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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-139

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 139वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा जनाब बशीर बद्र  साहब की गजल से लिया गया है|

"अब उसे देखे हुए, कितने ज़माने हो गए"

  2122          2122        2122        212

फ़ाइलातुन    फ़ाइलातुन     फ़ाइलातुन     फ़ाइलुन

बह्र: बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़

रदीफ़ :-  हो गए

काफिया :- आने(पुराने, सयाने, तराने, जाने, दाने, सुहाने आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनांक 28 जनवरी दिन शुक्रवार  को हो जाएगी और दिनांक 29 जनवरी  दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

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मंच संचालक

राणा प्रताप सिंह 

(सदस्य प्रबंधन समूह)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति व स्नेह के लिए आभार। 

आपका कथन सही है कि नेता सयाने ही होने चाहिए। किन्तु धूर्तता भरा सयानापन तो कतई अच्छा नहीं ...सादर

आदरणीय लक्ष्मण जी, नमस्कार

ख़ूब ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार कीजिए

सादर

आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, तरही मिसरे पर निराले अंदाज़ की ग़ज़ल और गिरह के शे'र के लिए बधाई स्वीकार करें। सादर। 

आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। स्नेह व उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।

आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद।

आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'  जी
सादर अभिवादन
बढ़िया तरही ग़ज़ल कही आपने। बधाई स्वीकारें।

आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति व सराहना के लिए धन्यवाद।

बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही, आपने आदरणीय भाई लक्ष्मण सिंह मुसाफिर साहब ! बधाई स्वीकार कीजिए  ! 'सयाने' का प्रयोग आपका मुझे  सही लगा।  इस सम्बन्ध में, मैं, आदरणीय नीलेश नूर  साहब  से सहमत नही हूँ । ग़मे दौरा  पर अच्छा  प्रस्तुतीकरण है !

आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और समर्थन के लिए आभार...

आदरणीय लक्ष्मण जी, अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें

आ. भाई संजय जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।

आ. भाई दण्डपाणि जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।

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