For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - इक अक़ीदा चल के बुतखाना हुआ -( गिरिराज भंडारी )

2122    2122    212 -

की मुहब्बत पर न जल जाना हुआ

जल उठूँ, ऐसा न मस्ताना हुआ

 

इक अक़ीदत बढ के मस्ज़िद हो गई   *---  श्रद्धा

इक अक़ीदा चल के बुतखाना हुआ  ----    विश्वास ,

वो न आयें, तो रहीं मजबूरियाँ 

हम न पहुँचे तो ये तरसाना हुआ

बात उनकी सच बयानी हो गई

हम हक़ीक़त जब कहे , ताना हुआ

 

आपने कैसी खुशी बाँटी हुज़ूर

चेह्रा चेह्रा आज ग़मख़ाना हुआ

 

चाहते इल्मो अदब ने ये किया 

घूमता हूँ ख़ुद से बेगाना हुआ

 

जिसने देखा है ख़ुदा को, आये बर 

या ख़ुदा को मै कहूँ , माना हुआ ?

 

क्या रहें इस शह्र में ऐ दिल बता ?

एक भी चेहरा नहीं जाना हुआ

*************************************
मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 754

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Naveen Mani Tripathi on September 6, 2016 at 4:16pm
लाजबाब लिखा सर जी । बधाई ।
Comment by Shyam Narain Verma on August 19, 2016 at 3:11pm
बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल ....हार्दिक बधाई ! 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 19, 2016 at 10:18am

आदरनीय सौरभ भाई , आपके - क्या कहूँ ? ने सब कुछ कह दिया , सुन के दिल बाग बाग है । सराहना के लिये आपका ह्र्दय से आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 19, 2016 at 10:16am

आदरणीय बृजेश भाई , हौसला अफज़ाई का शुक्रिया आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 19, 2016 at 10:16am

आदरणीया राजेश जी , गज़ल पर उपस्थिति और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 19, 2016 at 10:15am

आदरणीय नवीन मणि भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 19, 2016 at 10:14am

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , गज़ल की मुखर सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 19, 2016 at 10:13am

आदरणीय समर भाई , हौसला अफज़ाई का शुक्रिया आपका ।

चाहत-ए-इल्म-ओ-अदब ने ये किया  // आपने सही कहा . मिसरा ऐसे ही कर लूँगा । आपका हृदय से आभार ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 19, 2016 at 12:17am

क्या कहूँ ? बस वाह वाह वाह ! कमाल को कमाल ही कहते हैं, आदरणीय गिरिराज भाईजी.. 

हार्दिक बधाइयाँ 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 18, 2016 at 10:06pm

क्या कहने आदरणीय बहुत खूबसूरत ग़ज़ल

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Thursday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service