For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अपने  वज़ूद  की  ख़बर   इस तरह  हम  देते हैं
मुट्ठी  में  रेत उठाकर  हम  हवा  में उड़ा देते हैं


क्या हुआ जो  इस  उम्र में  हम बे-समर हो गए
ये शज़र आज भी  गुज़री  बहारों  की हवा देते हैं


अब हंसी भी  लबों पे  पैबंद  सी  नज़र  आती हैं
जाने लोग आँखों में कैसे नमी को  छुपा  लेते हैं


रुख से चिलमन उठते ही नज़रें भी बहकने लगी
हम भी बेजुबानों की तरह पैमाने को उठा लेते हैं


जागते  रहे  तमाम  शब्  हम  उसके इंतज़ार में
बार बार  चरागों  को  हम जलने की सज़ा देते हैं 


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 585

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on December 24, 2014 at 7:20pm

आदरणीय  vijay nikore  जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार ।

Comment by vijay nikore on December 23, 2014 at 3:52pm

बहुत ही सुन्दर रचना है। हार्दिक बधाई।

Comment by Sushil Sarna on December 23, 2014 at 11:18am

आदरणीय गिरिराज भंडारी  जी रचना पर आपकी आत्मीय  प्रशंसा का हार्दिक आभार । 

Comment by Sushil Sarna on December 23, 2014 at 11:17am

आदरणीय सोमेश कुमार जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार । 

Comment by Sushil Sarna on December 23, 2014 at 11:16am

आदरणीय शिज्जु शकूर जी रचना को आपने सराहा मेरे सृजन को मान दिया उसके लिए मैं आपका दिल से आभारी हूँ। 

Comment by Sushil Sarna on December 23, 2014 at 11:15am

आदरणीय डॉ गोपाल नरायन श्रीवास्तव जी आपके स्पष्टीकरण ने मेरी सृजनशीलता को जो मान दिया है उसके लिए मैं आपका दिल से आभारी हूँ। कृपया भविष्य में अपने अनुजों का ऐसे ही मार्गदर्शन करते रहें। बाकी हाँ मैं गीतिका छंद और ग़ज़ल को उसके नियमों के अनुसार लिखने का अवशय प्रयत्न करूंगा और इस दिशा में आप जैसे अग्रजों का सहयोग चाहूंगा। धन्यवाद। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 23, 2014 at 8:42am

आदरणीय सुशील भाई , बढिया रचना हुई है , आपको दिली बधाइयाँ ।

Comment by somesh kumar on December 22, 2014 at 11:34pm

जो कुछ भी है सुंदर है और भावपूर्ण है और मैं भी अभी" फ्री वर्स " में ही दिलो-शुकून पता हूँ |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 22, 2014 at 8:18pm

आदरणीय सुशील सर आपकी रचनाओं में प्रवाह तो रहता है भाव भी दिलकश होते हैं, इस रचना के लिये सादर बधाई, आपके और आदरणीय डॉ गोपाल नारायण सर के बीच कुछ अच्छी चर्चा हुई है।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 22, 2014 at 6:10pm

आदरनीय  सरना जी

हिन्दी कीछंद विधा के अतिरिक्त भी कोई   गीतिका है इसका ज्ञान मुझे नहीं था i इस  गीतिका का मीटर  तो आपने दिया है पर इसका परिचय कहा उपलब्ध है ? मेरी जानकारी के लिये बताएं i फ्री वर्स वही है जिसे आप  स्वतंत्र लेखन कह रहे है उसमे कवि का अपना  मीटर चलता  है i आप अपनी कविता के प्रति आश्वस्त  रहे उसमे कोई कमी नहीं है i सादर i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Thursday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service