ई-मौजी ...
आज के दौर में
क्या हम ई-मौजी वाले
स्टीकर नहीं हो गए ?
भावहीन चेहरे हैं
संवेदनाएं
मृतप्रायः सी जीवित है
अब अश्क
अविरल नहीं बहते
शून्य संवेदनाओं ने
उन्हीं भी
बिन बहे जीना
सिखा दिया है
हर मौसम में
सम भाव से
जीने का
करीना सिखा दिया है
अब कहकहा
ई-मौजी वाली
मुस्कान का नाम है
ई-मौजी सा ग़म है
ई-मौजी से चहरे हैं
ई-मौजी से रिश्ते हैं
हर क्रिया की
प्रतिक्रिया का नाम
ई-मौजी है
लगता है
ई-मौजी अब
नवयुग की पहचान है
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी सृजन में निहित भावों को अपने स्नेहिल शब्दों से मान देने का हार्दिक आभार।
आदरणीया प्रतिभा जी रचना के मर्म को अपनी आत्मीय प्रशंसा से शोभित करने का हार्दिक आभार।
आदरणीय सतविंदर जी रचना के मर्म को अपनी सहमति देती प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार। आदरणीय सीख पर आपका संशय ठीक है ये टंकण त्रुटि है न कि मात्रिक ज्ञान की अज्ञानता। मैं इसे संशोधित कर पुनः प्रेषित कर दूंगा। इस हेतु आपका हार्दिक आभार।
सामयिक विषय की आपकी ये रचना बहुत प्रभावी है, हम सब को अपने अन्दर कहीं झाँकने के लिए प्रेरित करती हुई हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी
आदरणीय Mohammed Arif साहिब सृजन के भावों पर अपनी सहमति देती आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।
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