For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-114

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 114वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब  फ़िराक़ गोरखपुरी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"तुझ से ऐ दिल न मगर काम हमारा निकला"

2122     1122      1122        22

फाइलातुन      फइलातुन       फइलातुन      फेलुन   

(बह्र: रमल मुसम्मन् मख्बून मक्तुअ )

रदीफ़ :- निकला।
काफिया :- आरा( सितारा,नज़ारा, हारा, किनारा, इशारा आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 27 नवंबर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 28 दिसम्बर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 27 दिसंबर दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 3984

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आ. भाई दण्डपाणी जी, तरही मिसरे पर सुन्दर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

बहुत अच्छे अशआर निकले हैं भाई दंडपाणि नाहक जी। 

जनाब 'नाहक़' जी आदाब, ग़ज़ल अभी समय चाहती है,मुशायरे में सहभागिता के लिए धन्यवाद,प्रयासरत रहें ।

आदाब नाहक साहिब, आपका बहुत शुक्रिया हौसला-अफ़ज़ाई के लिए, पहली बार मुशायरे में शिरकत कर रहा हूँ, इसलिए ज़रा डरते-डरते ही पेश की थी ये ग़ज़ल यहाँ। आपको भी आपकी सुंदर ग़ज़ल के लिए दिली मुबारकबाद। आपके ये दो अश'आर मुझे खास तौर पर बहुत अच्छे लगे:

बस्तियाँ राख़ हुई क्यों मैं बताऊँ क्या अब
हाँ मगर जब भी कुरेदा तो इशारा निकला

थी वज़ह कुछ तो कि हम को भी जहाँ में 'नाहक'
जो भी अपना सा लगा इश्क़ का मारा निकला

आदरणीय दंड पानी नाहक जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है ग़ज़ल कहने के लिए बहुत-बहुत बधाइयां

नाहक जी प्रयास अच्छा है कोशिश जारी रखिये 

 

2122, 1122, 1122, 22


देखो अंदाज़ा ग़लत कितना हमारा निकला
जिसको समझे थे भँवर हम वो किनारा निकला |

हम जिसे छोड़ चले आए थे कहकर पत्थर

शख़्स वो आज सभी कहते हैं प्यारा निकला|

हाल ए दिल अपना किसी और से भी कह न सके
यहाँ हर आदमी दीवाना तुम्हारा निकला |

फिर किसी अजनबी शानों को भिगो आए हैं
ज़िक्र महफ़िल में जो फिर आज तुम्हारा निकला |

क्या मसीहा, कि रियाज़ी दां, के आलिम कोई
किसी दाना से मेरे ग़म का न चारा निकला |

ज़िन्दगी भर था भरम ख़ूब कमाए हैं हम
मौत ने जोड़ा घटाया तो ख़सारा निकला |

उम्र भर डूबा रहा फ़िक्र में तू औरों की
"तुझसे ऐ दिल न मगर काम हमारा निकला "


मौलिक अप्रकाशित

जनाब अनीस 'अरमान' साहिब आदाब,तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

'शख़्स वो आज सभी कहते हैं प्यारा निकला'

इस मिसरे में क़ाफ़िया 'प्यारा' उचित नहीं,क्योंकि ऊला में 'पत्थर' शब्द आया है,इस मुनासिबत से "हीरा" क़ाफ़िया उचित रहेगा,ग़ौर करें ।

'फिर किसी अजनबी शानों को भिगो आए हैं'

इस मिसरे में 'हैं' की जगह " हम" कर लें । 

ज़िक्र महफ़िल में जो फिर आज तुम्हारा निकला |

'क्या मसीहा, कि रियाज़ी दां, के आलिम कोई'

इस मिसरे  का शिल्प कमज़ोर है,यूँ कर सकते हैं:-

'हो मसीहा कि रियाज़ी दाँ कि आक़िल कोई'

'ज़िन्दगी भर था भरम ख़ूब कमाए हैं हम 
मौत ने जोड़ा घटाया तो ख़सारा निकला'

इस शैर का मज़मून कमज़ोर है, मौत जोड़ती घटाती नहीं,सिर्फ़ इंसान की रूह क़ब्ज़ कर लेती है,इस शैर को यूँ कर सकते हैं:-

'ज़िन्दगी भर था भरम ख़ूब कमाया हमने

एक दिन जोड़ के देखा तो ख़सारा निकला'

गिरह ख़ूब हुई ।

समर कबीर साहब ग़ज़ल तक आने और अपनी इस्लाह से गज़ल को सजाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया, आपकी सारी बातें सही हैं कुछ कमी रह गई मुझसे, सुधार कर लेता हूँ 

बहुत बढ़िया ग़ज़ल जनाब अनीस अरमान जी। समर साहिब ने तफ़सील से सब कह ही दिया है।

अजय गुप्ता जी ग़ज़ल तक आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया 

आ. भाई अनीस जी, अच्छा प्रयास हुआ है । हार्दिक बधाई।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service