके चेहरे को देखने को व्यग्र शनै -शनै अपना प्रकाश फेंक रही है. पर उसका मुख घूंघट से ढका है, हाँ एक नन्ही सी जान एक कपडे में लिपटी हुई उसकी छाती…

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Added by rajesh kumari on June 5, 2012 at 2:30pm — 14 Comments

मौज कोई सागर के किनारों से मिली

मौज कोई सागर के किनारों से मिली  

 साँसे अपनी दिल के इशारों से मिली  

सोंधी सी महक बारिश का इल्म देती है 

गुलशन की खबर ऐसे बहारों से मिली 

आंधी ने नोच डाले हैं दरख्तों से पत्ते 

जुदाई की भनक आती बयारों से मिली 

चाँद खुश है रोशन करेगा बज्मे- जानाँ   

आस नभ में चमकते सितारों से मिली 

हरेक  लब उसे अकेले में गुनगुनायेंगे   

ऐसी कोई नज्म संगीतकारों से मिली 

पंहुच गई है परदेश में निशा की डोली 

खबर भोर में आते…

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Added by rajesh kumari on June 3, 2012 at 9:03pm — 27 Comments

खुशखबरी (कहानी)

हैलो हैलो !! हैलो  बेटा बोल !  माँ खुशखबरी है आपको पोता हुआ है, इतना कहकर रोहित ने फ़ोन  रख दिया | रेखा के पाँव तो ख़ुशी के मारे जमीन पर नहीं पड़ रहे थे, उसी समय बहुत सारी मिठाई लाकर पूरी कालोनी में बाँट दी | फिर तैयार होकर हॉस्पिटल पंहुच गई और सारे कर्मचारियों को मिठाई बांटी, आयाओं को सौ- सौ के नोट भी दिए और फिर बहु के पास पोते को देखने पहुंची वहां पर डॉक्टर भी राउंड पर आई हुई थी देखते ही रेखा एक पूरा मिठाई का डिब्बा डॉक्टर की तरफ देते हुए बोली आप भी मेरे पोते के होने की मिठाई खाओ |…

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Added by rajesh kumari on June 1, 2012 at 10:30am — 23 Comments

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