परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 136वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा जनाब निदा फ़ाज़ली साहब की गजल से लिया गया है|
"एक ज़रा सी ज़िद ने आख़िर दोनों को बरबाद किया "
22 22 22 22 22 22 22 2 (कुल जमा 30 मात्राएं)
फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा
बह्र: मुतक़ारिब असरम मक़्बूज़ महज़ूफ़ (बह्रे मीर)
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 28 अक्टूबर दिन गुरुवार को हो जाएगी और दिनांक 29 अक्टूबर दिन शुक्रवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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आ. लक्ष्मण जी,
//इतिहासों की भूलों को रट यौवन तक ढब याद किया// इतिहास हर दिशा और दशा में एकवचन ही रहेगा..अत: इतिहासों कहना उचित नहीं है. 
//देश तबाही के पथ पर नित आजादी पा खूब चला// क्या आज़ादी के बाद सिर्फ तबाही के ही पथ पर चला ? 
//नेता पल पल भ्रष्ट हुए पर अन्न उगाया हलधर ने// नेता भ्रष्ट न भी होते तो भी अन्न हलधर ही उगाता. मिसरा दोमुंहा लग रहा है.
//जान गँवाकर देश को लोगो सैनिक ने फौलाद किया// एक ही सैनिक तो नहीं रहा होगा??
.
कुर्सी पायी आन्दोलन से भुला दिया बदलावों को
परिवर्तन का यूँ जिसने भी सुनते हैं सिंहनाद किया।५। आप शायद कहना यूँ चाहते हैं...
आन्दोलन से कुर्सी पा कर भुला दिया बदलावों को... सानी के सिंहनाद में लय भंग है ..बेबहर नहीं है क्यूँ कि २१२१ ले सकते हैं बशर्ते लय भंग न हो .
.
ग़ज़ल के प्रयास हेतु बधाई.. थोडा चिन्तन और होता तो रचना बेहतर होती.
सादर 
 
आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह एवं विस्तृत टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार।
// इतिहास हर दिशा और दशा में एकवचन ही रहेगा..अत: इतिहासों कहना उचित नहीं है. //
साहित्य के साथ साथ अन्य जगहों पर भी इतिहासों शब्द का प्रयोग होता पाया तो मैंने भी लिखा। यथा-
(हीन मूल की ओर देख जग गलत कहे या ठीक,
वीर खींच कर ही रहते हैं इतिहासों में लीक।
- रामधारी सिंह दिनकर)
फिर भी इसमें बदलाव किया है देखिएगा-
भूल न हों इतिहास की फिर से यूँ रटकर तो याद किया
लेकिन किस शासक ने खुद को उनसे है आजाद किया।१।
// क्या आज़ादी के बाद सिर्फ तबाही के ही पथ पर चला ? //
लगता है यहाँ मैं जो बात कहना चाह रहा था सही से कह नहीं पाया । उसे बेहतर ढंग से प्रस्तुत करने का प्रयास यूँ किया है देखिएगा-
"देश तरक्की और भी करता राह न भूले होते जो"
नेता जनता दोनों ने बस कुर्सी को आबाद किया।३।
// नेता भ्रष्ट न भी होते तो भी अन्न हलधर ही उगाता. मिसरा दोमुंहा लग रहा है./
उचित कहा आपने इसे यूँ देखिएगा-
"नेता पल पल भ्रष्ट हुए हैं देश किया कमजोर बहुत"
//जान गँवाकर देश को लोगो सैनिक ने फौलाद किया// एक ही सैनिक तो नहीं रहा होगा??// 
सही कहा आपने। एक ही सैनिक नहीं रहा होगा। मैंने यहाँ "सैनिक" को जातिवाचक संज्ञा के तौर पर प्रयुक्त किया है । यदि यह उचित नहीं है तो इस प्रकार देखिएगा-
"सेनाओं ने जान लगाकर देश को है फौलाद किया।।"
.
// सानी के सिंहनाद में लय भंग है ..बेबहर नहीं है क्यूँ कि २१२१ ले सकते हैं बशर्ते लय भंग न हो .//
जी, सिंहनाद में "सिंह" वस्तुतः "सिह " की तरह उच्चारित हो रहा है । अतः 221 गणना हो रही है। इसमें मेरे हिसाब से लय बाधित नहीं हो रही। सादर...
 
आ. लक्ष्मण जी,
अब आपने जो बदलाव किये हैं उससे रचना नए आयाम हासिल कर रही है.. 
आप से अपेक्षा है कि हर बार आप ग़ज़ल पोस्ट होने से पहले कई बार मिसरों को गुनेंगे और अपना काव्यकर्म और बेहतर करते जाएँगे..
शुभकामनाएं 
सादर आभार आदरणीय..
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब ' तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है . बधाई स्वीकार करें I
'इतिहासों की भूलों को रट यौवन तक ढब याद किया
लेकिन किस शासक ने खुद को उनसे है आजाद किया'--मतले के दोनों मिसरों में मुझे रब्त नहीं लगा , देखियेगा I 
'कुर्सी पायी आन्दोलन से भुला दिया बदलावों को '---इस मिसरे में "आन्दोलन' शब्द की मात्रा पर मुझे संशय है I
गिरः ठीक है I
'जो हैं पड़ोसी प्यार की भाषा आपस में सब भूले हैं'---इस मिसरे को अगर यूँ कहें तो रवानी में आ जाएगा :-
" यार  पड़ोसी प्यार की भाषा आपस में सब भूले हैं"
'निज गौरव का मान सभी ने देखो सदियों बाद किया' ---इस मिसरे में सौती क़ाफ़िया इस्तेमाल किया है आपने इससे बचना चाहिए I 
एक बात का ध्यान रखें कि ग़ज़ल में विराम चिन्हों का प्रयोग उचित नहीं होता I
बाक़ी शुभ शुभ I
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह ,उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार।
 //मतले के दोनों मिसरों में मुझे रब्त नहीं लगा , देखियेगा I //
इसे बदलकर यूँ किया है देखिएगा-
 भूल न हों इतिहास की फिर से यूँ रटकर तो याद किया
 लेकिन किस शासक ने खुद को उनसे है आजाद किया।१।
//-इस मिसरे में "आन्दोलन' शब्द की मात्रा पर मुझे संशय है I //
 स्वर के बाद का आधा व्यंजन उसी में समाहित होता है। इस हिसाब से तो ठीक ही है। फिर भी आ. भाई सौरभ जी की प्रतीक्षा कर लेते हैं। अपेक्षित बदलाव फिर भी सोचता हूँ।
'भूल न हों इतिहास की फिर से यूँ रटकर तो याद किया
लेकिन किस शासक ने खुद को उनसे है आजाद किया'
बदलाव अच्छा है, ऊला में 'हों' को "हो" कर लें ।
जी, सादर आभार..
आ. भाई दण्डपाणि जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।
आदरणीय लक्ष्मण जी, नमस्कार
ख़ूब ग़ज़ल हुई है, बधाई स्वीकार कीजिये।
गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर है देखियेगा।
सादर
आ. रचना जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।
आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल की अच्छी कोशिश हुई है परिमार्जन के बाद ग़ज़ल और निखरेगी, बधाई स्वीकार करें। सादर।
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