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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन ।
 
पिछले 60 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-61

विषय - "उत्सव"

आयोजन की अवधि- 13 नवम्बर 2015, दिन शुक्रवार से 14 नवम्बर 2015, दिन शनिवार की समाप्ति तक  (यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)

 
बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

 

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :- 

  • सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान मात्र एक ही प्रविष्टि दे सकेंगे.  
  • रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
  • रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
  • प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
  • नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.


सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर एक बार संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है. 

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं. 

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.   

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 13 नवम्बर 2015, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा) 

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
 

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें
मंच संचालिका 
डॉo प्राची सिंह 
(सदस्य प्रबंधन टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

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Replies to This Discussion

आदरणीय लक्ष्मण भाई , क्या खूब ग़ज़ल हुई है , सभी शे र बेमिसाल हैं , मुझे ये तीन बहुत प्रभावित किये -
हुनर से दूर है जो भी उदासी उसको तट पर भी
भरोसा जो करे खुद पर उसे मझधार में उत्सव /

दुखों को बाँट कर भर दो सभी की झोलियाँ सुख से
सिखाते   है   यही   बातें  सदा  संसार  में  उत्सव

न  हों  मजबूरिया  इतनी  पड़े  परदेश  में रहना
दुआ बस मागता सबका मने परिवार में उत्सव ----- दिली बधाइयाँ स्वीकार करें

क्या बात है - क्या बात है भाई लक्ष्मण धामी जी, वाह !! हर एक शेअर बेहद खूबसूरत और मानीखेज हुआ है I मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें I

आदरणीय धामीजी, इस सुंदर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई

हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी जी !बहुत शानदार गज़ल!

बहुत ही शानदार प्रस्तुति हुई है आपकी ,ढेरों बधाई स्वीकारें आप इस रचना पर आदरणीय लक्ष्मण जी , नये शब्दों से परिचित करवाने के लिए भी आभार 

कभी अलवार के उत्सव कभी नयनार में उत्सव
ध्वजा  हो  धर्म  की  ऊँची  रहे संसार में उत्सव --- बहुत सुंदर भाव रचित अनुपम गजल प्रस्तुत है है | हार्दिक बधाई श्री लक्ष्मण  धामी जी 

बदहाली – ( तुकांत कविता )-

कौनसा, उत्सव कैसा उत्सव, कैसी दिवाली,

घर भी खाली, जेब भी खाली, पेट भी खाली!

कौनसा उत्सव, कैसा उत्सव, कैसी दिवाली!

खेल कूद की उमर है लेकिन,

चूल्हा फ़ूंके ,पांच साल की छोटी लाली!

कौनसा उत्सव, कैसा उत्सव, कैसी दिवाली!

 बीमारी मेरे घर में, मेहमान सदा से,

खटिया पर डेंगू से, लडती घरवाली!

कौनसा उत्सव,  कैसा उत्सव, कैसी दिवाली!

सडक, चौराहे रोशनी से  दमक रहे हैं,

पैर पसारे मेरे घर में रात ये काली!

कौनसा उत्सव, कैसा उत्सव, कैसी दिवाली!

एक दिये भर को तेल नहीं है,

पूडी की ज़िद करती छोटी लाली!

कौनसा उत्सव, कैसा उत्सव ,कैसी दिवाली!

बोझ कर्ज़ का, बढता जाये दिन दिन,

ठेंगा दिखा रही ,दूर खडी खुश हाली!

कौनसा उत्सव, कैसा उत्सव ,कैसी दिवाली!

मुन्ना मांग रहा, फ़ुलझडी पटाखे,

मेरी जेब में केवल, माचिस खाली!

कौनसा उत्सव, कैसा उत्सव ,कैसी दिवाली!

इंद्र देव ने, बज़्र गिराया,

दिखती नहीं कहीं हरियाली!

कौनसा उत्सव, कैसा उत्सव ,कैसी दिवाली!

 सूख गये सब बाग बगीचे,

भटक रहा है, दर दर माली!  

कौनसा उत्सव, कैसा उत्सव ,कैसी दिवाली!

मरने को मज़बूर किसान है,

नेता मना रहे, डट कर दिवाली!

कौनसा उत्सव, कैसा उत्सव ,कैसी दिवाली!

 कुंभकर्ण सरकार हो गयी,

प्रजा दे रही खुल कर  गाली!

कौनसा उत्सव, कैसा उत्सव ,कैसी दिवाली!

बच्चों की ज़िद को,कैसे समझाऊं,

मेरे कद से बहुत बडी ,मेरी बदहाली!

कौनसा उत्सव, कैसा उत्सव ,कैसी दिवाली!

मौलिक व अप्रकाशित

हार्दिक आभार आदरणीय सुनील वर्मा जी!मुझे इस विषय का अधिक ज्ञान नहीं है!मगर मन में कुछ विचार जोश मारते हैं तो लिख डालता हूं!आपको रचना अच्छी लगी!मुझे संतुष्टि मिल गयी!पुनः आभार!

आदरणीय तेजवीर भाईजी

मेरे कद से बहुत बडी ,मेरी बदहाली!

कौनसा उत्सव, कैसा उत्सव ,कैसी दिवाली!

सच कहते हैं भाई सभी प्रकार के अभावों से जूझते किसी गरीब की कैसे मने दीवाली।

प्रस्तुति पर मेरी हार्दिक बधाई शुभकामनाओं के साथ

हार्दिक आभार आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी!आपने रचना की सराहना की!मन प्रफ़ुल्लित हो गया!

आदरणीय तेज़वीर जी, आपका प्रयास, जिसमें कविताई के विन्दु मौज़ूद हैं, वाकई ध्यानकर्षित कर रहा है. यह अवश्य है कि कविता वाकई लम्बी हो गयी है. आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं शुभकामनाएँ

हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ पांडे जी! रचना पर आपकी टिप्पणी मेरे लिये बेहद प्रसन्नता देने वाली बात है!रचना की लंबाई के लिये क्षमा प्रार्थी हूं!सादर!

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