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आदरणीय काव्य-रसिको !

सादर अभिवादन !!

  

’चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का यह एक सौ चौसठवाँ योजन है।.   

 

छंद का नाम -  छंद मनहरण घनाक्षरी 

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 

22 फरवरी’ 25 दिन शनिवार से

23 फरवरी 25 दिन रविवार तक

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.  

मनहरण घनाक्षरी छंद के मूलभूत नियमों के लिए यहाँ क्लिक करें

जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.

*********************************

आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -

22 फरवरी’ 25 दिन शनिवार से 23 फरवरी 25 दिन रविवार तक रचनाएँ तथा टिप्पणियाँ प्रस्तुत की जा सकती हैं। 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करें.
  4. अपने पोस्ट या अपनी टिप्पणी को सदस्य स्वयं ही किसी हालत में डिलिट न करें. 
  5. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  6. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  7. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. 
  8. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  9. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम  

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Replies to This Discussion

आयोजन में आपका हार्दिक स्वागत है 

आदरणीय मंच संचालक , पोस्ट कुछ देर बाद  स्वतः  डिलीट क्यों हो रहा है |

मनहरण घनाक्षरी छंद
++++++++++++++++++

कुंभ उनको जाना है, पुन्य जिनको पाना है, लाखों पहुँचे प्रयाग, मन में उल्लास है|
संगम के आस पास, देख भीड़ थे उदास, छोटी बड़ी नाव देख, जाग गई आस है||
जाना जो बीच धार है, खेवैया भी तैयार है, लहरों से जूझने का, आनंद उठाइए|
जहाँ भी चाहो घूमिए, नावों में होड़ देखिए, जी भर के डुबकियाँ, कहीं भी लगाइए||

सरस्वती लुप्त वहाँ, तीन का संगम जहाँ, गंगा और यमुना की, धार देख आइए|
नदियों का भिन्न रंग, बहने का भिन्न ढंग, एक शांत एक तेज, दोनों में खो जाइए||
अभावों में जी लेते है, नागा मस्त रहते हैं, कहते हैं मन को ही, शिव में लगाइए|
राधे राधे बोलकर, कृष्ण नाम जोड़कर, भू में आवागमन से, छुटकारा पाइए||

++++++++++++++

मौलिक अप्रकाशित

  • आदरणीय अखिलेश जी 
    //नदियों का भिन्न रंग, बहने का भिन्न ढंग, एक शांत एक तेज, दोनों में खो जाइए//वाह..वाह..कुंभ घुमा दिया आपने...बहुत सुन्दर भावमय प्रवाहमय छंद रचना। हार्दिक बधाई आपको 

आदरणीया प्रतिभाजी, 

रचना की प्रशंसा  के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार|

आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्र को परिभाषित करती सुन्दर प्रस्तुतियाँ हैं आपकी. हार्दिक बधाई स्वीकारें. गेयता की दृष्टि से द्वितीय दंडक प्रथम से अधिक अच्छा प्रवाह लिए हुआ है. सादर 

चित्रोक्त भाव सहित मनहरण घनाक्षरी छंद

प्रिय की मनुहार थी, धरा ने श्रृंगार किया,
उतरा मधुमास जो, प्रकृति सजी - धजी है ।
फूल खिले उपवन, वन बागीचे घाटी हैं,
ऋतुराज वसंत की,,महिमा वो सजी है।

पो बारह हुई अब, मजदूरों की घाटी में,
लौटी वो रौनक डल, झील और बोट है। ।
फर्राटे भरते नव, दम्पत्ति दौड़ाते डोंगी,
लोकतंत्र से आतंक, को वो लगी चोट है।

हँसती गाती धरती, खुश सारा काश्मीर है,
मिलन प्रिया से होता, वहाँ गूँजता भँवरा है।
नाव - डोगियों गुँथे जो, प्रेमी जोड़े बतियाते,
डाल - डाल कलरव है, माहौल सुधरा है।

मौलिक एवम् अप्रकाशित

मैं प्रथम तू बाद में,वाद और विवाद में,क्या धरा कुछ  सोचिए,मीन मेख भाव में

धार जल की शांत है,या गर्म है विवाद से,सोच सारे छोड़ आओ,घूमते हैं नाव में
पुुण्य पाप से परे है,पर्व अपना खास है, बोलते कुछ लोग हैं,आँय बाँय ताव में
प्रश्न भी हैं उठ रहे,हैं व्यवस्था पर कई,पर नहीं कमी कहीं,जोश और चाव में
____
मौलिक व अप्रकाशित 

आदरणीया प्रतिभाजी, 

घनाक्षरी के विधान  एवं चित्र के अनुरूप हैं चारों पंक्तियाँ|  हार्दिक बधाई|

प्रथम पंक्ति में जो प्रवाह है वो गेयता की दृष्टि  से  दूसरी तीसरी और चौथी में क्रमशः कम होती गयी है| 

आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार अच्छी घनाक्षरी रची है. गेयता के लिए अभी और कार्य किये जाने की आवश्यकता है. कुम्भ आयोजन पर  चौपालों और विशेष रूप से राजनीतिक हलकों में हो रही चर्चा को भी आपने चिमटी से छूने का प्रयास किया है. सादर   

मनहरण घनाक्षरी

 

दिखती  न  थाह  कहीं, राह  कहीं  और  कोई, गंग  की  तरंग  पर, डोलती  उमंग है।

नाव-नाव  पर  बसे, गाँव  हैं  रंगीले  कई, और  गाँव-गाँव  दिखे, लिए  भिन्न रंग है।

कुम्भ के नहान स्नान को हैं आये लोग सभी, समझ न लेना होती, यहाँ कोई जंग है।

देख-देख  भरता है, विश्व यहाँ  आहें सारा, देख-देख  दृश्य भिन्न, दुनिया  ही दंग है।।

#

मौलिक/अप्रकाशित.

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