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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-73

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 73 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब अहसान बिन 'दानिश'  साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

 
"हमने देखा नहीं ज़िन्दगी की तरफ"

फाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन

212   212    212    212

(बह्र:  मुतदारिक मुसम्‍मन सालिम )
रदीफ़ :- की तरफ
काफिया :- ई (ज़िन्दगी, आदमी, रोशनी, बेबसी आदि)
 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 22 जुलाई दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 23 जुलाई दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

बहुत बहुत शुक्रिया शिज्जू  भैय्या |

हमनशीं चल दिया रोशनी की तरफ़

हम खड़े रह गए तीरगी की तरफ,,,वाह बहुत सुन्दर 

ऐसे धोके मिले दोस्तों से हमे

हाथ बढ़ते नहीं दोस्ती की तरफ़....सुन्दर सामयिक शेर 

आदरणीय राजेश कुमारी जी ,पूरा ग़ज़ल मुझे अच्छा लगा -बधाई आपको |

आद० कालीपद प्रसाद जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका तहे दिल से बेहद शुक्रिया सादर 

वाह, उम्दा ग़ज़ल कही है आ० राजेश कुमारी जी। मेरी दिली बधाई स्वीकार करें। अंतिम शेअर पर दोबारा गौर फरमाएँ क्योंकि साँप का स्वभाव डसना है, काटा तो कुत्ता करता है। :)

आद० योगराज जी,आपको  ग़ज़ल उम्दा लगी मेरा लेखन कर्म सार्थक हो गया | रही बात सांप वाले मिसरे की तो आदरणीय दैनिक बोलचाल में सांप का काटना भी बोला जाता है एक पुरानी कहावत है की सांप का काटा पानी भी नहीं मांग सकता उसी को ध्यान में रख कर बह्र की आवश्यकतानुसार लिख दिया इस शेर को इस पूरी ग़ज़ल का सारांश समझे आदरणीय ...एक धोकेबाज इंसान से तो सांप ही बेहतर है | सादर  

आदरणीया राजेश दीदी बढि़या मतले से शुरू हुई गजल और अच्‍छे शेर कहे आपने इसके लिये बधाई आपको 

शुष्क अशआर गम के लिए हाथ में

इक कलम मुड़ गई शायरी की तरफ़ अच्‍छा  शेर हुआ है बधाई आपको 

पूरी विनम्रता से दो बातो पर निवेदन है  आपसे एक तो आखिरी शेर को नहीं भी कहती तो कोइ फर्क नहीं पड़ता काफी अच्‍छे शेर है आपके पास गजल में

दूसरी बात गिरह के शेर में  जिंदगी की तरफ देखा भी नहीं और जीते भी रहे  हमारी समझ में ये बात नहीं आई ( शायद अपनी जिंदगी की तरफ नहीं देखा होगा ऐसा कह रही हो आप ) सादर 

आदरणीय रवि भैय्या आपको ग़ज़ल पसंद आई इसके लिए तहे  दिल से शुक्रिया \आप दो बातों में अटके तो उसको स्पष्ट करना मेरा फ़र्ज़ है पहला अंतिम शेर पूरी ग़ज़ल का निचोड़/सारांश  समझिये धोकेबाज इंसान से तो सांप भी बेहतर है |काटना शब्द तो दैनिक बोलचाल का शब्द है |

गिरह के शेर में हम जिये दूसरों के लिए अर्थात अपनी जिन्दगी की तरफ़ तो देखा ही नहीं पूर्णतः स्पष्ट है भैय्या मुझे समझ नहीं आया एक शायर को इसे समझने में क्या दिक्कत हुई |

शानशौकत उन्हें उस तरफ़ भा गई

वो भला क्यूँ बढ़ें सादगी की तरफ़

नमस्कार जी बधाई आपको 

आद० मुनीश तन्हा जी आपका तहे दिल से आभार |

आदरणीया राजेश कुमारीजी, आपकी उपस्थिति केलिए हार्दिक धन्यवाद. अच्छे शेर हुए हैं .. 

दाद कुबूल कीजिए आदरणीया.. 

आद० सौरभ जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका तहे दिल से आभार |

आदरनीया गजल बहुत उम्दा हुई बधाईयाॅ

दीप हँसता हुआ खुदबखुद बुझ गया
चाँद जब चल दिया चाँदनी की तरफ़

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