For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - 52

परम आत्मीय स्वजन,

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 52 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह हिन्दुस्तान के मशहूर शायर उस्ताद-ए-मोहतरम जनाब एहतराम इस्लाम साहब की एक बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल से लिया गया है| पेश है मिसरा-ए-तरह

 

"फिजाएं नूर की चादर बिछाती हैं दिवाली में"

1222  1222  1222  1222

मुफाईलुन  मुफाईलुन   मुफाईलुन   मुफाईलुन  

(बह्रे हजज़ मुसम्मन सालिम)

रदीफ़ :- हैं दिवाली में 
काफिया :- आती (बिछाती, उठाती, मुस्कुराती आदि )

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 24 अक्टूबर दिन शुक्रवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 25 अक्टूबर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन से पूर्व किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | ग़ज़लों में संशोधन संकलन आने के बाद भी संभव है | सदस्य गण ध्यान रखें कि संशोधन एक सुविधा की तरह है न कि उनका अधिकार ।

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो  24 अक्टूबर दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 8563

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरणीया वंदना जी आपकी ग़ज़ल बेहद खूबसूरत अशआर से सजी हैं, इस लाजवाब ग़ज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाई

बहुत आभार आदरणीय 

सजी दहलीज कंदीलें बुलाती हैं दिवाली में

कतारें नवप्रभावर्ती रिझाती हैं दिवाली में-----बहुत सुन्दर मतला 

 

अमा की रात में कैसे लिखे वो छंद पूनम के

हुनर ये दीपमालाएं सिखाती  हैं दिवाली में-----शानदार 

 

भुलाकर रिश्तों के बंधन डटें हैं सीमा पर भाई-----सीमा में माँ की मात्र क्या गिरा सकते हैं कुछ संशय है ,वैसे बहुत ही खूबसूरत शेर कहा है 

तो बहनें  चैन की बंसी बजाती हैं दिवाली में------

 

जले दीपक से दीपक तो खिले है खील सा हर मन

तो गलियाँ गाँव की हमको  बुलाती हैं दिवाली में-----गाँव की दिवाली किसे याद नहीं आएगी 

 

दिये को ओट में रखकर नयन के ज्योतिवर्धन को

ख़ुशी से माँ मेरी काजल बनाती हैं दिवाली में-----माँ के साथ मेरे विचार से तो है आना चाहिए क्यूंकि आपने शुरू में मेरी लिखा है देवी माँ के लिए भी है आता है हमेशा 

जला कब दीप है बोलो निरी माटी की यह रचना

उजाले बातियाँ स्नेहिल सजाती हैं दिवाली में-----बहुत शानदार 

 

अकेले भी करो कोशिश अगर तम को हराने की

सफलताएँ सगुन-मंगल मनाती हैं दिवाली में---क्या कहने 

 

हठीली आग रख सिर पर निभाती है कसम कोई-----शम्मा का ये बिम्ब बेहद मनमोहक लगा ...वाह्ह्ह 

फिज़ाएं नूर की चादर बिछाती हैं दिवाली में ----

 

अनूठा दृश्य रचते हैं कतारों में सजे दीपक

विभाएं शुद्ध अनुशासन दिखाती है दिवाली में----क्या कहने 

बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है प्रिय वन्दना जी,दिली दाद क़ुबूल फरमाएँ  

 

आदरणीया राजेश दी आपकी विस्तृत टिप्पणियों से अभिभूत हूँ आपने चर्चा के लिए जो बिन्दु लिए हैं उन पर आप सभी गुणीजन जैसा आदेश करें सीखने को मिलेगा

हाँ माँ से हमारा सम्बन्ध बहुत निकट का होता है अत: तू का प्रयोग होता है और एकवचन का भी लेकिन सम्मानजनक भाव में बहुवचन का प्रयोग गलत नहीं होगा जैसे माँ बुलाती होंगी |'मेरी 'शब्द से जुड़ा होने के कारण  उसके एकवचन  होने की अनिवार्यता नहीं रहती ...बाकी विस्तार से बात हो तो पता चल पायेगा 

आपके कहे में तार्किक तथ्यात्मकता है, आदरणीया वन्दनाजी.. 

बहुत २ आभार आदरणीय सौरभ सर यह तो  इस कार्यशाला की विशेषता है और हमारा सौभाग्य कि हम सभी को आप वरिष्ठ सदस्यों के अनवरत मार्गदर्शन में सीखने को मिलता रहता है  

अकेले भी करो कोशिश अगर तम को हराने की

सफलताएँ सगुन-मंगल मनाती हैं दिवाली में ---   क्या बात है !!!

बहुत २ आभार आदरणीय अजीत सर 

सजी दहलीज कंदीलें बुलाती हैं दिवाली में

कतारें नवप्रभावर्ती रिझाती हैं दिवाली में--- नवप्रभावर्ती जैसा शब्‍द पिरोना चकित करता है 

 

अमा की रात में कैसे लिखे वो छंद पूनम के

हुनर ये दीपमालाएं सिखाती  हैं दिवाली में -- क्‍या बात है; बस यही कला तो सभी ने सीखनी चाहिये

 

भुलाकर रिश्तों के बंधन डटें हैं सीमा पर भाई

तो बहनें  चैन की बंसी बजाती हैं दिवाली में -- बेशक़ - कोई तो जागता होगा कि हम सब चैन से सोये। 

 

जले दीपक से दीपक तो खिले है खील सा हर मन

तो गलियाँ गाँव की हमको  बुलाती हैं दिवाली में -- बेशक़, निकल तो आये हैं हम दूर मिट्टी से बहुत लेकिन अभी तक याद आती है नमी उसकी फि़जां उसकी

 

दिये को ओट में रखकर नयन के ज्योतिवर्धन को -- नवप्रभावर्ती की तरह ही ज्योतिवर्धन जैसा शब्‍द पिरोना चकित करता है 

ख़ुशी से माँ मेरी काजल बनाती हैं दिवाली में-- आपने याद दिलाया कि किस प्रकार सरसों के तेल के दिये का धुआं समेटा ताजा था ज्योतिवर्धन के लिये। 

जला कब दीप है बोलो निरी माटी की यह रचना

उजाले बातियाँ स्नेहिल सजाती हैं दिवाली में -- बहुत खूब; गहरी बात है दार्शनिक संदर्भ में 

 

अकेले भी करो कोशिश अगर तम को हराने की

सफलताएँ सगुन-मंगल मनाती हैं दिवाली में -- बेशक। बहुत खूबसूरत 

 

हठीली आग रख सिर पर निभाती है कसम कोई

फिज़ाएं नूर की चादर बिछाती हैं दिवाली में - क्‍या बात है; क्‍या बात है। 

 

अनूठा दृश्य रचते हैं कतारों में सजे दीपक

विभाएं शुद्ध अनुशासन दिखाती है दिवाली में -- लाजवाब 

पूरी ग़ज़ल बाकमाल है। हृदय से अनुमोदन 

निश्शब्द हूँ आदरणीय सर आप के द्वारा इतना मान पाकर ....ईश्वर मेरे पैरों को जमीन मत छोड़ने देना ||

इस बेहतरीन ग़ज़ल के सभी शेर.. हाँ सभी शेर.. मंत्र-मुग्ध कर रहे हैं, आदरणीया वन्दना जी.   इसके आगे और क्या कहूँ !

दिल से ढेर सारी बधाई लें और ऐसे ही रचनाकर्म पर सतत रहें.. 

दिवाली की शुभकामनाएँ.. 

आप वरिष्ठ सदस्यों के मार्गदर्शन को समर्पित है यह रचना सर

कम लिख पाने की बैचैनी हमेशा रहती है कि ओबीओ परिवार से कितना कुछ सीखा जा सकता है पर .... 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब.दूध और मलाई दिखने को साथ दीखते हैं लेकिन मलाई हमेशा दूध से ऊपर एक…"
59 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. लक्षमण धामी जी "
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय, बृजेश कुमार 'ब्रज' जी, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, एक साँस में पढ़ने लायक़ उम्दा ग़ज़ल हुई है, मुबारकबाद। सभी…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आपने जो सुधार किया है, वह उचित है, भाई बृजेश जी।  किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितनेख़मोश रात…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"इतने वर्षों में आपने ओबीओ पर यही सीखा-समझा है, आदरणीय, 'मंच आपका, निर्णय आपके'…"
13 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी मंच  आपका निर्णय  आपके । सादर नमन "
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"आदरणीय सुशील सरना जी, आप आदरणीय योगराज भाईजी के कहे का मूल समझने का प्रयास करें। मैंने भी आपको…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"अनुज बृजेश  किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितनेख़मोश रात  बिताएं उदास  हैं कितने …"
15 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"ठीक है आदरणीय योगराज जी । पोस्ट पर पाबन्दी पहली बार हुई है । मंच जैसा चाहे । बहरहाल भविष्य के लिए…"
15 hours ago

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"आ. सुशील सरना जी, कृपया 15-20 दोहे इकट्ठे डालकर पोस्ट किया करें, वह भी हफ्ते में एकाध बार. साईट में…"
15 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
15 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service