For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चाय के बोलते कप (लघुकथा)/ शेख़ शहज़ाद उस्मानी

मोर्निंग-वॉक से लौटते वक़्त आज ख़ान साहब मुहल्ले के कुछ घरों की खिड़की पर रखे चाय के कपों की कुछ दिलचस्प फोटो लेकर घर लौटे ही थे कि अपने घर के मुख्य दरवाज़े के ऊपर छज्जे पर भी चाय के दो कपों को देख कर चौंक गये। ये वाले कप पिछले महीने ही तो मेले से ख़रीद कर लाये थे। बड़ी हैरानी से बेगम साहिबा से उन्होंने पूछा- "क्यों जी, ये क्या माज़रा है, दो कप वहां क्यों रखे हुए हैं?"

"अरे, वो मालती बाई आती है न, अपने मुहल्ले की साफ.-सफ़ाई करने वाली, उसको चाय पिलाने के लिए! कभी-कभी उसके आदमी को भी! "

"तो उन्हें धोकर अन्दर क्यों नहीं रख लेतीं?"

"आप भी कैसे सवाल करते हो? उनकी जात पता नहीं क्या आपको? और वे कप थोड़े 'चटक' भी तो गये थे! हमारे किस काम के?" - बेगम साहिबा ने एक कप में चाय उड़ेलते हुए कहा।

"लेकिन बेगम साहिबा, आप तो रोज़ सबेरे उस मालती बाई से सहेली की तरह बतियाती हो, फिर सहेली के साथ ऐसा बर्ताव.....!"

"सामने वाली मिसेज शर्मा भी ऐसा ही करती हैं, अपने घर के सामने की नाली अच्छी तरह साफ़ हो जाये, झाड़ू अच्छे से लग जाये, इसके लिए यह सब करना पड़ता है जनाब!"

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 731

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 29, 2017 at 6:56am
मेरी इस लघुकथा के अनुमोदन व हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब सलीम रज़ा साहब और जनाब डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव साहब।
Comment by SALIM RAZA REWA on January 23, 2016 at 7:07pm

सीख देती हुई खूबसूरत कहानी के लिए  मुबारक़बाद ..

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 23, 2016 at 6:55pm

क्या बात है ! उस्मानी  सर . बहुत बढ़िया . 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 23, 2016 at 11:47am
तहे दिल बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सतविंदर कुमार जी व आदरणीय नीरज कुमार नीर।
Comment by Neeraj Neer on January 22, 2016 at 8:26pm

सुंदर प्रस्तुति ......

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 22, 2016 at 8:04pm
बेहतरीन।बधाई आदरणीय उस्मानी साहब
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 22, 2016 at 12:44am
मुहल्ले के ही तज़ुर्बे पर लिखा है। प्रस्तुति आपको पसंद आई, तहे दिल बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।
Comment by pratibha pande on January 20, 2016 at 11:42am

जाने पहचाने विषय को आपने नए ढंग से कथा में ढाला है ,हार्दिक बधाई स्वीकार करें इस रचना पर आदरणीय उस्मानी जी 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 20, 2016 at 9:35am
मेरी इस पोस्ट पर उपस्थित हो कर समीक्षात्मक टिप्पणी करने व प्रोत्साहन देने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय तेज वीर सिंह जी, आदरणीय समर कबीर जी, आदरणीय नादिर ख़ान साहब व जनाब बैजनाथ शर्मा 'मिंटू' जी।
Comment by Samar kabeer on January 19, 2016 at 9:21pm
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,आपकी रचना नये विचारों से परिचय कराती है,बहुत बधाई आपको इस रचना के लिये,
मंच पर जिस तरह आप सभी सदस्यों की जो हौसला अफ़ज़ाई करते हैं,इसके लिये अलग से शुक्रिया कहता हूँ,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Thursday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Jun 3
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Jun 3

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Jun 3
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service