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मिलन की आस - मुक्त कविता

तुझसे मिलन के इंतज़ार में 

बसाया था बलम

तेरी छवि को यादों में

तेरी प्रीत को ख्वाबो में

करवटों को बाँहों में 

और

सिलवटों को रातों में

 

तुझको पाने की प्यास में

सीखा था सनम

गीतों को गाना

नृत्य को जीना

शराब को पीना

और

ज़ख्मों को सीना

 

तुझसे मिलन की आस पिया 

और सजाया था

कजरा आँखों में

गजरा बालों में

नखरा गालों पे

और

मदिरा होठों पे

 

अब नहीं रुका जाता प्रिय

आ जाओ और बहका दो

बातों को बातों से

होठों को होठों से

बाहों को बाहों से

ओर

साँसों को साँसों से 

निधि 

मौलिक और अप्रकाशित 

Views: 2185

Comment

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Comment by Nidhi Agrawal on March 20, 2015 at 9:55am

आप सभी मित्रों का बहुत बहुत आभार 

रचना साहित्य की नज़र से स्तरीय नहीं होते हुवे भी आप सभी ने रचना को सम्मान दिया .. आप की बहुत शुक्रगुजार हूँ 

यों ही चलते फिरते लिख दी थी सही में 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 19, 2015 at 12:22pm

भावपूर्ण रचना  के  लिए बधाई  आद  निधि  अग्रवाल जी 

Comment by Hari Prakash Dubey on March 18, 2015 at 9:23pm

आदरणीया निधि जी, सुन्दर प्रस्तुति , हार्दिक बधाई आपको ! सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 18, 2015 at 6:17pm
सुन्दर, श्रृंगारिक , मुक्त , रचना , बधाईयाँ। सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 18, 2015 at 4:56pm

बहुत सुन्दर , सुन्दर भाव , सुन्दर कविता के लिये बधाई , आदरणीया निधि जी ॥

Comment by Shyam Narain Verma on March 18, 2015 at 2:52pm
सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई सादर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 18, 2015 at 12:10pm

अब नहीं रुका जाता प्रिय

आ जाओ और बहका दो

बातों को बातों से

होठों को होठों से

बाहों को बाहों से

ओर

साँसों को साँसों से -------------------इस संवेदना को प्रणाम  . सुन्दर रचना आ०  निधि जी

Comment by Shyam Mathpal on March 18, 2015 at 11:39am

आदरणीय निधि जी ,

मिलन व इंतज़ार को सही शब्दों मे पिरोया है. 

सुंदर रचना के लिए बधाई .

Comment by somesh kumar on March 18, 2015 at 11:31am

सीधी-साधी भाषा में अपने दिल की अभिव्यक्ति ,शायद आज का जनसामान्य पाठक ऐसी ही रचनाओं की प्रतीक्षा करता है |शिल्प-बिम्ब और छंद रचना को विशेष प्रभाव अवश्य देते हैं परंतु लोकप्रियता हमेशा आम लोगों की भाषा में लिखे साहित्य को मिलती है |आपकी रचना में अभी वैसे ही तत्व दिखते हैं |इसलिए बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 18, 2015 at 9:34am

बहुत खूब आदरणीया निधि जी विरह वेदना को खूब प्रस्तुत किया है आपने सादर बधाई इस रचना के लिये

कृपया ध्यान दे...

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