परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 69 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब अज्म शाकिरी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
 
 "मेरे अन्दर कोई सैलाब उतारा उसने"
2122 1122 1122 22
फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फेलुन
१. पहला रुक्न फाइलातुनको फइलातुन अर्थात २१२२ को ११२२भी किया जा सकता है
२. अंतिम रुक्न फेलुन को फइलुन अर्थात २२ को ११२ भी किया जा सकता है|
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 25 मार्च दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक २६ मार्च दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
 मंच संचालक
 राणा प्रताप सिंह 
 (सदस्य प्रबंधन समूह)
 ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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आदरणीय जयनित जी, प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद.
2122    1122    1122    22
यूँ  तो  सैलाब  से सबको ही  उबारा उसने
डूबते  वक्त  मगर  किस  को पुकारा उसने।1।
नाव  मझधार  में लेकिन थी निगाहें मुझ पर
जैसे  देखा  हो कोई  मुझमें  किनारा उसने।2।
लग रहा  ख्वाब  हकीकत में बदलता उसको
टूटता देख  लिया  आज  क्या  तारा उसने।3।
प्यार  की झील  बनाई थी  जतन से लेकिन
रख दिया दर्द का  एक  और शिकारा उसने।4।
जीत  के दिल  को मेरे ये तो न सोचा होगा
जंग में प्यार  की खुद को भी तो हारा उसने।5।
उसमें शायद कोई नदिया ही उफनती थी जो
'मेरे   अंदर   कोई  सैलाब  उतारा   उसने'।6।
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मौलिक व अप्रकाशित
आ0 भाई पंकज जी बधाई के लिए आभार ।
आ० भाई दिनेश जी हार्दिक आभार l
आ० भाई शिज्जु शकूर जी , इस सप्रेम उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद l
बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है ..बहुत बहुत बधाई 
.
लग रहा  ख्वाब  हकीकत में बदलता उसको
टूटता देख  लिया  आज  क्या  तारा उसने .... क्या कहने वाह 
आ० भाई नीलेश जी ,ग़ज़ल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार l
अच्छी ग़ज़ल लक्ष्मण भाई .... वाह !!!
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