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सोने की चिडिया - (लघुकथा ) -

सोने की चिडिया - (लघुकथा )  -

"भाई साहब, आपने  घनश्याम  के साथ बहुत बडा अन्याय कर दिया"!

"ऐसा क्या होगया छोटे,  कुछ साफ़ साफ़ बोल ना"!

"आपके इस फ़ैसले पर सारी बिरादरी और खानदान थू थू कर रहा है"!

"किस फ़ैसले की बात कर रहा है "!

" घनश्याम की शादी का फ़ैसला ! ऐसी बदसूरत लडकी आजतक पूरे समाज और रिश्तेदारी में नहीं आयी, ना रंग, ना रूप, पता नहीं घनश्याम  जैसे गोरे चिट्टे, सुंदर,सजीले , शिक्षित और प्रोफ़ेसर बेटे के लिये यही एक लडकी मिली थी आपको"!

" छोटे, कभी कभी फ़ैसले दिल के बजाय दिमाग से भी लेने पडते हैं!वह लडकी इन्कम टैक्स कमिश्नर है"!

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by TEJ VEER SINGH on March 16, 2016 at 12:08pm

हार्दिक आभार आदरणीय राहिला जी!

Comment by TEJ VEER SINGH on March 16, 2016 at 12:07pm

हार्दिक आभार आदरणीय राम शर्मा जी!

Comment by TEJ VEER SINGH on March 16, 2016 at 12:06pm

हार्दिक आभार आदरणीय रामबली गुप्ता जी!

Comment by TEJ VEER SINGH on March 16, 2016 at 12:05pm

हार्दिक आभार आदरणीय सीमा सिंह जी!

Comment by रामबली गुप्ता on March 15, 2016 at 7:01pm
बहुत ही अच्छी लघुकथा आदरणीय
Comment by Seema Singh on March 15, 2016 at 6:17pm
सही बात है सोने का अंडा देने वाली मुर्गी का रंग रूप नही देखते । स्वार्थी मानसिकता का बहुत बढ़िया चित्रण किया है आपने आ० तेजवीर जी। बहुत बधाई इस कथा पर ।
Comment by Rahila on March 15, 2016 at 2:18pm
वाह.. एक सोने की चिड़िया मैंने भी देखी सर जी! लेकिन ये तो सोने की मुर्गी है सोने के अंडे देने वाली । बहुत खूब आदरणीय सर जी! बेहतरीन रचना । सादर
Comment by Ram Sharma on March 15, 2016 at 12:51pm

बढ़िया रचना बनी है आद० तेजवीर सिंह जी... सादर बधाई प्रेषित है 

Comment by TEJ VEER SINGH on March 14, 2016 at 10:57pm

हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी!

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 14, 2016 at 8:41pm
वाह...चिड़िया को समझ लिया न स्वर्ण पिटारी.... बहुत बढ़िया प्रस्तुति के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय तेज वीर सिंह जी।

कृपया ध्यान दे...

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