आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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अच्छी लघुकथा है भाई सुनील वर्मा जी, हीरोगिरी करने से पहले वाकई सोच समझ लेना चाहिए, वरना अपने ही गाल लाल होते हैंI
आ.सुनील जी फिता काटने की बधाई स्वीकर किजीए. तमाशबीन लोग सिर्फ़ तमाशबीन की कौम खडी करना चाहते है.उन्हे किसी का महानायक बनना कैसे मंजूर होता. बधाई इस रचना के लिए
क्या बात है सुनील भाई, हद हो गई... बच्चा नासमझ है या वो बड़े? बच्चे के सराहनीय कदम पर सज़ा दे रहें हैं क्योकि वो बालक बड़ों जैसा तमाशबीन नहीं है. तमाचा बच्चे गाल पर नहीं समाज के गाल पर है . प्रभाव छोडती कथा पर ह्रदय से शुभकामनाएं.
आयोजन का श्रीगणेश करने हेतु आपको शुभकामनाएं। कथा पर थोड़ी देर बाद हाज़िर होता हूं।
संस्कार बचपन से ही पड़ते हैं अपने लिए कुछ दूसरों के लिए दोयम दर्जा अपनाते हैं तमाशबीन ऐसे ही तो बनते हैं बहुत अच्छी लघु कथा है सुनील भैया हार्दिक बधाई .
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