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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-25 (रजत जयंती)

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अपने तीसरे वर्ष में प्रवेश कर गई हैI पिछले 24 अंकों में हमारे साथी रचनाकारों ने जिस उत्साह से इसमें हिस्सा लिया और इसे सफल बनाया, वह सच में हर्ष का विषय हैI कठिन विषयों पर भी हमारे लघुकथाकारों ने अपनी उच्च-स्तरीय रचनाएँ प्रस्तुत कींI विद्वान् साथिओं ने रचनाओं के साथ साथ रचनाओं पर सार्थक चर्चा भी की जिससे रचनाकारों का भरपूर मार्गदर्शन हुआI "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" के रजत जयंती को यादगारी बनाने के लिए इस बार आयोजन से विषय का बंधन हटा दिया गया है ताकि हमारे लघुकथाकार खुलकर अपनी प्रस्तुतियाँ दे सकेंI
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-25 (रजत जयंती)
अवधि : 29-04-2017 से 30-04-2017
विषय मुक्त (अपने मनपसंद विषय पर लिखें)
अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी दो हिंदी लघुकथाएँ एक साथ पोस्ट कर सकते हैं
1(अ). दोनों रचनाएँ एक साथ पोस्ट करें
1(ब). आयोजन में शामिल सभी रचनाकारों को एक आकर्षक प्रमाण-पत्र भेंट किया जाएगा।  
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि भी लिखे/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
5. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
6. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।
7. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
8. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है।
9. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आदरणीय - दोनों कथाये बढ़िया हैं . आपको बधाई 

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय 

 

मुहतरम जनाब मुज़फ्फर इक़बाल साहिब,आपकी दोनों लघु कथाएं अच्छा संदेश दे रही हैं ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय 

भाई मुज़फ्फर इकबाल सिद्दीक़ी जी, पोस्ट की हुई रचनाओं की पंकचुएशन इतनी पूअर है कि संवाद आपस में इतनी बुरी तरह गड्ड-मड्ड हो गए हैं कि कुछ समझ नहीं आ रहाI

आ. मैं एक बार फिर ध्यान से पढ़ता हूँ। मार्गदर्शन हेतु धन्यवाद। 

ज़रा देखकर बताएं भाईजान सम्प्रेष्ण कुछ बेहतर हुआ या नहीं? 

(1). फर्ज"
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”देख रुचि! अंश बहुत अच्छा लड़का है। घर के लोग भी कुलीन हैं और फिर बैंगलोर में ही है। शादी के बाद तुझे जॉब भी स्विच नहीं करना पड़ेगा। तेरे पिताजी ने तो पंडित जी से कुंडली भी मिलवा ली है। अब तू ना मत करना। इन्हें भी तेरी बहुत चिंता है। एक ही साल तो रह गया है रिटायर होने में।“
“नहीं माँ! मैं कितनी बार बोल चुकीं हूँ। अभी मुझे शादी नहीं करनी। जब करनी होगी तो बता दूँगी।"
"क्यों नहीं करनी? आखिर , तेरे हाथ पीले करना हमारा फर्ज है। धीरे-धीरे समय भी गुज़रता जा रहा है। हर काम का एक समय नियत है। समय रहते काम हो, तभी अच्छा लगता है। यदि तेरे दिल में कोई और बात है तो खुल कर बोल न। हम तेरी हर खुशी में राजी हैं। मैं मना लूँगी तेरे पिताजी को, तू बोल तो सही।"
“नहीं माँ! ऐसी-वैसी कोई बात नहीं है। तू मुझे गलत समझ रही है।"
“तो फिर सही क्या है?”
“अरे माँ! अब तू नहीं मानती तो सुन! आप लोगों ने हम दोनों बहनों को बड़े लाड़-दुलार से पाला-पोसा। हमारी शिक्षा दीक्षा से लेकर हमारे शौक, पसंद-नापसंद में कभी कोई कमी नहीं आने दी। इसी कारण पिताजी ने अपने मकान बनाने तक के बारे में कभी नहीं सोचा। अब पिताजी के रिटायर होने पर ये क्वार्टर खाली करना ही पड़ेगा न?"
”हाँ!”
“फिर श्रेया की पढ़ाई भी शेष है। अब तू ही बता. मेरा भी कुछ फर्ज बनता है कि नहीं?"
“----“
“माँ  मैंने तो प्रण किया है कि जब तक हम अपने घर में नहीं पहुँच जाएँगे, तब तक मैं शादी नहीं करूँगी।"
------------------------------
(2). सृष्टि

"गुड मॉर्निंग डार्लिंग।“
"मॉर्निंग सूरज! आजकल तुम्हारा मॉर्निंग वॉक भी कुछ ज़्यादा ही लम्बा होता जा रहा है। वॉक तो अपनी जगह है, फिर ये कभी शुक्ला जी तो कभी वर्मा जी के यहाँ टी पार्टी? और मोबाइल भी नहीं ले जाते। कभी ,कुछ लौटते समय मंगाना हो तो, किस से कहूँ?"
"आज तो मैडम कुछ ज़्यादा ही नाराज़ लग रही हैं। ये तुम्हारी बगीचे की चिड़ियाँ भी लगता है तुम्हारा गुस्सा भांप चुकीं हैं। बड़ी खामोश बैठीं हैं। नहीं तो सुबह से ही इस डाली से उस डाली पर चह -चहाती फिरतीं हैं। और ये गुलाब का फूल कितना शानदार खिला है, भई मान गए। बहुत मेहनत करती हो इन सब पर। तभी तो सुबह- सुबह यहाँ बैठ कर काफी पीने का आनन्द अलग ही  होता है।“
"अच्छा, अब जल्दी बताओ क्या हुआ है ?"
"तुम जान कर भी क्या करोगे सूरज? तुम्हें मेरी परवाह तो है नहींI आज काफी बनाने के लिए जैसे ही फ्रिज से दूध निकालना चाहा, पतीली हाथ से फिसल गई। सारा दूध किचिन में फैल गया। एक तो मुझे रात भर नींद भी तो नहीं आती। सर वैसे ही भारी था। सोचा काफी पींने से तबीयत हलकी हो जाएगी। मेरा मूड ख़राब हो गया, तुम्हारा फोन भी यहीं पड़ा था। मैं दूध किस से मंगाती?”
"मैं अभी ला देता हूँ। "
“सृष्टि, मैं कुछ दिन से देख रहा हूँ तुम देर रात तक जागती रहती हो,कभी कैंडी क्रेश तो कभी फेसबुकI"
"क्या बताऊँ सूरज, ये सब तो, किसी तरह दिल को बहलाने के तरीके हैंI अंदर से एक बेचैनी है,एक खालीपन, तुम तो समझते हो  न। मैं लाख चाह कर भी तुम्हें एक वारिस  नही दे पाई। अब तो सारी आस भी टूट चुकी है।"
“सृष्टि मैं कितने बार कह चुका हूँ। भूल जाओ इन सब बातों को। मुझे नहीं चाहिए वारिस।मैं ने सदा तुम्हें चाहा है। तुम भूल गईं जब मैंने तुम्हें कालेज के गार्डन में प्रपोज़ किया था और तुम जैसे, बिना सुने ही चल दीं थीं। मैं रात भर यही सोचता रहा था - "काश ! तुम एक बार मेरी हो जाओ।"
“हाँ सूरज फिर एक बार कालेज से लौटते समय तुमने अपनी बाइक ,मेरी कार के सामने अड़ा दी थी।  और कहा था कि या तो हाँ कर दो या.. मैं तुम्हारी ज़िद के आगे ....."
"फिर मुझे तुम मिल चुकी थीं। तुम ही मेरी सृष्टि हो।"

पहिली कथा बेटी को फ़र्ज़ याद दिलाती है दूसरी में पत्नि के मन की पीड़ा का सुंदर चित्रण बधाईयां आपको आद०मुजफ्फर इक़बाल सिद्दीक़ी जी ।

आ नीता जी आभार 

दोनों कथाएँ बढ़िया है. बधाई आदरणीय  मुज्जफर जी.

ओमप्रकाश जी बहुत बहुत शुक्रिया 

दायित्वबोध, परिस्थितियों और त्याग को चुनौती देती विवाह की उम्र... विडंबना पर बढ़िया रचना के लिए सादर हार्दिक बधाई आदरणीय MUZAFFAR IQBAL SIDDIQUI जी। आदरणीय योगराज प्रभाकर जी की टिप्पणी पर ग़ौर फ़रमाइयेगा।

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