हास्य घनाक्षरी
आप तो पहाड़ हम माटी भुरभुरी वाली
धूल न हो जाएँ कहीं , गले न लगाइए
आपका शरीर है ये तन से अमीर बड़ा
दुबले गरीब हम रहम तो खाइए
माटी वाला घर मेरा और द्वार छोटा बना
टूट नहीं जाए ज़रा धीरे धीरे आइए
फूल थी जो आप कद्दू हो गयी हो आजकल
ऐसा क्या है खाया ज़रा हमें भी बताइए
संदीप पटेल “दीप”
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 3, 2013 at 11:30pm — 16 Comments
इस जीवन में लगा रहेगा ,
दुःख-सुख हार जीत!
दृढ़ता से बढ़ते रहो ,
गाओ विजय का गीत !!
अविराम बढ़ते चलो ,
भर लो अन्दर शक्ति भरपूर…
Added by ram shiromani pathak on April 3, 2013 at 9:46pm — 17 Comments
प्यास है
लरजते होंठों में
आज भी वही
जब कहा था तुमसे
मैं प्यार करता हूँ
और देखा था
खुद को
तुम्हारी आँखों से
पागल सा
दीवाना सा
कुछ पल बाद
वो झुकीं
और इक मीठी सी सदा
हट पागल
जाता हूँ
आइने के सामने
देखने वही
अक्स
लेकिन धुंधला
हो जाता है
मुझे याद है अब भी
जब तुमने
झांका था
मेरी आँखों में
थामा था
सिरहन भरा
मेरा…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on April 3, 2013 at 9:00pm — 22 Comments
क्या वजह क्या वजह कहर बरपा रहे
मेहरबां - मेहरबां से नजर आ रहे
ये दुपट्टा कभी यूँ सरकता न था
आज हो क्या गया यूँ ही सरका रहे
चूडियाँ यूँ तो बरसों से ख़ामोश थी
बात क्या है हुजूर आज खनका रहे
यूँ तो चेहरे पे दिखती थीं…
Added by VISHAAL CHARCHCHIT on April 3, 2013 at 6:30pm — 37 Comments
झुलसाई ज़िन्दगी ही तेजाब फैंककर ,
दिखलाई हिम्मतें ही तेजाब फैंककर .
अरमान जब हवस के पूरे न हो सके ,
तडपाई दिल्लगी से तेजाब फैंककर .
ज़ागीर है ये मेरी, मेरा ही दिल जलाये ,
ठुकराई मिल्कियत से तेजाब फैंककर .
मेरी नहीं बनेगी फिर क्यूं बने किसी की,
सिखलाई बेवफाई तेजाब फैंककर .
चेहरा है चाँद तेरा ले दाग भी उसी से ,
दिलवाई निकाई ही तेजाब…
Added by shalini kaushik on April 3, 2013 at 4:15pm — 9 Comments
बहर : हज़ज मुसम्मन सालिम
वज्न: १२२२, १२२२, १२२२, १२२२
रदीफ़ों काफियों को चाह पर अपने चलाता है,
बहर के इल्म में जो रोज अपना सिर खपाता है,
हुआ है सुखनवर* उसकी कलम करती ग़ज़लगोई*,
सभी अशआर के अशआर वो सुन्दर बनाता है,
कभी वो लाम* में जागे कभी वो गाफ़* में सोये,
सुबह से शाम तक बस तुक से अपने तुक भिड़ाता है,
मुजाहिफ* को करे सालिम, करे…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on April 3, 2013 at 2:30pm — 15 Comments
विधना तेरे रूप में, आया कहां निखार
बेशकीमती ब्लीच औ, लोशन मले हजार
मौनी बाबा टल्ली हैं, आफत में युवराज
घूर रहा जो ताज को, गुजराती परबाज
शहर गाल में गांव हैं, कोलतार में पैर
बेदम होकर हांफती, सुबह-शाम की सैर
ट्रैफिक की हर चीख पर, सिग्नल मारे आंख
रेल-बसों में चुप खड़े, सहमे डैने, पांख
अनशन पर कोई अड़ा, कोई हुआ मलंग
इटली वाले रंग में, किसने घोला भंग
नदी रही नाला हुई, किसपर नखरे नाज…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on April 3, 2013 at 12:54pm — 8 Comments
जिन्दगी में ये सब होना ही था
हर ख़ुशी की चाह मे रोना ही था
रिश्ते नाते प्यार वादों का महल
टुटा खंडहर एक दिन होना ही था
दूसरों के बोझ ढोते रह गए
अपने गम का बोझ भी ढोना ही था…
ContinueAdded by Dr.Ajay Khare on April 3, 2013 at 12:00pm — 3 Comments
कमला बाई को सुबह सुबह दरवाजे पर बुरी हालत में देख रीना का माथा ठनका , एक्सीडेंट के कारण हास्पिटल में भर्ती हुई कल ही तो एक हफ्ते बाद वापस लौटी है ।सर पर पट्टी गले की हँसली टूटने पर पीछे हाथ कर बाँधी हुई पूरी छाती पर पट्टी ,आँखे सूजी हुई देखते ही फफक- फफक कर रो पड़ी कमला रीना के बहुत बार पूछने पर बताया "मेमसाब मेरी पट्टी देखकर मेरे दो साल के बच्चे ने जो…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 3, 2013 at 10:08am — 19 Comments
गतांक-1 से आगे......सतसंग में हजारों का गुप्त दान करके स्वयं को धन्य समझ लेते हैं किन्तु रिक्शे वाले को पूरे पांच रूपये भी नहीं देना चाहते हैं। ईश्वर प्राप्ति हेतु अपने जिज्ञासु मन को सतसंग परिसर के गेट पर नमस्कार के साथ ही टांग देते हैं और जैसे आये थे, ठीक वैसे ही पुनः घर की ओर खाली मन, अज्ञान, संसारिक माया -मोह, व्यापार -व्यवहार आदि जंजाल के साथ चल पड़ते हैं। गृह में प्रवेश करते ही बहुओं, नौकरो आदि पर अव्यवहारिक बातें मढ़़ते हुए प्रपंच शुरू कर देते हैं। यहां तक कुछ लोग तो सतसंग में भी सुबह…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 3, 2013 at 7:29am — 6 Comments
हरिगीतिका/16,12 जय जय हनुमान !!!
हनुमान दास, राम गुन भाष, भक्ति रस ज्ञानी घने।
तु चंचल चपल, तेजस अतिबल, अखिल रवि विद्या जने।।
तुम मारूत सुत, शंकर अंशम, देव सब तप वरदने।
तुम अजर अमर, सुजान सुन्दर, प्रेम रस देखत बने।।1
महत्तम वीर, औ विकट धीर, निर्मलता हृदय रमी।
तुम दीन कथा, समरथ विरथा, तत्छन उबारत गमी।।
बहु विधि सताय, लंक जराए, सीतहि हर दुःख थमी।
संजीवन सुख, लछमन जागे, सफल काज नाहि…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 2, 2013 at 10:07pm — 16 Comments
सामाजिक प्राणी होने के नाते हम सभी रिश्तों से घिरे रहते हैं। रिश्ते सामाजिक व्यवस्था का मूल आधार होते हैं। रिश्ते हमें आपस में बांधे रहते हैं। हमारे रिश्ते जितने मज़बूत होते हैं सामजिक ढांचा उतना ही मज़बूत बनता है।
प्रेम संबंधों को सबल बनाता है। स्वस्थ संबंधों के लिए आवश्यक है की हमारे बीच एक दूसरे के लिए आदर तथा आपसी समझबूझ हो। एक दूसरे के हित लिए अपने निजी स्वार्थों का त्याग रिश्तों को दीर्घायु बनाता है। रिश्ते हमें बहुत कुछ…
Added by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on April 2, 2013 at 8:00pm — 9 Comments
यादों की बारिश हो रही है, पलपल ऐसे..!
सूखी नदी में हो, झरनों की हलचल जैसे..!
१.
दिल का चमन शायद, गुलगुल हो न हो मगर,
ख़्वाब होगें ज़रूर गुलज़ार, हो मलमल जैसे..!
सूखी नदी में हो, झरनों की हलचल…
Added by MARKAND DAVE. on April 2, 2013 at 12:30pm — 4 Comments
जन सेवा
देख गरीबी भारत की,
फफक फफक मैं रो पड़ा,
क्यों अभिमान करूँ अपने पर,
अपने से ही , पूंछ पड़ा ।
शर्म नहीं आती क्यों उसको,
बड़ा आदमी कहता जो खुद…
Added by akhilesh mishra on April 2, 2013 at 11:30am — 8 Comments
गंगा, (ज्ञान गंगा व जल गंगा) दोनों ही अपने शाश्वत सुन्दरतम मूल स्वभाव से दूर पर्दुषित व व्यथित, हमारी काव्य कथा नायक 'ज्ञानी' से संवादरत हैं।
Added by Dr. Swaran J. Omcawr on April 1, 2013 at 7:56pm — 16 Comments
कुम्हार सो गया
थक गया होगा शायद
मिट़टी रौंदी जा रही है
रंग बदल गया
स्याह पड़ गयी
चाक घूम रहा है
समय चक्र की तरह…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on April 1, 2013 at 5:17pm — 26 Comments
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 1, 2013 at 5:00pm — 11 Comments
प्रतिष्ठान के मालिक ने
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 1, 2013 at 4:20pm — 10 Comments
फूलों को तू सूंघ मत, आज अप्रैल फूल|
हो सकता है फूल में, हो मिर्ची की धूल||
तू देख वतन पश्चिमी, कितने होते…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 1, 2013 at 3:00pm — 19 Comments
'मत्तगयन्द' सवैया : 7 भगण व अंत में दो दीर्घ
जात न पात न भेद न भाव न रूप न रंग न डोर दिवारें.
एक धरा यह प्रेम भरी जँह प्रेम लिए हम आप पधारें,
सीख सिखाय रहे सबहीं यँह ज्ञान भरें अरु लेख निखारें,
देश विदेश मिलाय दिए जन मेल…
Added by अरुन 'अनन्त' on April 1, 2013 at 2:33pm — 17 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |