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खेलते शतरंज (कामरूप छंद) // --सौरभ

(कामरूप छंद  9-7-10 की यति)
======================
सेवक कभी थे  अब ठगें ये     नाम ’नेता’ तंज !
भोली प्रजा की   भावना से     खेलते शतरंज !!
हर चाल इनकी  स्वार्थ प्रेरित     ताकि पायें राज ।
पासा चलें हर  सोच कर ये        हाथ आये ताज ॥

झाड़ू घड़ी गज     सूर्य पत्ते     कमल सैकिल हाथ..
सबके अलग हैं  चिह्न लेकिन     लूट के दम साथ ॥
व्यवहार में हैं   छल-कपट पर      ये बनें मासूम ।
सेवा कहाँ की ? शुद्ध धंधा !     है हमें मालूम ॥

दायित्व पालन  की जरूरत     देश को दिन-रात ।
ऐसे समय में  कर रहे हैं     गालियों में बात  ॥
हर गाँव-सूबे   लोग ऊबे     किन्तु हो मतदान ।
जनता सजग है  खूब लेगी     ईवियम पर तान  !!

**********
--सौरभ
**********

(मौलिक और अप्रकाशित)

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 1, 2014 at 11:18am

सादर धन्यवाद, आदरणीया.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 1, 2014 at 8:02am

आदरणीय सौरभ जी 

सियासती जोड़ तोड़, चाल ढाल, आचरण सब को सुन्दरता से समुच्चय में प्रस्तुत किया है आपने तीन बंद में...

शिल्प और आतंरिक शब्द संयोजन देखते ही बनता है..

बहुत खूबसूरती और समरसता से शिल्प पर कसा है आपने कहन को...

इस छंद के विधान पर एक सशक्त उदाहरण सदृश लगी यह प्रस्तुति 

आपको बहुत बहुत बधाई 

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 28, 2014 at 10:48pm

इस प्रस्तुति पर अपने विचार प्रस्तुत करने केलिए सभी पाठकों और आत्मीयजनों को हार्दिक धन्यवाद

सादर

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 26, 2014 at 2:19pm

आदरणीय सौरभ सर ..वर्तमान परिप्रेक्ष्य का बखूबी चित्रण करती शानदार रचना ,,जनता को नेताओं के चिरित्र से रूबरू कराती इस शानदार रचना के लिए सादर बधाई ..सादर प्रणाम के साथ 

Comment by Atendra Kumar Singh "Ravi" on April 26, 2014 at 9:37am

अति सुन्दर कामरूप छंद रचना आज की परिस्थिति को लेकर ...आदरणीय सर जी आपको दिली बधाइयाँ

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on April 25, 2014 at 1:40pm

आदरणीय सौरभ् भाईजी

व्यवहार में हैं   छल-कपट पर      ये बनें मासूम ।
सेवा कहाँ की ? शुद्ध धंधा !     है हमें मालूम ॥ 

भ्रष्ट नेताओं की दुरंगी चाल , चेहरा और चरित्र का सटीक वर्णन पहले और दूसरे छंद में 

तीसरे छंद में मतदाता को भी  सही  सलाह ,

चुनावी माहौल में सुंदर कामरूप छंद की  हार्दिक बधाई 

Comment by Tilak Raj Kapoor on April 23, 2014 at 9:52pm

हिन्‍दी साहित्‍य से छंद शास्‍त्र लगभग ग़ायब हो चला था जो फिर पल्‍लवित होता दिख रहा है और खूबसूरती यह कि देश-काल का संदर्भ समेटे है।

मनोहारी प्रस्‍तुति के लिये बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 23, 2014 at 9:08pm

आदरणीय सौरभ भाई , बहुत सुन्दर कामरूप छंद रचना ,  हम सीखने वालों के लिये उदाहरण स्वरूप है । आपको दिली बधाइयाँ ॥

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 23, 2014 at 6:31pm

बहुत प्रभाव पूर्ण सामयिक विषय पर इस विधा में छंद पूर्व में ध्यान में नहीं कभी पढ़े हो | एक नहीं विधा से जानकारी हुई है |

हार्दिक साधुवाद आदरणीय 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 23, 2014 at 10:02am

बहुत सुन्दर... सामयिक विषय पर क्या खूब साधा है छंद दिल से बधाई आपको आ० सौरभ जी. 

कृपया ध्यान दे...

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