For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बंधन की डोरियां - डॉo विजय शंकर

कुछ डोरियां
कच्चे धागों की होती हैं ,
कुछ दृश्य होती हैं ,
कुछ अदृश्य होती हैं ,
कुछ , कुछ - कुछ
कसती , चुभती भी हैं ,
पर बांधे रहती हैं।
कुछ रेशम की डोरियां ,
कुछ साटन के फीते ,
रंगीले-चमकीले ,फिसलते ,
आकर्षित तो बहुत करते हैं ,
उदघाट्न के मौके जो देते हैं ,
पर काटे जाते हैं।
इस रेशम की डोरी
की लुभावनी दौड़ में ,
ज़रा सी चूक ,
बंधन की डोरियां
छूट गईं या टूट गईं ,
रेशम की डोरियां
भी फिर हाथ न आईं ,
फिसल गईं ,
किसी काम न आईं।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 686

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 8, 2018 at 9:52am

हृदय स्पर्शी रचना के लिए हार्दिक बधाई । आ. भाई विजय जी ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 8, 2018 at 1:35am

आदरणीय समर कबीर साहब , नमस्कार , आप बड़े सहज भाव से कविता की तह तक पहुँच जाते हैं , विषय कोई भी हो। आपकी शानदार उपस्थिति के लिए आभार और बधाई के लिए धन्यवाद। सादर।

Comment by Samar kabeer on January 6, 2018 at 5:30pm

आली जनाब डॉ.विजय शंकर जी आदाब,इस्तिआरों की ज़बान में बात कहने का सलीक़ा बहुत कम लोगों को नसीब होता है, और उन कम लोगों में आपका भी शुमार है,बहुत उम्दा कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 6, 2018 at 6:09am

आदरणीय मोहित मिश्र ( मुक्त ) जी , हार्दिक आभार एवं बहुत बहुत धन्यवाद , सादर।

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 5, 2018 at 8:22am

आदरणीय सुरेंद्र नाथ कुशक्षत्रप जी , रचना की प्रशस्ति के लिए हार्दिक आभार , बधाई हेतु बहुत बहुत धन्यवाद , सादर।

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 5, 2018 at 8:20am

आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी , रचना को मान देने के लिए हार्दिक आभार , बधाई हेतु बहुत बहुत धन्यवाद , सादर।

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 5, 2018 at 8:19am

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी , आपको कविता पसंद आई, लेखन सार्थक हुआ। आपका ह्रदय से आभार , बधाइयों के लिए अनेक अनेक धन्यवाद , सादर।



Comment by नाथ सोनांचली on January 4, 2018 at 1:51pm

आद0 विजय शंकर जी सादर अभिवादन। एकदम तथ्यपरक बात कह दी आने। आजकल दिखावे का समय है।रिश्ते गौड़ हो गए हैं।बधाई आपको। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर। सादर

Comment by Mohammed Arif on January 4, 2018 at 12:26pm

आदरणीय विजय शंकर जी आदाब,

                        सच है आजकल उद् घाटन वाली डोरियों पर ज़ियादा ध्यान है बनिस्बत रिश्तों की डोरियों के । रिश्तों की डोर टूट भी रही और छूट भी रही है ।हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 4, 2018 at 10:11am

वाह। इशारों-इशारों में, गागर में सागर सी बेहतरीन विचारोत्तेजक सारगर्भित रचना के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब डॉ. विजय शंकर साहिब। कुछ में भावनायें हैं, सच्चाई है... तो बहुत कुछ है औपचारिकताएं हैं, आडंबर है। सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
13 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
20 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
20 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
21 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
22 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service