For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

घरवाली (राहिला)लघुकथा

"निकल जा मेरे घर से...बड़ा कमाने वाली हो गयी।तू क्या समझती है तेरे वगैर काम नहीं चलेगा मेरा!बड़ी आई उपदेश देने वाली।" शराब के नशे में धुत भावसिंग,रोज की तरह कुसमा के साथ मारपीट कर, बके जा रहा था।
"अरे शर्म कर नासमिटे..!भगवान से डर ।जो दिनभर घर ,घर काम करके तेरी औलाद और मुझ अपाहिज़ का पेट पाल रही है, उसे,जानवर की तरह मारते हुए तुझे जरा भी लाज नहीं आती।"अपाहिज़ लाचार माँ ने अपनी ही नाकारा औलाद को कोसा।
"तू चुप कर,ज्यादा वकील मत बन इसकी!वरना इसके साथ तुझे भी बाहर का रास्ता दिखा दूंगा।"
बेटे के मुँह से अपने लिए ऐसे कटु वचन सुन कर उसका सब्र का बाँध टूट गया।
"सही कह रहा है कपूत! मुझ पापिन के सपूत कैसे पैदा सकता है।आखिर तुझे पाने की खातिर दो, दो मासूमों का खून का भी इंसाफ होना है।"बरसों पहले
अपने कुकृत पर वह कलप उठी। वहीं अपनी ही माँ के लगातार कोसने और नशे का चरम पर होने के कारण उसके गुस्से की आग और भड़क गयी।
"तो निकल तू भी इसी वक़्त ..।"उसने लगभग घसीटते हुए अपनी माँ को घर से बाहर ला पटका ।लेकिन पीछे ,पीछे कुसमा भागी और सास को सम्हाला।वह फिर बोला-
"निकलो दोनों..!ना मुझे तेरी जरूरत है ना इसकी !इस जैसी तो हजारों औरतें मिल जाएंगी मुझे।"
"हाँ,हाँ..!हजारों क्या बेटा! लाखों औरतें मिल जाएँगी तुझे! लेकिन याद रखना हर सुख-दुःख में साथ निभाने वाली घरवाली कभी नहीं मिल सकती।"अब दर्द, माँ के दिल से गुजरता हुआ ममतामयी सास के दिल तक पहुँचते, पहुँचते दुगना हो गया था।
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 627

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by TEJ VEER SINGH on November 6, 2016 at 9:06pm

हार्दिक बधाई आदरणीय राहिला जी। सुन्दर लघुकथा।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 5, 2016 at 9:48pm
बहुत ही बेहतरीन...भावपूर्ण...गहरी सीख देती रचना
Comment by Sushil Sarna on November 4, 2016 at 7:32pm

आदरणीय राहिल जी मार्मिक एवम सुंदर लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई। 

Comment by Samar kabeer on November 4, 2016 at 5:25pm
मोहतरमा राहिला जी आदाब,बढ़िया कघुकथा लिखी असपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"अहसास (लघुकथा): कन्नू अपनी छोटी बहन कनिका के साथ बालकनी में रखे एक गमले में चल रही गतिविधियों को…"
9 hours ago
pratibha pande replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"सफल आयोजन की हार्दिक बधाई ओबीओ भोपाल की टीम को। "
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय श्याम जी, हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय सुशील सरना जी, हार्दिक आभार आपका। सादर"
yesterday

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया छंद

आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार।त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।।बरस रहे अंगार, धरा ये तपती…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर

कहूं तो केवल कहूं मैं इतना कि कुछ तो परदा नशीन रखना।कदम अना के हजार कुचले,न आस रखते हैं आसमां…See More
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"ओबीओ द्वारा इस सफल आयोजन की हार्दिक बधाई।"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"धन्यवाद"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"ऑनलाइन संगोष्ठी एक बढ़िया विचार आदरणीया। "
Tuesday
KALPANA BHATT ('रौनक़') replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"इस सफ़ल आयोजन हेतु बहुत बहुत बधाई। ओबीओ ज़िंदाबाद!"
Tuesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service