आदरणीय साथिओ,
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आ० आरिफ खान साहिब, दोनों रचनाएँ उम्दा हैं जिस हेतु सादर बधाई निवेदित हैI दरअसल पहली कथा का कथानक लाजवाब है, यदि धरती और पेड़ के बीच हुए संवाद के बाद कहानी को थोडा ट्विस्ट दे दिया जाता तो लाजवाब लघुकथा बन जातीI यदि इस कथानक पर यह नाचीज़ लघुकथा लिखता, तो धरती का ममतामयी रूप और उभार कर सामने लाता तथा हाथ में कुल्हाड़ा लिए तीसरे पात्र को कथा में अवश्य लेताI इशारा कर दिया है, अब आगे आप देखेंI
सीरत लघुकथा लाजवाब है, लेकिन इससे कहीं उम्दा हो सकती थीI लेकिन सीरत तो सूरत वालों के पास भी तो होती है न सर? "सिर्फ सीरत" सुनने के बाद मिस्टर वर्मा यदि हाथ में दारू का गिलास पकड़े किसी कोने में किसी बेगानी औरत के साथ रोमांस करते दिखते तो कैसा रहता?
आदरणीय आरिफ भाई
दोनों लघु कथा अच्छी लगी , दूसरी और भी अच्छी । ह्रदय से बधाई इस प्रस्तुति के लिए।
दोनों ही कथाएं अच्छी है . पर दूसरी वाली कथा ज्यादा पसंद आई | हार्दिक बधाई सर |
लाजवाब लघु कथा हुई है दोनों ही श्री मोहम्मद आरिफ साहब | बहुत बहुत बधाई
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