For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय काव्य-रसिको,

सादर अभिवादन !

 

चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का आयोजन लगातार क्रम में इस बार तिरसठवाँ आयोजन है.

 

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ  

15 जुलाई 2016 दिन शुक्रवार से  16 जुलाई 2016 दिन शनिवार तक

इस बार पिछले कुछ अंकों से बन गयी परिपाटी की तरह ही दोहा छन्द के साथ एक नया छन्द कुकुभ छन्द को रखा गया है. - 

दोहा छन्द और कुकुभ छन्द

 

कुकुभ छन्द की रचना के लिए बच्चन की मधुशाला का उदाहरण ले सकते हैं. 

 

हम आयोजन के अंतरगत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं.

 

 

इन छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना करनी है. 

प्रदत्त छन्दों को आधार बनाते हुए नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.  

[प्रस्तुत चित्र अंतरजाल से प्राप्त हुआ है]

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, उचित यही होगा कि एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो दोनों छन्दों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.   

 

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगीं.

दोहा छन्द के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें

  

कुकुभ छन्द के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें

जैसा कि विदित है, अन्यान्य छन्दों के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.

 

********************************************************

आयोजन सम्बन्धी नोट :

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 15 जुलाई 2016 दिन शुक्रवार से  16 जुलाई 2016 दिन शनिवार तक यानी दो दिनों केलिए रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.

 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करेंआयोजन की रचनाओं के संकलन के प्रकाशन के पोस्ट पर प्राप्त सुझावों के अनुसार संशोधन किया जायेगा.
  4. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  5. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  6. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  7. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...

विशेष :

यदि आप अभी तक  www.openbooksonline.com  परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें.

 

मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 13539

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरणीय रविकर भाईजी, गाँवों में खपड़ा पलटने की क्रिया या आच्छदन की क्रिया आदि जैसी क्रियाएँ, वस्तुतः अक्सर बरसात के आगमन की ही सूचनाएँ हैं. अतः, बरसात का तिर्यक प्रयोग यदि ऐसे चित्र के आधार पर आती रचनाओं में होता है तो वह अन्यथा नहीं होगा. लेकिन यह अवश्य है, कि प्रदत्त चित्र के आधार पर केवल बरसात की ही रचना हो, यह बात उचित नहीं मानी जायेगी. 

आद० सुधेंदु जी ,मैंने आपकी प्रस्तुति को बाद में समझ लिया था कि ये दोहा गीत लिखा है आपने किन्तु यह पूरी तरह चित्र पर आधारित है ये मैं नहीं मानती आपकी सिर्फ प्रथम दो टेक को कह सकते हैं की विषय के अनुरूप है

बाद की दो ?आप क्या उनसे संतुष्ट हैं ? आप  मेरी ही नहीं दूसरों की रचनाएँ पढ़ जाइए कि वो चित्र को कैसे परिभाषित कर रही हैं |रही बात शिल्प की सिर्फ एक दोहे के विषम चरण को छोड़ कर सभी शिल्प गत हैं जिसके लिए मैं आपको बधाई देती हूँ |  चित्र की बात न करें तो प्रस्तुति बहुत अच्छी है |

आदरणीय सुधेन्दु भाई , चित्रानुरूप बहुत सुन्दर दोहा गीत की रचना की है आपने । हार्दिक बधाइयाँ ! गीत मे गेयता की थोड़ी कमी लगी ।

आदरणीय भण्डारी जी,

मानता हूँ गेयता की कमी अवश्य होगी। कारण यह है कि मैं खुद कभी गा नहीं सका। इसलिए बेताला हूँ। हाँ गुणी संगीतज्ञों के बीच अवश्य रहा हूँ, वे मेरी सभी रचनाओं को खींच-खांच कर गा लेते हैं। एक बार ऐसे ही स्वर्गीय रवीन्द्र जैन जी के साथ भी हुआ। हम लोग रिकॉर्डिंग में थे, एक जगह मामला अटकने लगा। वे खुद रचनाकर थे। कोई वैकल्पिक शब्द नहीं सूझा तो उन्होंने हारमोनियम के साथ आलाप में ही घट-बढ़ कर लिया।

खैर, ये सब अलग बातें हैं। आप की बात जायज़ है।

सादर,

//मानता हूँ गेयता की कमी अवश्य होगी। कारण यह है कि मैं खुद कभी गा नहीं सका //

इस पंक्ति के बाद, फिर तमाम ऐसे वाकये जो गेयता के संदर्भ को ही बदल दें ! ..

छान्दसिक ’गेयता’, आदरणीय सुधेन्दुजी, संगीत से उतना वाबस्ता नहीं जितना कि छन्दों की पंक्तियों के शाब्दिक संयोजन के कारण उपजे प्राकृतिक वाचन-लय से है. हर छन्द की अपनी एक लय हुआ करती है जो उसके शब्दों के विधाजन्य संयोजन से उत्पन्न होती है. 

रचनाकारों को छान्दसिकता का मूल स्वरूप स्पष्ट रूप से जन लेना चाहिए. वस्तुतः, गीति-प्रतीति को संतुष्ट करते हुए गीत के चार प्रकार हैं -

(१) ग्राम्य गीत, अर्थात लोकगीत

(२) अरण्यगीत, यानी, आदिवासी गीत

(३) ऊहगीत, अर्थात, विचार प्रधान गीत, यानी, साहित्यिक गीत

(४) ऊहागीत, यानी, राग-रागिनियों का आश्रय ले कर रचे गये गीत, जो वाद्ययंत्रों की सहायता से गाये जाते हैं ।

स्पष्ट है, कि ऊह गीत और ऊहा गीत में अंतर हुआ करता है. आप दोनों के फ़र्क पर चूँकि स्पष्ट नहीं है अतः घालमेल कर बैठे. एक से एक बेसुरे लोग संगीत की बहुत ही अच्छी समझ रखते हुए देखे गये हैं. वे यदि रचनाकर्मी हों तो उनके गीतों या छान्दसिक रचनाओं में गेयता मात्र सांगीतिक आरोह-अवरोह या सांगीतिक लय-स्थापत्य के कारण नहीं हुआ करती. बल्कि उनकी रचनाओं में वह शब्दों के संयोजन से ही उत्पन्न हुआ करती है. इसी शब्द-संयोजन की बात आदरणीय गिरिराज भाईजी ’गेयता’ के हवाले से कर रहे हैं.

अवसर मिले तो इसी मंच पर दो आलेख हैं उपलब्ध हैं, उन्हें अवश्य देख लीजियेगा. गीतों की अवधारणा पर बहुत कुछ संक्षेप में साझा करने का प्रयास हुआ है.

१. कविता की विकास यात्रा : नयी कविता, गीत और नवगीत (भाग -१) 

२. कविता की विकास यात्रा : नयी कविता, गीत और नवगीत (भाग -२) 

सादर

  

आ० ओझा जी

केवल एक पंक्ति पर बात करूंगा ----नीड़ का निरमान फिर,---3+4+3+2   होना चाहिए    3+3+2+3+2  या    4+4+3+2
                                                  बुधीराम लाचार।

सादर .

आदरणीय श्रीवास्तव जी आपने ठीक त्रुटि पकड़ी। धन्यवाद।

कृपया निम्नवत कर लें :

नीड़ का निरमान और, बुधीराम लाचार।

सहयोगी जन को करे, शत-शत वह आभार॥

सादर,

अ० ओझा जी  यह भी सही नहीं है  दोहे में विषम चरण का विन्यास दो प्रकार ही हो सकता है -- 4+4+3+2 या 3+3+2+3+2

नीड़ का निरमान और -----की मात्रा  होगी --3+4+3+3  और यह् सही नहीं है -------------- आपको  बच्चन जी की  पंक्ति के व्यामोह से बचना होगा , ऐसा कर सकते हैं ---कैसे निर्मित नीड़ हो , बुधीराम लाचार ------------सादर .

आदरणीय सुधेन्दु जी, आप ऐसे मंच के सम्मनित सदस्य हैं जिस के माध्यम से केवल रचनाकर्म को ही प्रोत्साहित नहीं किया जाता, बल्कि रचनाकर्म की पृष्ठभूमि, उसकी विधियाँ, उसके विधानों तथा उद्येश्यपरक रचना-प्रस्तुति के प्रति अभ्यासियों को अगाह किया जाता है. ये सब साहित्य संवर्धन के वे विन्दु हैं, जो आज कई कारणों से न केवल हाशिये पर धकेल दिये गये हैं, इनके प्रति ’अभिव्यक्ति की आज़ादी’ के नाम पर उथली सी दृष्टि फेंक दी जाती है. इससे साहित्य न केवल निर्बल होता है, अपने उद्येश्य से भी भटकता है. जोकि आज प्रत्यक्ष सामने है.

 

अब आपकी इस रचना पर,

आपकी रचना एक सुधी प्रयास है, इसमें संदेह नहीं है. लेकिन दिक्कत इस रचना से नहीं है. दिक्कत आयोजन के उद्येश्य के प्रति गहन और तार्किक दृष्टि न रखने के प्रति है. छान्दसिक रचनाकर्म करने और मूलभूत विधानों के प्रति आग्रही हो कर अभ्यासरत होने में अंतर है. यह अवश्य है कि दोहा छन्द से प्रभावित कोई गीत-नवगीत दोहे के किसी एक चरण का प्रयोग करते हुए भी हो सकता है और वह मान्य है. मैंने स्वयं ऐसे गीत-नवगीत प्रस्तुत किये हैं. इसी आयोजन के माध्यम से कई बार उन रचनाओं का लिंक भी दिया करता था. लेकिन, ऐसी रचनाओं से यह उम्मीद नहीं होगी कि उसकी कोई पंक्ति दोहे के किसी चरण पर आधारित न हो. ऐसी कोई रचना यदि श्लाघ्य भी हुई, तो भी ऐसे किसी आयोजन मेंं कैसे सम्मिलित होनी चाहिए जिसमें दोहा छन्द की रचनाओं या उस पर आधारित रचनाओं का आग्रह होगा ? 

विश्वास है, आप मेरे कहे का मर्म समझ रहे होंगे. 

 

दूसरे, आप इस मंच के तथा छान्दसिक रचनाओं के हिसाब से नये अवश्य हैं, लेकिन रचनाकर्म के प्रयोग और इसके वातावरण के हिसाब से नये नहीं हैं. इस सूरत में आप जैसे वरिष्ठों से कुछ संयत प्रतिक्रियाओं की अपेक्षा यह मंच यदि करता है तो कोई गलत तो नहीं है न, आदरणीय ? 
 
प्रस्तुति और सहभागिता केलिए सादर आभार

शुभेच्छाएँ

पाँच दोहे
=======
सादा जीवन गाँव का, हर मौसम से नेह
स्वागत है बरसात का, करें व्यवस्थित गेह

आयी ऋतु बरसात की, ले चौमासी रंग
नरिया-थपुआ साधिये, यही सुरक्षा ढंग

भाई छप्पर साजिये, साझें खपड़ा-पाँत
और रखें परिवार को, गौरैय्या की भाँत

बेटा शहरी हो गया, बाँधे महल-अटार
इधर लसरते रोज हम, सह मौसम की मार

सर्दी गर्मी बारिशें, और किसानी कर्म
प्रकृति सुलभ जीवन सहज, निभे मानवी धर्म
***************
(मौलिक और अप्रकाशित)

सुंदर है दोहावली,सुंदर इसके भाव
शिल्प बहुत भी है सधा,रहता पाठन चाव।
सादर नमन श्रद्धेय।

हार्दिक धन्यवाद आदरणीय सतविन्द्र जी. 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service