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"बाबू साहब, इ तो हमार काम है, आप तो जानत हो", जोखू हैरान हाथ जोड़े खड़ा था| हमेशा की तरह उसने उस मरे हुए जानवर की खाल उतारी थी और उसे घर पर सुखा रहा था, कि गाँव के चौकीदार ने आकर उसको बताया "थाने से तुम्हरे नाम का कुछ आया है, जाके बाबू साहब से मिल लो, नहीं तो !", आगे के शब्द वो नहीं सुन पाया| उल्टे पैर भागा और बाबू साहब के दरवाजे पर आकर खड़ा हो गया|
"उ सब तो ठीक है लेकिन थाने में तो किसी ने खबर कर दी है कि तुमने कोई गलत जानवर काट डाला है", बाबू साहब ने पान चबाते हुए कहा|
"चाहे जिसका कसम दिला दो साहब, हम तो बस मरल जानवर का ही खाल उतारत हैं, आप बचा लो हमको", कहते हुए जोखू की निगाह में पिछले महीने का दृश्य घूम गया| बगल के गाँव में चोरी हुई थी और शक़ में उसके टोले के एक लड़के को उसके घर से जानवरों की तरह पीटते हुए पुलिस ले गयी थी| वापस तो आ गया था वो लड़का, लेकिन दिमागी संतुलन खो बैठा था|
"ठीक है, एक काम करो, उ खाल हमारे यहाँ पहुँचा दो और ५०० का इंतज़ाम कर दो| हम पुलिस को संभाल लेंगे, बस आगे से हमको बताकर ही इ काम करना" बाबू साहब ने उसको जाने का इशारा किया|
५०० रुपया सुनते ही जोखू के होश फाख्ता हो गए, कहाँ से लाएगा इतने पैसे| "बाबू साहब, दो बखत की रोटी भारी है, कहाँ से लाएंगे एतने पैसे", जोखू से आगे कुछ कहते नहीं बना, बस हाथ जोड़ के खड़ा रहा|
"अबे, पुलिस को संभालना कोई आसान है क्या, नहीं दे सकते तो झेलना उनको", बाबू साहब ने एक भद्दी सी गाली दी|
"आप ही माई बाप हो, कुछ करो साहब" जोखू के आँखों के सामने अँधेरा छा गया| आगे बढ़कर उसने जैसे ही बाबू साहब के पैर छूने चाहे, बाबू साहब चिल्लाये "अच्छा ठीक है, दूर रहो| एक काम करना, कुछ दिन खेत में काम कर लेना, पैसा का इंतज़ाम हम कर देंगे"|
जोखू हाथ जोड़े दुहाई देता घर की ओर भागा, इधर बाबू साहब बगल में खड़े चमड़े के आसामी को मुस्कुराते हुए समझा रहे थे "देखो चमड़ा अच्छा है, रेट ठीक लगाना तो आगे भी मिलता रहेगा"|
जोखू चमड़े को कंधे पर लादे कांपते हुए बाबू साहब की घर की ओर आ रहा था, व्यापारी हिसाब जोड़ने में लगा हुआ था| बाबू साहब ने आंख मूदे हुए एक और गिलौरी मुंह में दबा ली थी|
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on August 15, 2016 at 1:59am

बहुत बहुत आभार आ रवि प्रभाकर जी 

Comment by विनय कुमार on August 15, 2016 at 1:58am

बहुत बहुत आभार आ नीता कसार जी 

Comment by Ravi Prabhakar on August 14, 2016 at 8:13pm

साहित्‍य को समाज का आइना कहा जाता है जिस पर अपने समय, तत्‍कालीन राजनीति, सामाजिक व धार्मिक परिवर्तन इत्‍यादि का प्रभाव पड़ता है। /तुमने कोई गलत जानवर काट डाला है/ इस पंक्‍ित के माध्‍यम से आज के समय के यथार्थ को प्रभावशाली ढंग से चित्रित किया है।  एक सूक्ष्‍म कथ्‍य को लेकर बहुत अच्‍छी लघुकथा का ताना बाना बुना है जिससे आपकी सूक्ष्‍म दृष्‍िट, प्रतिभा व कौशल स्‍पष्‍टता से झलकता है। शुभकामनाएं स्‍वीकरें आदरणीय भाई जी ।

Comment by Nita Kasar on August 14, 2016 at 7:18pm
गाँव के लोग भोलेभाले होते है दबंगों के झाँसे में आ जाते है ।असली व्यापारी तो यही लोग होते है जो ग्रामीण लोगों का शोषण करते है ।
Comment by विनय कुमार on August 14, 2016 at 2:52am

बहुत बहुत धन्यवाद आ राहिला जी 

Comment by विनय कुमार on August 14, 2016 at 2:51am

बहुत बहुत धन्यवाद आ सतविंदर कुमार जी 

Comment by विनय कुमार on August 14, 2016 at 2:51am

बहुत बहुत धन्यवाद आ डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी 

Comment by Rahila on August 13, 2016 at 1:59pm
वाकई ये जोखू का गलत जानवर से पाला पड़ गया ।बहुत उम्दा रचना आदरणीय सर जी ।खूब बधाई सादर
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 13, 2016 at 1:00pm
आदरणीय विनय कुमार जी,इंसानी जानवर का सुंदर चित्रण किया है आपने।मार्मिक कथा बन पड़ी है।सादर हार्दिक बधाई।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 13, 2016 at 11:42am

असली जानवर तो यही लोग हैं , उम्दा कथा और संगठन भी . आदरणीय

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