For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिया जरे दिन रात हे पीऊ

जिया जरे दिन रात हे पीऊ

तड़प के रात बिताऊं

----------------------------------

भोर उठूँ जब बिस्तर खाली

गहरी सांस ले मन समझाऊँ

दुल्हन जब कमरे से झाँकू

पल-पल नैन मिलाती

अब हर आहट बाहर धाती

'शून्य' ताक बस नैन भिगोती

फफक -फफक मै रो पड़ती पिय !

फिर जी को समझाती

जी की शक्ति आधी होती

दुर्बल काया कैसे दिवस बिताऊं ?

जिया जरे दिन रात हे पीऊ

तड़प के रात बिताऊं

========================

वदन जले गर्मी दिन उस पर

भीगी जाऊं कितनी बार नहाऊँ

पुरवैया भी जिया जलाती

पछुआ सी हर अंग भिगोती

कब अंगना कब बाहर जाऊं

घूम-झाँक फिर मन मसोस घर आऊँ

नैन मिले ना कान्हा तेरा

बावरा मनवा कैसे मन समझाऊँ

जिया जरे दिन रात हे पीऊ

तड़प के रात बिताऊं

======================

कोयल स्वर भी कर्कश लागे

पपीहा पीऊ पीऊ चिल्लाये

बाग़ गली कुंजन बौरों की

सुषमा मन ना भाये

ना श्रृंगार ना बनना -ठनना

बौराई मै इत-उत धाऊँ

नैन की चितवन छेड़-छाड़ सब

मुझे कचोटेँ कुछ भी भूल ना पाऊँ

जिया जरे दिन रात हे पीऊ

तड़प के रात बिताऊं

====================

सास -ससुर की सेवा करती

कभी रसोई साफ़ -सफाई

दिन भर मन भरमाऊँ

खालीपन खाता मेरे मन को

सोच-सोच हे ! पल-पल सिहरी जाऊं

दीपक -बाती जिया जरायें

सेज -सुहाग तो अति तड़पाये

कुम्हलाये अब फूल अरे दिल !

बन बहार हरियाली आ जा

सावन आये -अब तो ना रह पाऊँ

जिया जरे दिन रात हे पीऊ

तड़प के रात बिताऊं

======================

मौलिक व अप्रकाशित" 

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर ५ '

कुल्लू हिमाचल

भारत

४.५०-५.१८ पूर्वाह्न

३०.५.२०१४

Views: 703

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 13, 2014 at 9:48pm

प्रिय सौरभ भाई आप की प्यारी प्रतिक्रिया और गहन भाव युक्त एक एक शब्द मन को छू गए सच कहा आप ने
सरल भाव ग्राह्य और यादगार होते थे और हैं इसीलिए मैंने एक जगह लिखा था
क्लिष्ट कुटिल ना भाएं मन को
जीवन तो यूं ही धांधा है
आभार प्रोत्साहन हेतु
भ्रमर ५


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 9, 2014 at 11:16pm

आपके इस गीत ने आंचलिक गीतों के उस दौर की याद दिला दी जब गीत ही संवेदनाओं और हार्दिक भावनाओं की अभिव्यक्ति के अन्यतम साधन हुआ करते थे. जन-भावनाओं की अभिव्यक्तियाँ सरस और सहज हुआ करती थीं, उनसे हुए निवेदन क्लिष्ट नहीं हुआ करते थे. शिल्प का बन्धन ग्राह्य हुआ करता था.  साहित्यिक-संप्रेषणों में जिस तरह से सनातनी गीतों को हाशिये पर रखे जाने का चक्र चला, कि प्रस्तुतियों से नैसर्गिक माधुर्य का लोप ही होता जा रहा है.

इसभोले और सरस गीत के लिए हृदय से बधाई आदरणीय.

सादर

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 8, 2014 at 8:07pm

प्रिय डॉ आशुतोष जी प्रियतम के विरह को दर्शाती ये रचना आप को भायी आप ने सराहा ख़ुशी हुयी
आभार
भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 8, 2014 at 8:06pm

प्रिय जितेंद्र जी रचना विरह वेदना को दर्शा सकी लिखना सार्थक रहा
आभार
भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 8, 2014 at 8:05pm

प्रिय शिज्जु जी आप की बधाई सर आँखों पर कृपया अपना प्रोत्साहन बनाये रखें
भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 8, 2014 at 8:04pm

भारतीय नारी के कपोत-व्रत को प्रकट करते है। अच्छी जानकारी मिली आप से डॉ गोपाल जी रचना आप को अच्छी लगी और आप ने सराहा
ख़ुशी हुयी
भ्रमर ५

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 7, 2014 at 2:53pm

आदरणीय भ्रमर जी बिरह की दशा को चित्रित करती एक शानदार रचना ..मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 6, 2014 at 11:33pm

virah vedna ko bahut hi sundrta se bayan karti panktiyan, badhai sweekaren aadrniy surendra ji


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 6, 2014 at 7:50pm

बहुत सुंदर आदरणीय सुरेन्द्र भ्रमर जी  लाजवाब हार्दिक बधाई स्वीकार करें

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 6, 2014 at 12:42pm

भ्रमर जी

आपने  विरह के पांच  चित्र  दिए  i वर्णन बड़े स्वभाविक है i भारतीय  नारी के कपोत-व्रत को प्रकट करते  है i   आपको बधाई i  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service