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ग़ज़ल के भाव बेहतर हैं रची है आपने दिल से 
 बहर में बाँधकर इसको जो चमकाना भी होता था  
 बहुत-बहुत बधाई मित्र........इस  भाव-प्रधान गज़ल के लिए ...........:))
गजल-कई सदियों से जीना और मरना भी होता था।
हरिक आबाद घर में इक वीराना भी होता था।।
अब जाके मेरे दिल को सुकूॅं औ करार आया।
तुम बिन दिले-बेजार को समझाना भी होता था।।
दिन तो जैसे-तैसे गुजार लेते थे हम लेकिन।
शब में तन्हाॅं चश्में-अश्क बहाना भी होता था।।
भूले ना भूलाए आपकी गीतों-गजलों के बोल ।
आठों पहर इनके गुण गिनाना भी होता था ।।
तुम जहां हो रहो मगर हमारी इन आॅंखों में काजल।
माथे पे बिंदीयां चंदन का क्रम ेजताना भी होता था।।
नेमीचन्द पूनियां चंदन
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