2122    1122    1122    22
खूब परहेज भी करता है दिखाने के लिए
है जरूरत भी मगर प्यार जमाने के लिए /1
सोच मत सिर्फ  बहाना है बहाने के लिए
वक्त है पास कहाँ तुझको मनाने के लिए /2
शौक पाला जो सितम हमने उठाने के लिए
आ गई  धूप  भी  राहों  में सताने के लिए /3
देख हालात को खुद ही तू  जगा ले अब तो
कौन  आएगा  तुझे  और  जगाने  के लिए /4
पढ़ सके तू जो अगर रोज किताबों सा पढ़
है नहीं  बात कोई  मुझ में छुपाने के लिए /5
कैसी किस्मत थी कि आखिर वो मरा भी बेघर
खूब बेघर  जो  रहा घर  को  बनाने के लिए /6
मौलिक व अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’
Comment
आ भाई जेनिट जी हार्दिक धन्यवाद l
आ० भाई हरी प्रकाश जी प्रशंसा के लिए आभार l
आ० भाई रवि शुक्ल जी उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद l
पढ़ सके तू जो अगर रोज किताबों सा पढ़
है नहीं  बात कोई  मुझ में छुपाने के लिए....सुन्दर रचना ,हार्दिक बधाई आ.लक्ष्मण धामी जी ! सादर 
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बढि़या गजल के लिये दाद कुबूल करें
आ भाई सुशील जी ,उत्साहवर्धन के लिए आभार l
आ० भाई तेजवीर जी प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद l
आ० भाई समर कबीर जी ,उपस्थिति प्रशंसा और बेहतरीन सलाह देने के लिए आभार l
शौक पाला जो सितम हमने उठाने के लिए
आ गई धूप भी राहों में सताने के लिए /3
वाह आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी वाह .... बेहद खूबसूरत अहसास पिरोये हैं आपने अपनी इस दिलकश ग़ज़ल में। दिल से बधाई स्वीकार करें सर।
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