For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रेत की दीवार वो कुछ ही पलों में ढह गया |

२१२२ / २१२२/ २१२२/ २१२
राह चलते दिल मिला फिर याद बनकर रह गया | 
ख़्वाब  जो देखा कभी वो अश्क बनकर बह गया |
रात     बीती   चांदनी  में खाब  आँखों  में  लिये ,  
रेत  की   दीवार  वो  कुछ  ही  पलों में ढह गया |
दूर  होकर  भी मिलन का  फूल खिलता ही रहा ,
आँखें   रोती  रह  गयीं  सपना अधूरा रह गया |
होश  खो  बैठे न जानें  किस  कदर बहकाव में ,
जिंदगी से खेल कर ही कोई क्या क्या कह गया |  
रोज  मिलते राह में अब  अजनबी  ही की तरह ,
चेहरा तो है वहीँ पर  तीर दिल अब   सह गया |
बेवफा के   नाम  पर  वर्मा  जमाना  चुप रहा ,
ले कसम लूटे कहीं कोई  रिश्ता  क्या रह गया |
श्याम नारायण वर्मा 
(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 495

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shyam Narain Verma on April 2, 2015 at 9:54am

आदरणीय मिथिलेश जी और आदरणीय जीतेन्द्र जी रचना की सराहना के लिए मैं आप का तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूँ |
सादर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 2, 2015 at 9:48am

बहुत सुंदर गजल प्रस्तुति ,आदरणीय श्याम जी. हार्दिक बधाई स्वीकारें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 1, 2015 at 11:43pm

आदरणीय श्याम जी सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 

Comment by Shyam Narain Verma on April 1, 2015 at 4:32pm

आदरणीय  डा. विजय शंकर  जी  और डा. गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी   रचना भाव पसंद करने के लिए आप लोगों का बहुत बहुत  आभार |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 1, 2015 at 1:19pm

आ० वर्मा जी

बेहतरीन गजल .  सादर .

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 1, 2015 at 10:47am
राह चलते दिल मिला फिर याद बनकर रह गया |
ख़्वाब जो देखा कभी वो अश्क बनकर बह गया |
बहुत खूब , बधाई , आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी , सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service