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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-114 

विषय - "उम्मीद की किरण"

आयोजन अवधि- 11 अप्रैल 2020, दिन शनिवार से 12 अप्रैल 2020, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.

ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 11 अप्रैल 2020, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।

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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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मंच संचालक
ई. गणेश जी बाग़ी 
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
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विषयांतर्गत सुन्दर पंक्तियाँ। बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय  गोपाल सरजी

कोरोना के अच्छे प्रभावों और बुरे प्रभावों का वर्णन करती सुन्दर रचना सृजित हुई है आदरणीय Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' जी , क्या कहने | 

  • आदरणीय डॉ गोपाल कृष्ण जी, सादर नमन! उत्तम सर्जना हुई है। सादर बधाई

आदरणीय डॉ. गोपाल कृष्ण भट्ट 'आकुल' साहब क्या शानदार प्रस्तुति मंच पर अवतरित हुई है, बहुत बहुत बधाई। 

गीत
.
सुलग उठी चिंगारी है,
डर धड़कन पर तारी है,
विश्वहाट भयभीत दिखा,
कैसी यह लाचारी है।
.
बूढ़े बरगद झुलस रहे,
कहता पनघट का नीरव,
कोठरियों में जा बैठा,
सारी जगती का वैभव।।
राजभवन पर आन पड़ी,
मोटी जिम्मेदारी है,
.
सूने हैं उद्यान सभी,
और चिरैया है प्यासी,
सुस्ताती सड़कें सारी,
दौड़ें जो बारह मासी,
जिस पर फूलों का मौसम,
शुष्क पड़ी वह क्यारी है,
.
चिमनी का मुख बंद हुआ,
उजला तन कालिंदी का,
आशा की हर एक किरण,
गीत गा रही हिंदी का,
धैर्य अभी तक जिन्दा है,
और सभी पर भारी है,
 .
विश्वहाट भयभीत दिखा,
कैसी यह लाचारी है।
.
मौलिक/अप्रकाशित.

अति सुंदर गीत है आ० अशोक कुमार रक्ताले जी. हार्दिक बधाई स्वीकार करें.

आदरणीय प्रभाकर जी सादर प्रणाम, प्रस्तुति पर उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार.सादर 

आदरणीय अशोक भाईजी

सच है जीवन के दो पहलू हैं ... आज हर प्राणी दुखी है परंतु प्रकृति नदियाँ वायु अर्थात पूरे पर्यावरण में सकारात्मक बदलाव है। आपकी रचना दोनों दृष्टि कोण को लेकर चली है और बेहतर बनी है। इस सामयिक सुंदर रचनाके लिए हृदय स्रे बधाई स्वीकार कीजिए।

आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, सब बुरा ही बुरा है किन्तु इसके बीच कुछ अच्छा भी हुआ है. प्रस्तुत रचना को सराहने के लिए आपका ह्रदय से आभार. सादर 

बूढ़े बरगद झुलस रहे,
कहता पनघट का नीरव,
कोठरियों में जा बैठा,
सारी जगती का वैभव।।
राजभवन पर आन पड़ी,
मोटी जिम्मेदारी है,

वाह... सुंदर नवगीत. आपने इसे गीत लिखा. वैसे सबकी अपनी अपनी परिभाषा है. बधाई आपको.

आदरणीय डॉ. गोपाल कृष्ण भट्ट साहब सादर, जी! यह नवगीत ही है किन्तु रचना करने के पूर्व ही शीर्षक में गीत लिखा था असावधानी से वही पोस्ट में भी आ गया. रचना पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर 

आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी प्रदत्त विषय पर अनुपम प्रस्तुति हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय सादर

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