For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नयन सखा डरे डरे, प्रमाद से भरे भरे......मिथिलेश वामनकर

नयन सखा डरे डरे, प्रमाद से भरे भरे......

 

सबा चले हजार सू फिज़ा सिहर सिहर उठे

भरी भरी हरित लता खिले खिले सुमन हँसे

चिनार में कनेर में खजूर और ताड़ में

अड़े खड़े पहाड़ पे घने वनों की आड़ में

उदास वन हृदय हुआ उदीप्त मन निशा हरे.............

 

शज़र शज़र खड़े बड़े करें अजीब मस्तियाँ

विचित्र चाल से चले बड़ी विशेष पंक्तियाँ

सदा कही नहीं मगर दिलो-दिमाग कांपता

मधुर मधुर मृदुल मृदुल प्रियंवदा विचिन्तिता

विचारशील कामना प्रसंग से परे परे..........

 

ख़ुदा नहीं मिले कभी सनम जुदा जुदा रहे

अस्वस्थ व्यस्त सा हृदय सदा पिया पिया कहे

अजीब इश्क शै खुदा मिला कभू जुदा कभू

पिया प्रभु से हो गए कि हो गए पिया प्रभु

असीम एक नाम से विरक्त मन जगत तरे.........

 

सुखन, ग़ज़ल, कता ख़ुदा नजीब अर्जमंद से 

अकाट्य तथ्य से महीन शब्द अर्थ द्वन्द से

खला नहीं नज़र नज़र मगर करे असर खला

असाध्य साधना नहीं तथापि कर्म बावला

निपंग साधना यहाँ विकल्प से सदा डरे...........

 

-------------------------------------------------------------

(मौलिक व अप्रकाशित) © मिथिलेश वामनकर 
-------------------------------------------------------------

 

Views: 1004

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 14, 2015 at 11:19am
आदरणीया प्रतिभा जी आपको यह प्रयास पसंद आया लिखना सार्थक हुआ। हार्दिक आभार । बहुत बहुत धन्यवाद

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 13, 2015 at 9:08pm

आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी सराहना के लिए हार्दिक आभार .... 

आपकी कोशिश सफल है ...इसे आगे बढ़ाये... सुन्दर रचना निकल सकती है. सादर 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on January 13, 2015 at 8:48pm

अजीब शब्द मेल है, अहा अहा करे मना

चुनाव की चली हवा, नहीं गिला नहीं सिला  

ऐसे ही कोशिश कर रहा था. मजा आ गया आदरणीय मिथिलेश जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 13, 2015 at 12:24pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 13, 2015 at 11:23am

आ0 भाई मिथिलेश जी, खुबसूरत गीत हुआ है,  बधाई स्वीकार करें l


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 13, 2015 at 12:37am
आदरणीय अजय शर्मा जी इस सराहना और स्नेह के लिए हार्दिक आभार। हृदय से धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ।
Comment by ajay sharma on January 12, 2015 at 11:05pm

शज़र शज़र खड़े बड़े करें अजीब मस्तियाँ

विचित्र चाल से चले बड़ी विशेष पंक्तियाँ

सदा कही नहीं मगर दिलो-दिमाग कांपता

मधुर मधुर मृदुल मृदुल प्रियंवदा विचिन्तिता

विचारशील कामना प्रसंग से परे परे..........adbut....., pravahmaya, kya kahoo shabdh nahi hai mere paaas ...best of obo's master pieces

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 12, 2015 at 9:11pm
आदरणीय लक्ष्मण रामानुज सर सराहना और आशीर्वाद के लिए नमन।
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 12, 2015 at 4:32pm

अनुपम शब्दों में गुंथी मनमुग्ध करती मनोहारी गीत  रचने के लिए बहुत बहुत बधाई श्री मिथिलेश वामनकर जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 12, 2015 at 8:22am

आदरणीय खुर्शीद जी आपकी प्रशंसा पाकर आनंदित हो जाता हूँ ... हार्दिक आभार ... 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
3 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service