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ग़ज़ल- मिल गया है आपका वह ख़त पुराना शुक्रिया

2122 2122 2122 212
मिल गया है आपका वह ख़त पुराना शुक्रिया ।
याद आया फिर मुझे गुज़रा ज़माना शुक्रिया ।।

ढल गई चेहरे की रौनक ढल गया वह चाँद भी ।।
हुस्न का अब होश में आकर बुलाना शुक्रिया ।।

कुछ अना के साथ में नज़रों की वो तीखी क़सिस।
बाद मुद्दत के तेरा यह दिल जलाना ,शुक्रिया ।।

मुस्तहक़ थी आरजू पर हो सकी कब मुतमइन ।
वक्त पर आवाज देकर यूँ बुलाना शुक्रिया ।।

जिक्र कर लेना मुनासिब है नहीं इस दौर में ।
फिर गमे उल्फ़त का देखो लौट आना, शुक्रिया ।।

यह गुलाबी पंखुड़ी खत में मिली सूखी हुई ।
दे दिया है इश्क का फिर से फ़साना शुक्रिया ।।

थी कहीं मजबूरियां तो सच बता देती उसे ।
आसुओं का सुन लिया सारा तराना शुक्रिया ।।

चुप रहा क़ातिल की बस्ती में सराफत देखिये ।
गैर के पहलू में जाकर मुस्कुराना शुक्रिया ।।
नवीन
मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 1, 2017 at 8:45pm
आदरणीय नवीन जी काबिले तारीफ़ इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई और नवबर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
Comment by Pankaj sagar on December 31, 2016 at 4:58pm
बहुत खूबसूरत सरजी
Comment by Naveen Mani Tripathi on December 30, 2016 at 4:49pm
आ0सुशील शर्मा जी सादर आभार ।
Comment by Sushil Sarna on December 30, 2016 at 3:05pm

मिल गया है आपका वह ख़त पुराना शुक्रिया ।

याद आया फिर मुझे गुज़रा ज़माना शुक्रिया ।।

ढल गई चेहरे की रौनक ढल गया वह चाँद भी ।।

हुस्न का अब होश में आकर बुलाना शुक्रिया ।।


वाह आदरणीय नवीन जी वाह बहुत ही खूबसूरत अहसासों को आपने लफ़्ज़ों में ढाला है। दिल से मुबारकबाद कबूल फरमाएं सर।

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 30, 2016 at 10:47am
आ0 श्याम नारायण वर्मा साहब विशेष आभार
Comment by Naveen Mani Tripathi on December 30, 2016 at 10:46am
आ मिथिलेश सर आपके इस स्नेह हेतु सादर आभार ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 30, 2016 at 12:23am

आदरणीय नवीन मणी जी, बहुत बढ़िया गज़ल कही है आपने. दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. सादर 

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 29, 2016 at 4:17pm
आ0 कबीर सर सादर नमन । जब तक आप ग़ज़ल तक नहीं पहुचते तब तक मन लगा रहता है ।
Comment by Shyam Narain Verma on December 29, 2016 at 3:59pm

बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई आप को

Comment by Samar kabeer on December 29, 2016 at 3:00pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
तीसरे शैर में'क़सिस'को "कशिश"कर लें ।
सातवें शैर में 'आसुओं'को "आँसुओं" कर लें ।
और आख़री शैर में 'सराफत' को "शराफ़त" कर लें ।

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