आदरणीय साहित्य प्रेमियो,
जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :
"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-135
विषय - "भूली बिसरी यादें"
आयोजन अवधि- 15 जनवरी 2022, दिन शनिवार से 16 जनवरी 2022, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.
ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.
उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --
तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.
अति आवश्यक सूचना :-
रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.
आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.
इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 15 जनवरी 2022, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।
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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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मंच संचालक
ई. गणेश जी बाग़ी
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
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आदरणीय भाई हिरेन अरविंद जोशी "अबोध" जी, सादर अभिवादन। मंच पर आपकी पहली रचना का स्वागत है। प्रदत्त विषय पर रचना का अच्छा प्रयास किया है। हार्दिक बधाई स्वीकार करें। थोड़े प्रयास से यह बेहतर हो सकती है। कुछ टंकण त्रुटियाँ हैं उन्हें सुधारें । सादर
रखें हैं - रखे हैं
इतर - इत्र
पेगाम - पैगाम
आरजूँ -आरजू
चुड़ी - चूड़ी
झुमते - झूलते
साहील - साहिल
भीगों -भिगो
अधुरी - अधूरी
सूना -सुना
बीते पलों पर खूबसूरत रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय
वाह वाह आदरणीय जोशी साहब प्रदत्त विषय को केंद्रित अच्छी रचना प्रस्तुत हुई है बधाई स्वीकार करें ।
ग़ज़ल: मुहब्बत का ज़माना वो अभी तक याद है...
1222 1222 1222 12
मुहब्बत का ज़माना वो अभी तक याद है
बने हम तुम फ़साना वो अभी तक याद है
तुम्हारा छुप के आना वो अभी तक याद है
नहीं फिर ओट जाना वो अभी तक याद है
हुई रंगीन शामें जब जतन से हम मिले
तुम्हारा खिलखिलाना वो अभी तक याद है
पहुँचा जो मैं कभी सज-धज मज़ा करते तुम्हीं
मुझे हँसते बनाना वो अभी तक याद है
सताने की तुम्हें आदत परेशाँ जो मैं था
नहीं हूँ घर बताना वो अभी तक याद है
चलाते नाव काग़ज की किनारे हम नदी
तुम्हारा झिलमिलाना वो अभी तक याद है
वो गुस्सा नाक पर आना हमेशा नाराज़ी
कि रातों तिलमिलाना वो अभी तक याद है
कहाँ तक अब करूँ मैं ज़िक्र 'चेतन' वो अभी
कि हँसते-हँसते जाना वो अभी तक याद है ।
मौलिक एवम् अप्रकाशित
आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई।
यह मिसरा बह्र में नहीं लग रहा और गेयता भी बाधित हो रही है देखिएगा-
पहुँचा जो मैं कभी सज-धज मज़ा करते तुम्हीं
आदरणीय, भाई लक्ष्मण सिंह मुसाफिर साहब, आपने ग़ज़ल तक पहुँचने की ज़हमत की, आपको अच्छी लगी, प्रोत्साहित हूँ! गेयता प्रभावित हो रही है, सुधार लेता हूँ, इसके लिए आप का धन्यवाद, बंधुवर ! "कि पहुँचा जब कभी सज-धज मज़ा करते तुम्हीं" !
खूबसूरत गज़ल।बधाई आदरणीय। एक पुरानी गज़ल की याद दिलाती हुई'चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है'
अच्छी ग़ज़ल कही है आदरणीय चेतन प्रकाश जी, दाद स्वीकार करें ।
माँ के लिये
________
तू नहीं यहाँ है
माँ फिर भी
ये कौन मुझे छू जाता है
चटनी अचार के
मर्तबान
स्वादों की अद्भुत
थे खदान
ठसके में रक्खा
रहता था
टेबल पर तेरा
पानदान
संग पापड़ बड़ियों के
छत पर
सूखा करते किस्से
मन भर
तेरे होने की
खुशबू से
महका करता था
सारा घर
द्वारे की तुलसी
का पौधा
शुभता को तेरी गाता है
हम सब में ही थी
तू खोई
अक्सर जागी थी
कम सोई
कष्टों पर सबके
पागल माँ
वो कम और
ज्यादा तू रोई
सब पर डाले
आँचल छाया
घूमा करती
निर्बल काया
खुद पर तू बनी
रही निष्ठुर
सबके सुख में ही
सुख पाया
फंदों में बुनकर
नेह तेरा
अब भी मुझको गर्माता है
ये कौन मुझे छू जाता है
_______
मौलिक व अप्रकाशित
आह....ये कौन मुझे छू जाता है। बहुत ही मर्मस्पर्शी करवटें यादों की। बधाई आदरणीया।
हार्दिक आभार आदरणीय
आ. प्रतिभा बहन, प्रदत्त विषय पर प्रभावशाली रचना हुई है । हार्दिक बधाई।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
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