For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सुधिजनो,

दिनाँक १७-१९ मार्च २०१३ को सम्पन्न हुए चित्र से काव्य तक अंक-२४ (छंदोत्सव) की समस्त प्रविष्टियाँ संकलित कर ली गयी है. इस बार के छंदोत्सव में छंद मरहठा, मरहठा माधवी, कुण्डलिया छंद, दोहा छंद, रूपमाला छंद, दुर्मिल सवैया छंद, कुकुभ छंद, हरिगीतिका छंद, सुन्दरी सवैया छंद, मुक्तामणि छंद, मदिरा सवैया छंद, चौपाई छंद, सौरभ छंद, जला छंद, उल्लाला छंद, त्रिभंगी छंद, सरसी छंद व गणात्मक घनाक्षरी छंद आदि १८ सनातनी विधाओं पर १५ रचनाकारों नें छंदबद्ध रचनाएँ प्रस्तुत कर छंदोत्सव को सफल बनाया.

इस बार का प्रस्तुतिकरण रचनाकारों के नाम के प्रथम अक्षर के अनुसार हुआ है. यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस आयोजन के सभी प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें. फिर भी भूलवश किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह गयी हो, वह अवश्य सूचित करे.

सादर

डॉ. प्राची सिंह

कार्यकारिणी सदस्या

 

अरुण कुमार निगम जी


१.

छंद मरहठा – 10, 8, 11 मात्राओं पर यति देकर कुल 29 मात्रायें | अंत में गुरु, लघु |

जल मलिन न करियो, सदा सुमरियो, बात लीजियो मान |
यह  है  गंगाजल , रखियो  निर्मल , इसमें  जग  के  प्रान ||
जल है तो कल है , यदि निर्मल है , इसे अमिय सम जान |
अनमोल  धरोहर , इसमें   ईश्वर ,  यह  है  ब्रह्म  समान ||
अपशिष्ट  बहा  मत , व्यर्थ  गँवा मत , सँभल अरे नादान |
तेरी     नादानी   ,   मूरख     प्रानी   ,   भुगतेगी   संतान ||
जल   संरक्षित   कर  , वृक्ष लगा घर , कर ले काम महान |
जल - वन  बिन भुइयाँ , सारी  दुनियाँ , बने नहीं शमशान ||

 

२.

छंद मरहठा माधवी - 11, 8, 10 मात्राओं पर यति देकर कुल 29 मात्रायें | अंत में लघु, गुरु |

गंगा में   नहाओ , रस  बरसाओ , मन   को  बुद्ध करो |
माँ   ममता समेटे , कहती   बेटे , तन - मन शुद्ध करो ||
सभी धर्म सिखाते ,  हँसते - गाते , मिलजुल  संग रहो |
नहीं भेदभाव हो , मृदु स्वभाव हो , सुख-दुख  संग सहो ||
बहता   हुआ   पानी  ,  मस्त  रवानी , दे जीवन सबको |
सदा  प्रेम  लुटाओ  , जल बन जाओ , याद करो  रब को ||
दोने  में  प्रवाहित  ,  प्रेम   समाहित  , अद्भुत  भाव भरे |
दिया धूप सुमन फल,मन अति निर्मल,देख हृदय निखरे ||

*****************************************************************************************

अलबेला खत्री जी
कुंडलिया छंद

गंगा तेरे नीर में, अमृत का आभास 
दिवस रैन बहती रहे, छ:रुत बारहमास 

छ:रुत बारहमास, ताप  पापों का हरती
तेरी हर इक लहर, पवन को पावन करती 

जातपात तो घाट पे हि रह जाता टंगा 
डुबकी लें जब मार, सभी कहते हर गंगा 

*****************************************************************************************

अविनाश एस बागडे जी

 

.

कुण्डलिया छंद

श्रद्धा और विश्वास का ,गंगा बनी प्रतीक .

पग-पग पर है आस्था ,कहना सदा सटीक .

कहना सदा सटीक ,संस्कृति  की संवाहक .

तट जिसके हर समय ,बने हैं जीवन-दायक .

कहता है अविनाश ,ना पनपे अन्धी -श्रद्धा .

सदा गंग के तट पे ,बलवती होवे श्रद्धा .....

 

.

दोहे

गंगाजल कल-कल बहे,करते लोग प्रणाम 

पाप धुलाने का यहाँ ,तंत्र कर रहा काम

 

गंगा के जल का रहा , वैज्ञानिक आधार

मगर प्रदूष्ण से हुआ ,सब कुछ बन्ठाधार

 

पुन्य सलीला गंगा जी ,जगत आस्थावान

पुष्प-पत्र-निर्माल्य से , हरे गंग  के  प्रान .

 

कर्मकांड के नाम पर ,गंगाजल ले हाथ

गंगा-तट को लूट रहे,ढोंगी मिलकर साथ

 

गंगाजी की साख को ,रखना हमें संभाल

तभी धर्म का उच्चतम ,कायम होगा भाल

************************************************************************************

अशोक कुमार रक्ताले जी  

१.

रूपमाला छंद (चार पदीय छंद, १४,१० पर यति के साथ पदांत में गुरु लघु)

 

धर्म बेडी पैर डाले, रौंदता नद धार,

पीत पुष्पों पाटता जन, गंग का आकार।।

कह रहे हैं लोग देखो, है नहीं यह धर्म,

कौन सुनता दूसरों की, कर रहे निज कर्म।।

 

भूल कर सद्कर्म मानव, कर रहा क्या काज,

हो खड़ा मनु दूर ही से, ताकता बिन लाज।।

माँ सदा ही माँ रहेगी, हम निभाएं फर्ज,

मोक्ष दायी मात का कुछ, तो चुकाएं कर्ज।।

 

२.

दुर्मिल सवैया (सगण x 8)

  

जब पैर पड़े जल धार तभी लगती यह माँ कर गोद हमें,

यह भाव परस्पर व्यक्त किये अरु पुष्प बहाकर और रमे,

यह शायर हैं ‘इबराहिम’ जी कवि देश त नेक अनेक रहे

यह जोड़ रहा मन संगम जो उसको नद में सब देख रहे//   

 

नद धार लिए जब पुष्प चली मन संगम संग बयार चली,

बहती शुभ वासित गंध यहाँ मन दीप जलाय क तार चली,

जब भाव धरे मन पावन हो तब होवत है जयकार वहाँ,

मन भी मिलते जहँ आपस में तव ही जन का उपकार वहाँ//  

 

३.                 

कुकुभ छंद ( १६+१४) अंत में दो गुरु

 

गंगा यमुना की धार यहाँ, संगम मानव धर्मो का,

पुण्य प्रताप मिले सबही को, निज अपने ही कर्मो का,

वाद-विवाद फसाद रहा है, काम यहाँ बेशर्मो का,

लिखा देख लो जल धारा पर, भाव गंग के मर्मो का//  

 

महाकुम्भ जन ग्रहण अमावस, डुबकी लाख लगाते हैं,

पाप पुण्य तन गठरी बांधे, दूर दूर से आते हैं,

गंग धार के प्रदुषण पर जन, आंसू दिखे बहाते हैं.

गंगा बहती आस लिए अरु, जन भी आते जाते हैं// 

****************************************************************************************

डॉ. प्राची सिंह

हरिगीतिका छंद

हरिगीतिका हरिगीतिका हरिगीतिका हरिगीतिका (, १२, १९, २६ वीं मात्रा लघु, अंत लघु गुरु) x  

 

आध्यात्म दृढ़ आधार ही विज्ञान का विस्तार है /

दोनों सिरों को जोड़ता साहित्य का संसार है //

साहित्य रचना धर्मिता दायित्व है सद्बोध है /

हर पंथ मज़हब से बड़ा इस धर्म का उद्बोध है //१//

 

प्रति धर्म हो सद्भावना यह भाव भारत प्राण है /

इस चेतना सुरधार में प्रति क्षण बसा निर्वाण है //

गंगा हृदय में पावनी जब प्रेम की अविरल बहे /

एकत्व प्रज्ज्वल ज्ञान में मन कुम्भ को हज सम कहे //२//

 

संकेत संगम बाह्य पर निर्वाण निज में व्याप्त है /

जिसने मनस को साध कर खोजा उसी को प्राप्त है //

सद्ज्ञान से परिपूर्ण मन में राष्ट्र का दर्पण दिखे /

समुदाय को दे प्रेरणा साहित्य वह दर्शन लिखे //३//

*****************************************************************************************

ब्रजेश कुमार सिंह (ब्रजेश नीरज) जी

दोहे

 

शिव के शीश विराजती, उतरी धरा तरंग।।

भागीरथ के वंश को, तार गई ये गंग।।

 

गंगा निर्मल पावनी, है जग का आधार।

त्रिवेणी संगम भया, गंगा जमुनी प्यार।।

 

सरस सलिल सुखदायिनी, अविरल ये जल धार।

इसके तट सब दुख मिटे, मुदित हुए नर नार।।

 

जात पात का भेद क्या, नहि मजहब आधार।

सबको जीवन दे रही, बांट रही है प्यार।।

**************************************************************************************** 

रविकर जी

१.

दुर्मिल सवैया

 

इबराहिम इंगन इल्म इहाँ इजहार मुहब्बत का करता ।

पयगम्बर का वह नाम लिए कुल धर्मन में इकता भरता ।

कह कुम्भ विशुद्ध जियारत हज्ज नहीं फतवावन से डरता ।

इनसान इमान इकंठ इतो इत कर्मन ते जल से तरता ॥
इंगन=हृदय का भाव
इकंठ=इकठ्ठा


सुंदरी सवैया
हरिद्वार, प्रयाग, उजैन मने शुभ नासिक कुम्भ मुहूरत आये ।

जय गंग तरंग सरस्वति माँ यमुना सरि संगम पावन भाये ।

मन पुष्प लिए इक दोन सजे, जल बीच खड़े तब धूप जलाये ।

इसलाम सनातन धर्म रँगे दुइ हाथन से जल बीच तिराए ॥

 

२.

कुंडलिया छंद .

इड़ा पिंगला संग मे, मिले सुषुम्ना देह ।
बरस त्रिवेणी में रही, सुधा समाहित मेह ।

सुधा समाहित मेह, गरुण से कुम्भ छलकता ।
संगम दे सद्ज्ञान , बुद्धि में भरे प्रखरता ।

रविकर शिव-सत्संग, मगन-मन सुने इंगला ।
कर नहान तप दान, मिले वर इड़ा-पिंगला।

इंगला=पृथ्वी / पार्वती / स्वर्ग

इड़ा-पिंगला=सरस्वती-लक्ष्मी (विद्या-धन 

 

३.

कुण्डलिया छंद

 

जाती जनता कुम्भ में, घर अनुशासन छोड़ ।

जल-थल के खतरे विकट, मारे तोड़ मरोड़ ।

मारे तोड़ मरोड़ , कुम्भ में स्वजन भुलाए ।

गर भगदड़ मच जाय, कलेवा काली पाए ।

नीति-नियम मजबूत, आपदा तब भी आती ।

होती मानव चूक, मनुजता मर मर जाती ॥

*****************************************************************************************

राजेश कुमारी जी

कुण्डलिया

गंगा जी में डुबकियाँ ,लगा रहे हैं भक्त

पुहुप प्रवाहित कर रहे , पूजा  में आसक्त

पूजा में आसक्त, मनोरथ दीप जलाते  

गोधूली के वक्त, आरती मंगल गाते

भौमिक जन कल्याण,हो जाय तन-मन चंगा

जटाजूट को त्याग,शिवा के निकली गंगा

 

 दोहे

मनोरथ सिद्धि के लिए,आती गंगा याद|

वरना सुध लेते नहीं,करते हैं बरबाद||

 

निर्मल जल दूषित करें,निंदनीय अपवाद|

शैल सुता रोती यहाँ,क्यों देते अवसाद||

 

इस तट पुष्प चढ़ा रहे,उस तट फेंके गंध|

इधर आस्था बह रही,उधर बहे  दुर्गंध||

*****************************************************************************************

राम शिरोमणि पाठक जी

मुक्तामणि छंद ( 13+12) अंत में दो गुरु

मन को निर्मल राखि के ,जो नहाइ फिर गंगा!
करे पुण्य फल प्राप्त वो, अगर होय मन चंगा !!1

गंगा तट पे भीड़ हो, दूर दूर से आवैं ! 
कर स्नान पावन जल में, आपन पाप नशावैं !!2

शीश नवाये जोर कर ,स्वच्छ भाव जो जाता !
करती नहीं विलम्ब तनिक ,हरहि क्लेश कुल माता !!3

मदिरा सवैया  (भगण X 7 )+ गुरु

गंग नहावन जाय रहे जन ,गावत मंगल गान सभी !
स्नान करें जलपान करें अरु , बोल रहे जयकार सभी 
पावन संगम पाप नशावन, दूर करें व्यवधान सभी !!
मातु सदा हर कष्ट हरो , विपदा हर लो अभिमान सभी

*****************************************************************************************

 लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला जी

१.                    

कुण्डलियाँ छंद 

 

गंगा जमनी सभ्यता,  देखे  विश्व  समाज,

कुम्भ स्नान सब कर रहे,छोड़ छाड़ सब काज

छोड़ छाड़ सब काज, मगन होकर स्नान करे,

कविगण भी है आज, सभी माँ का  ध्यान धरे

रखते सब सदभाव,  यही मनोहर  सत्यता,

सुन्दर मन के भाव, गंगा जमनी सभ्यता ।      

 

 

सूर  तुलसी व् जायसी, रहीम औ रसखान,

सबके छंदों में रही,  उपदेशो  की  खान  । 

उपदेशो की खान,  भेद भाव वे नहि करे,

मन में रख सद्भाव, शुद्ध मन रख बात करे ।   

सभी में निहित भाव, बात विश्व बंधुत्व सी,

निर्मल करे स्वभाव, छंदों में सूर तुलसी । 

 

.

कुण्डलियाँ छंद 

साधक सब लिखते रहे, सद साहित्य अपार,

आन्दोलन सा यह लगे, स्वच्छ बने जल धार।  

स्वच्छ बने जल धार, तभी जीवन  बच पाए                                

गंगा का रख मान,तन मन स्वस्थ हो जाए |             

सतत बहे रसधार, बने नहि कोई बाधक,                        

समझे इसको सार, अर्ज करते सब साधक ।

 

माँ गंगा का सब कहे, जग में मोल अमोल, 

इसको मैली नहि करे,सब संतो के बोल |
सब संतो के बोल, दूषित किया जल भारी,                                           

किया घोर अपराध, तोड़ दी सीमा सारी |         

निर्मल जल जन प्राण, रहे मन इससे चंगा,

करे सबका कल्याण,  पतितपावन माँ गंगा । 

     
. दोहे

देखे विश्व समाज

 

बच्चे औरत आदमी,पंडित हो या शेख,

हर हर गंगे बोलते, डुबकी लेते देख ।

 

संगम में स्नान करने, आता सर्व समाज,

हर हर गंगे  बोलते,  होता सबको  नाज । 

 

सर्व धर्म सदभाव का, सुन्दर है आगाज,

गंगा-जमनी सभ्यता,  देखे विश्व समाज ।

 

नदियों से ही मिल सका, हरा भरा संसार,

मनुज इसे भी दे रहा, कचरे का उपहार । 

 

सरिता जल दूषित करे,यह मानव समुदाय,

अवशिष्ट मल तक डाले, नदियाँ अब निरुपाय।  

 

मत गंगा बदनाम कर, ले गंगा जल साथ,

गंगाजलि के नाम पर, करो न मैला हाथ । 

 

जल को दूषित कर रहे, सुने न कोई बात,

जन जन पीड़ा सह रहे, पक्षी तक आघात । 

 

तन मन भी चंगा रहे,  बहती अमृत धार,

मनुज न अब बाधक बने,सतत बहे रसधार।

 

तहजीब गंगा जमनी,रखना इसकी  लाज 

यही अर्ज माँ शारदे,  सदबुद्धी  दे  आज । 

*****************************************************************************************

विन्ध्येश्वरी त्रिपाठी विनय जी

दोहा चौपाई युति

दोहा:-
श्रद्धा से सिर नत हुआ,पुलकित हुआ शरीर।
पाप दोष सब धुल गये,मज्जन संगम तीर॥

चौपाई:-
गंगा यमुना का संगम है।
अति पावन सुन्दर अनुपम है॥
एक बार जो संगम आये।
मैं पन अपना खोता जाये॥1॥

गंगा यमुना सरस्वती मिल।
किलकिञ्चित बह उर्मिल उर्मिल॥
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाई।
महाकुम्भ में आये भाई॥2॥

विश्वग्राम सा दृश्य बना है।
उत्तम सुन्दर दिव्य छटा है॥
न हिन्दू न मुस्लिम होता।
जो संगम में गोता लेता॥3॥

वह गंगा का सुत है प्यारा।
जीवित जिसमें भाईचारा॥
जाति पंथ मजहब उसका है।
मानवता से जो भटका है॥4॥

प्रकृति नहीं बंटवारा करती।
सब पर कृपादृष्टि सम रखती॥
कवि का जाति नहीं मजहब है।
हज में संगम संगम हज है॥5॥

शायर पुष्पाञ्जलि को लेकर।
रवि गंगा को अर्पण कर॥
हे गंगा माँ वर दो हमको।
मानव धर्म ग्रहण हो सबको॥6॥

छंद रचें मानव हित में हम।
दूर करो जग उर अंतर तम॥
आओ यह संदेश सुनायें।
हिलमिल गंगा सभी बचायें॥7॥

दोहा:-
फतवा से डरता नहीं,क्या कर सके समाज।
तन-मन निर्मल हो गया,गंगा नहा कर आज॥क॥

मन निर्मल है नीर सम,कल कचरा मत घोल।
हिन्दू मुस्लिम मिल रहें,मन की गांठे खोल॥ख॥

*****************************************************************************************

 

सौरभ पाण्डेय जी

छंद -      सौरभ 
विधान - भगण जगण सगण सगण 
              
ऽ।।     ।ऽ।     ।।ऽ    ।।ऽ
              
चार पद का छंद, दो-दो पद के तुकांत

 

भारत प्रबुद्धतम देश सुनो 
सार्थक उदार परिवेश सुनो  
आदर सुनाम गुरुता मन में  
भावन रसे रुधिर सा जन में 

पर्वत-नदी शुभ प्रतीत यहाँ     
वृक्ष नदिया नभ पुनीत यहाँ 
जीवन महान उपहार लिये 
आदर दुलार व्यवहार जिये 

पावन नदी सतत ही रहती 
पंथ न महान, जगती, कहती ॥
कारण यही तज सदा लघुता 
सज्जन समाज कहता दिखता !!

पूजन-नमाज-जप चाह हमें 
रीति व रिवाज़ बस राह हमें ॥
संगम-नहान हज जान यहीं
चाहत-रुझान भगवान यहीं  ॥

उन्नत विचार, लघुता न रहे  
हो नत समाज, कटुता न गहे ॥
रे, लत सुधार.. नदिया कहती --
सार्थक प्रयास दुनिया करती ॥

*****************************************************************************************

संजय मिश्रा हबीबजी

 

.

उल्लाला छंद

शुद्ध प्राण मन हो गया, प्रक्षालित तन साथ में।

भव के सागर में खड़ा, भाव सुमन ले हाथ में॥

 

धर्म जोड़ कर सृष्टि को, रखे दूर बिखराव से।

गूँज दिशायें सब रही, सर्व-धर्म समभाव से॥

 

हर अँधियारा लुप्त हो, भासयुक्त भिनसार में।  

बहती जल-धारा कहे, थमना मत संसार में॥ 

 

नदिया सागर भाप बन, अम्बर बादल तानते।  

दुनिया सहअस्तित्व से, चलती है सब जानते!!

 

मूल सभी का एक है, शाखें क्यों गिनते रहें।  

रसमय निर्मल बन सभी, नीर सदृश बहते रहें। 

 

२.

जला छंद (गायत्री छंद का एक भेद)

उपलब्ध जानकारी के अनुसार सम  वर्णिक समान्त्य छंद, प्रत्येक चरण में छः वर्ण, छंद सूत्र (तगण + रगण)

 

हो सृष्टि ये सदा,

उत्साह से भरी।    

मैं प्रार्थना करूँ,

ले पुष्प अंजुरी॥1॥  

 

फूला फला रहे,  

उद्यान सा खिले।   

संत्रास की कभी,

छाया नहीं मिले॥2॥

 

छोटा बड़ा नहीं,

मानो समानता।

वो धर्म ही कहाँ,

जो भेद जानता॥3॥

 

है कुम्भ ने छटा,

ऐसी सजाइ ना।

सारी धरा बनी,

बैकुंठ आइना॥4॥  

 

गंगा बही यथा,

संसार के लिए।  

हो प्रेम गागरी,

इंसान भी जिये॥5॥

*****************************************************************************************

संदीप कुमार पटेल जी

१.                    

त्रिभंगी छंद

मुनि-जन-मन संगम, दृश्य विहंगम, हिल मिल गंगा स्नान किया
है दिव्य त्रिवेणी, स्वर्ग नसेनी, मोह त्याग शिव ध्यान किया
शिक्षा अति पावन, पाप नसावन, मुनि वाणी संज्ञान किया
कवि पहुंचे तट पर, फिर जी भर कर ,छंद रचे रस पान किया


संतों का मेला, पावन बेला, ऋषि मुनि जन हर मन भावै
सब पाप नसाने, कुम्भ नहाने, गंगा तट पर जन आवै
इस शुभ-अवसर पर, मन निर्मल कर, प्रीत मधुर मन हरषावै
कवि की रस गागर, करने सागर , अम्बर अमृत छलकावै

.

छंद सरसी
[ प्रत्येक पद 16, 11 पर यति, कुल 27 मात्राएँ , पदांत में गुरु लघु] x  

 

हर्षित हो संतो की टोली, पहुँची तीरथ धाम

हर हर गंगे करते सारे, दृश बड़ा अभिराम

करें वंदना सब मिल जुल कर, ले कर शिव का नाम

पाप हारिणी गंगा मैया, हरे क्रोध मद काम

 

भीड़ पड़ी संगम तट भारी, आये सब नर नार

मारें डुबकी मन हो निर्मल, उपजे निर्मल प्यार

पूर्ण कुम्भ बारह वर्षों में, आता है हर बार

गंगा के निर्मल जल में तब, बहती अमृत धार  

  

हर हर गंगे गाते आते, मुनि जन साधू संत

ज्ञान गंग मृदु निर्झर बहती, मारें डुबकी कंत

जात पात का भेद नहीं हो, भक्त न देखें पंत  

मोक्ष मिले मति मन निर्मल हो, अनुभव हो जीवंत

 

 

आओ करें प्रण माँ गंगा का, हमको रखना मान

केवल पाप मिटाने को, बस नहीं करें स्नान

कैसे भी अब दूषित न हो, इतना करना ध्यान

मोक्ष दायिनी गंगा मैया , इसका जल वरदान

 

दीप जलावें करें आरती, करते मंगल गान

अंतर्मन को निर्मल कर दे, देकर निर्मल ज्ञान

द्वार तुम्हारे कवि जन आये, मांगे सब वरदान

छंद रचें नित नव नव मैया, हो जी भर रसपान

  

३.                    

गणात्मक घनाक्षरी
{(
रगण जगण)x2 +रगण+लघु, (रगण जगण)x2 +रगण}x  
(
चार पद प्रति पद ३१ वर्ण १६,१५ पर यति)

 

भक्ति की तरंग तीव्र है उमंग गंग मध्य

दे रहे विनम्र अर्ध्य, पुष्प भी चढ़ा रहे 

दंग हो रहे मनुष्य, साधु संत रूप देख

साधना करें भभूत, अंग में लगा रहे 

 

तीर्थ ये प्रयागराज, मोक्ष का सुमार्ग एक

हाथ जोड़ आज भक्त, शीश को नवा रहे

रूप रंग देश वेश, भूल जात पात भक्त

काम क्रोध मोह त्याग, कुम्भ में नहा रहे

*****************************************************************************************

शशि पुरवार  जी

 दोहे .

गंगा जमुना सरस्वती ,सभी गुणों की खान 
नीर को मैला करते ,यह पापी इंसान .

सिमट रही गंगा नदी ,अस्तित्व का सवाल 
पाप धोए मानव के ,जल जीवन बेहाल .

गंगा को पावन करे  , प्रथम यही अभियान 
गंगाजल निर्मल बहे ,सदा करिए  सम्मान .

*****************************************************************************************

 

 

Views: 2259

Replies to This Discussion

प्राची जी:

 

परिश्रम से संकलन करी हुए इस संदीप्त प्रस्तुति के लिए धन्यवाद।

 

सादर,

विजय

पंद्रह रचनाकार से, अंकित चित्र से काव्य,

होड़ थी महाकुम्भ में, दी आहुतियाँ भव्य ।       
गुरुवर के सानिध्य में, आयोजन संपन्न, 
सात जाति के दर्शन से,सब हो रहे प्रसन्न।
अब सब रचनाए पढ़े, एक साथ अब आप,
हार्दिक बधाई प्राची, काम किया चुपचाप ।
 
हार्दिक बधाई प्राची जी, लगता है आप आज रातभर यही कार्य सम्पन्न् करने में लगी रही । 
कार्य के प्रति आपकी सल्ग्नता और समापित भाव को नमन |

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला जी,

इस बार का छंदोत्सव वास्तव में महाकुम्भ स्नान जैसा ही पावन रहा...

सभी रचनाओं पर आदरणीय मंच संचालक महोदय के प्रबुद्ध विवेचन से और एक दुसरे के सहयोग व मार्गदर्शन से सभी नें परस्पर बहुत कुछ सीखा.

//लगता है आप आज रातभर यही कार्य सम्पन्न् करने में लगी रही ।//... हाहाहा....इतना भी वक्त नहीं लगा आदरणीय :))

आपने इस कर्म को मान दिया, आपकी आभारी हूँ.

सादर.

आदरणीय विजय निकोर जी,

संकलन पर आपकी दृष्टि पड़ी और और इस संकलन हेतु श्रम को आपका अनुमोदन प्राप्त हुआ, इस हेतु सादर धन्यवाद.

संकलन का उदेश्य यह भी है कि जो सुधिजन किसी व्यस्ततावश छंदोत्सव में रचनाएँ न पढ़ सके हों, वो संकलन में एक साथ एक ही भाव भूमि पर प्रस्तुत रचनाकारों की विविध संवेदनाओं की छंद सरिता का आनंद उठा सकें...

आपने यदि यह सब रचनाएँ पढ़ आनंद उठाया तो श्रम सार्थक हुआ आदरणीय.

सादर.

 दिल की गहराइयों से आभार प्रिय प्राची जी सभी रचनाओं को एक सूत्र में पिरोने जैसा श्रमसाध्य कार्य किस खूबसूरती से किया है जिनकी रच नाये पढने से  छूट गई हैं वो पढने में अब आसानी होगी|

आदरणीया राजेश कुमारी जी
छान्दोत्सव की रचनाओं का संकलन आपको पसंद आया ... और श्रम को आपका अनुमोदन प्राप्त हो सार्थकता मिली, इस हेतु सादर आभार .

’चित्र से काव्य तक’ छंदोत्सव की सभी रचनाओं को संकलित कर प्रस्तुत करना मात्र श्रमसाध्य कार्य नहीं है बल्कि यह प्रयास अच्छा-खासा धैर्य भी मांगता है. आदरणीया ने जिस दिलेरी से इस महती कार्य को सम्पन्न किया है वह चकित भी करता है और आपकी संलग्नता के प्रति आदर के भाव जगाता है. आपका सादर धन्यवाद, डॉ. प्राची.

दूसरे, आयोजनों के बाद संकलित हुई रचनाओं का महत्त्व मात्र इतना नहीं है कि उन रचनाओं का पुनर्र्सास्वादन किया जाये. बल्कि रचनाओं पर मनन हो. रचनाकार अपनी रचनाओं पर आयोजनों में सुझाये गये विन्दुओं पर मनन तथा विवेचना करें. प्रदत्त चित्र या विन्दु पर विभिन्न रचनाकारों की भाव-दशाओं पर, छंदों की विशेषता आदि पर मंथन करें. तभी आयोजनों की भी सार्थकता है.

डॉ.प्राची आपको इस क्रियान्वयन और उसके सफल समापन पर पुनः बधाई और शुभकामनाएँ.

संकलन कर्म पर अनुमोदन के लिए आपकी आभारी हूँ आदरणीय सौरभ जी ...
आपने बहुत ही अच्छे शब्दों में संकलन के उद्देश्य को बताया है ...

//संकलित हुई रचनाओं का महत्त्व मात्र इतना नहीं है कि उन रचनाओं का पुनर्र्सास्वादन किया जाये. बल्कि रचनाओं पर मनन हो. रचनाकार अपनी रचनाओं पर आयोजनों में सुझाये गये विन्दुओं पर मनन तथा विवेचना करें.//

रचनाकारों को आत्म-उन्नति का मार्ग दिखाया है आदरणीय आपने, यकीनन ऐसा करना रचनाक्रम को बहुत सुधार देता है।

//प्रदत्त चित्र या विन्दु पर विभिन्न रचनाकारों की भाव-दशाओं पर, छंदों की विशेषता आदि पर मंथन करें//....

एक रचनाकार और एक पाठक के तौर पर भी अपनी सोच को विस्तार के विविध आयाम देने के लिए यह संकलन किसी ग्रन्थ से कमतर नहीं होते, सिर्फ सजग मंथन की आवश्यकता होती है।
सादर।

तथ्यात्मक विन्दुओं को विस्तार देने के लिए आपका आभारी हूँ, डॉ.प्राची.

यह सही है कि इस अभिनव मंच पर एक जागृत सोच-समझ के रचनाकार के लिए बहुत कुछ है. बशर्ते सुधीजनों द्वारा सुझाये गये विन्दुओं को अपनाता है. इस मंच पर अक्सर रचनाओं में गलतियाँ या दोष यों ही नहीं बताये जाते. जो होता है वह रचनाओं की  व्यापकता के लिए अवश्यंभावी होता है. यह ’सीखने-सिखाने’ के उद्येश्य को ही गहन करता है.

हाँ, यह भी अवश्य है कि कतिपय साक्ष्य हैं, जब रचनाओं पर हुआ छिंद्रान्वेषण व्यक्तिगत मंतव्य को बलात आरोपित करने के उद्येश्य से किया गया हैं. लेकिन इस तरह का कोई घिनौना प्रयास तत्काल ही संयमित भी किया गया है.

सादर

आदरणीया डॉ साहीबा, मुझे पता है कि संकलन का कार्य जितना आसान दीखता है, वस्तुतः उतना आसान है नहीं, विभिन्न फार्मेटिंग के कारण रचनायें छुपा छुपी का भी खेल खेलती है :-)

आपने तो सभी रचनाकार को उनके नाम के अनुसार क्रम देकर  इसबार एक नया ही कार्य कर दिया, वह भी बिलकुल शीघ्र, इस श्रम साध्य किन्तु महत्वपूर्ण कार्य हेतु बहुत बहुत आभार स्वीकार करें । 

आदरणीय गणेश जी, 

मुझे भी संकलन करने पर ही ज्ञात हुआ... कि ये काम जितना आसान दिखता है, उतना है नहीं. :))))) और मेरे मन में भी पहले के प्रस्तुत सभी संकलनों के संकलनकर्ताओं के लिए ऐसे ही आभार और श्रद्धा के भाव उत्पन्न हुए...

आप आभार ना कहें, आभारी तो मैं हूँ, जो यह जानने को मिला.

सादर.

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service