For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इस जिंदगी का क्या भरोसा ये मुद्दा है गौर का |

२२१२ २२१२ २२१२ २२१२ - रजज मुसम्मन सालिम
कोई दबा घर में कहीं      आशा लगाये और का |
इस  जिंदगी का क्या भरोसा ये मुद्दा है गौर का |
बारिश कहीं आँधी कहीं आकर गिराये घर नगर  ,
अपना नहीं ज़िंदा बचा सोचा नहीं इस दौर का |
कुदरत  करे ये खेल  कैसा जान लेकर छोड़ता ,
ठोकर कहीं धक्का कहीं आशा नहीं है ठौर का |
नाजुक कली कैसे बचे  माली लगाये मार जब ,
कोई  बचे कैसे कहीं कुदरत हिलाये  कौर  का |
जब साँस है तब आश है फिर है जहाँ की खुशी ,
ये जिंदगी कैसे रुके जब आश ना हो मौर  का |
देता सहारा कोई  जब जीवन बचा भी हो कहीं ,
वर्मा गया कोई जहाँ से फिर कहाँ वो और का |
श्याम नारायण वर्मा 
(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 684

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shyam Narain Verma on May 6, 2015 at 5:27pm
उत्साह वर्धन के लिये आपक आभार ।
Comment by Mohinder Kumar on May 6, 2015 at 2:04pm

नेपाल त्रास्दी पर रचित सार्थक गजल... लिखते रहिये आदरणीय श्याम नारायण जी 

Comment by Shyam Narain Verma on May 4, 2015 at 11:56am

आदरणीय श्री गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी , श्री गिरिराज भंडारी जी , समर कबीर जी , मिथिलेश जी , आदरणीया महिमा श्री जी , आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी , डा. विजय शंकर जी और डा. आशुतोष मिश्र जी रचना भाव पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार।

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी अमूल्य पथ प्रदर्शन के लिए आपका बहुत बहुत आभार |
कुदरत हिलाये कौर का ? इसके क्या माने हुए ?
कुदरत जिंदगी ही तबाह कर रहा है |
उला में जहां की के बाद एक द्विकल छूट गया है. फिर काफ़िया ’मौर’ का के क्या माने ?हुत अच्छी
मौर का माने सहारा है |

सादर

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 2, 2015 at 1:40pm

आदरणीय श्याम नारायण जी इस सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on May 2, 2015 at 9:26am
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी, इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई, सादर।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2015 at 9:07am

आदरणीय श्याम नारायणजी, आपकी यह ग़ज़ल आजकी त्रासदी और परिस्थितियों को समेटे दर्शन शास्त्र के इंगितों और विन्दुओं को साथ लिये सरस प्रवाह के साथ सामने आयी है. आजकी घड़ी आशान्वित कम किन्तु विकल अधिक कर रही है. कविकर्म प्रभावित न हो ऐसा हो ही नहीं सकता.

आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद और अनेकानेक शुभकामनाएँ.

अब शेर दर शेर देखा जाय तो शिल्प के लिहाज से कई कमियाँ मात्र ध्यान न देने के कारण रह गयी हैं. तो कई काफ़िया अपने अर्थ के लिहाज से स्पष्ट ही नहीं हो रहे हैं. कमसेकम मेरे साथ तो यही हो रहा है कि काफ़िया में कुछ शब्दों के अर्थ अस्पष्ट हैं.

कोई दबा घर में कहीं आशा लगाये और का |
इस  जिंदगी का क्या भरोसा ये मुद्दा है गौर का |.. ...... इस  जिंदगी का क्या भरोसा विन्दु है ये गौर का.. मुद्दा अपने स्थान सही नहीं आ रहा है.

बारिश कहीं आँधी कहीं आकर गिराये घर नगर  ,
अपना नहीं ज़िंदा बचा सोचा नहीं इस दौर का |...........  सानी को और स्पष्ट होना आवश्यक है. यह शेर प्रासंगिक है.  

कुदरत  करे ये खेल  कैसा जान लेकर छोड़ता ,
ठोकर कहीं धक्का कहीं आशा नहीं है ठौर का |...............’कुदरत’ स्त्रीलिंग है आदरणीय. एक अच्छा शेर व्याकरण दोष की भेंट चढ़ गया.

नाजुक कली कैसे बचे माली लगाये मार जब ,
कोई  बचे कैसे कहीं कुदरत हिलाये  कौर  का |................  कुदरत हिलाये कौर का ? इसके क्या माने हुए ?

जब साँस है तब आश है फिर है जहाँ की खुशी ,
ये जिंदगी कैसे रुके जब आश ना हो मौर  का |.................... उला में जहां की के बाद एक द्विकल छूट गया है. फिर काफ़िया ’मौर’ का के क्या माने ?

देता सहारा कोई  जब जीवन बचा भी हो कहीं ,
वर्मा गया कोई जहाँ से फिर कहाँ वो और का |....... ........... एक्ज बहुत अच्छी सोच कहन में न ढल पायी. उला को और साधने कीआवश्यकता है.

आदरणीय आप एक अरसे से मंच पर हैं लेकिन आपकी उपस्थिति जाने क्यों अत्यंत निर्लिप्त-सी प्रतीत होती है. देखते-देखते आपके इस प्रिय मंच ने कई अच्छे रचनाकारों को समृद्ध कर दिया है. आपसे सादर अपेक्षा है कि आपकी एकनिष्ठ संलग्नता प्रभावी एवं उपयोगी बने.


इस सुन्दर हो सकती प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाइयाँ.
 

Comment by MAHIMA SHREE on May 1, 2015 at 6:02pm

दार्शनिक ग़जल हुई है.. सोचने को विवश करती..बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 1, 2015 at 5:45pm
आदरणीय श्याम जी बेहतरीन ग़ज़ल हेतु हार्दिक बधाई।
इस बह्र में शब्द रुक्न में ही ख़त्म हो जाए तो ग़ज़ल खिल उठती है
जय राम जी, बस मैं कहूँ, जय राम जी बस मैं करूँ।
Comment by Samar kabeer on May 1, 2015 at 3:50pm
जनाब श्याम नारायण वर्मा जी,आदाब,अच्छी ग़ज़ल के लिये दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 1, 2015 at 12:27pm

आदरणीय श्याम भाई , त्रासदी पर अच्छी गज़ल हुई है , आपको हार्दिक बधाइयाँ गज़ल के लिये ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"धन्यवाद"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"ऑनलाइन संगोष्ठी एक बढ़िया विचार आदरणीया। "
8 hours ago
KALPANA BHATT ('रौनक़') replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"इस सफ़ल आयोजन हेतु बहुत बहुत बधाई। ओबीओ ज़िंदाबाद!"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"बहुत सुंदर अभी मन में इच्छा जन्मी कि ओबीओ की ऑनलाइन संगोष्ठी भी कर सकते हैं मासिक ईश्वर…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion

ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024

ओबीओ भोपाल इकाई की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी…See More
Sunday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ठीक है "
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"शुक्रिया आ सादर हम जिसे अपना लहू लख़्त-ए-जिगर कहते थे सबसे पहले तो उसी हाथ में खंज़र निकला …"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"लख़्त ए जिगर अपने बच्चे के लिए इस्तेमाल किया जाता है  यहाँ सनम शब्द हटा दें "
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service