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आदरणीय प्रदीप नील जी , मशवरे एवं हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
बकौल आपके यह आपकी पहली लघुकथा है, उसके लिए आपको बहुत बहुत बधाई I अच्छा प्रयास है, लेकिन लघुकथा विधा के सभी तकाजों को पूरा नहीं कर रहा I दरअसल इस शैली को किस्सा-गोई कहा जाता है I मुझे पूरी उम्मीद है कि मंच पर उपलब्ध जानकारियों से आप लाभान्वित होंगे, और अगले आयोजन में बेहतरीन प्रस्तुति देंगे I
आदरणीय योगराज जी , मशवरे एवं हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
बदलते समाज बदलती युवा सोच देश की बदलती तस्वीर का पर्याय है ये लघु कथा बहुत खूब मोहतरम तस्दीक अहमद जी
आदरणीया राजेश कुमारी साहिबा , हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया। ..
हार्दिक बधाई आदरणीय तसदीक अहमद खान साहब !आपका प्रथम प्रयास निश्चित रूप से सराहनीय और प्रशंसनीय है!
आदरणीय तेजवीर साहिब , हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया। ..
आदरणीया कल्पना साहिबा , हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया। ..
आदरणीया कल्पना साहिबा , हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया। ..
अपनी अपनी इच्छाएं , बढ़िया प्रस्तुति | थोड़ा और बेहतर हो सकती थी , बहरहाल बधाई स्वीकारें
आदरणीय विनय कुमार साहिब , मशवरे एवं हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया। ..
(आकांक्षा विषयाधारित लघुकथा )
साड्डा-हक -
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जब से वह स्नातक हुआ है, एक अच्छी नौकरी की चाहत में आये-दिन ही वह नुक्कड़ की दुकान में खड़ा होकर घण्टों रोज़गार समाचार-पत्र खंगालता रहता है। वह खूब अच्छी तरह समझता है कि छोटी सी दुकान की कमाई से कितनी मुश्किल से उसके बाऊ-जी घर चला पाते हैं । सिमरन की स्कूल की दो महीनें की फ़ीस भी अब तक नहीं जमा हो पाई है । ऊपर से बेबे-जी की बीमारी ने घर की अर्थव्यवस्था को और चरमरा डाला है | इसीलिए उसनें आस-पड़ोस के बच्चों को पढ़ाना भी शुरू कर दिया है, लेकिन उनसे मिले पैसों से सिर्फ बेबे-जी की दवा ही आ पाती है।
उस दिन जब उसके सामने ही मकान-मालिक ने उसके बाऊ-जी को किराया न चुका पाने के कारण सरेआम ज़लील किया, तब से उसनें अखबार बांटने का भी काम शुरू कर दिया। 'बस्स..! एक वारी चंगी सी नौकरी मिल जावे... ' यही सोचते हुए वह जल्दी-जल्दी रोजगार समाचार-पत्र का एक-एक पन्ना टटोल रहा था । तभी सड़क पर हो रहे शोरगुल से उसका ध्यान भंग हो गया ।
उसके सारे हमउम्र दोस्त इकठ्ठा होकर नारे लगा रहे हैं। "धांधा-गर्दी नहीं चलेगी..! नहीं चलेगी.. ! साड्डा हक्क एत्थे रख..!" उत्सुकतावश वह भी दौड़ कर वहाँ पहुँच गया।
"की गल है वीर.. ?" उसने मन्जीते के कन्धे पर हाथ रखते हुए पूछा।
"असीं लोग बेरोजगारी-भत्ते दी माँग कर रहे हैं , चल तुसी वी आ जा, तुसी वी तो साड्डी बिरादरी(बेरोजगार) दा है।" कहते हुए मन्जीते ने उसे भी भीड़ में घसीट लिया।
चारो तरफ हो रहे हंगामे से , घबराहट के मारे वह असहज हो उठा । उसके बिलकुल सामनें ही परमवीर, टीटू , सुहेल और उसके कितने ही दोस्त जोर-जोर से नारे लगा रहे हैं।
"ओये तैनू की न्यौता देना पैगा.. तुसी क्यों नहीं लगान्दा नारा ?" उसे खामोश खड़ा देख कर टीटू ने उसे झकझोर दिया।
"पर बाऊ जी तो कैह्न्दे है कि ..." वह पूरा कह भी न पाया था कि टीटू ने गुस्से से उसे परे धकेल दिया। अचानक लगे धक्के से वह भरभरा कर जमीन पर मुँह के बल जा गिरा।
काफ़ी देर अपनें घुटनों पर सिर रखे हुए वह न जाने क्या बडबडाता रहा ? फ़िर झटके से उठ खड़ा हुआ और हाथ उठा कर जोर-जोर से नारे लगाने लगा।
"भीख नहीं ,सानूं रोज़गार चाहीदा है ..!
"साड्डा हक्क एत्थे रख...!"
"साड्डा हक्क एत्थे रख...!”
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
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