For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : जब से तू निकली दिल से हम सरकारी आवास हो गये

जुड़ो जमीं से कहते थे जो, वो खुद नभ के दास हो गये

आम आदमी की झूठी चिन्ता थी जिनको, खास हो गये

 

सबसे ऊँचे पेड़ों से भी ऊँचे होकर बाँस महोदय

आरक्षण पाने की खातिर सबसे लम्बी घास हो गये

 

तन में मन में पड़ीं दरारें, टपक रहा आँखों से पानी

जब से तू निकली दिल से हम सरकारी आवास हो गये

 

बात शुरू की थी अच्छे से सबने खूब सराहा भी था

लेकिन सबकुछ कह देने के चक्कर में बकवास हो गये

 

ऐसे डूबे आभासी दुनिया में हम सब कुछ मत पूछो

नाते, रिश्ते और दोस्ती सबके सब आभास हो गये

 

शब्द पुराने, भाव पुराने रहे ठूँसते हर मिसरे में

कायम रहे रवायत इस चक्कर में हम इतिहास हो गये

---------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 606

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 11:44pm

आदरणीय Saurabh जी, क्या कहूँ। बस आपकी टिप्पणी बार बार पढ़ रहा हूँ। बहुत बहुत शुक्रिया। स्नेह बना रहे

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 11:43pm

वीनस जी, इस कदर तारीफ़ के लिए तो शुक्रिया अदा करने को शब्द नहीं मिलेंगे। तह-ए-दिल से आभारी हूँ।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 11:42pm

बहुत बहुत शुक्रिया rajesh kumari जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 11:39pm

बहुत बहुत धन्यवाद Dr.Prachi Singh जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 11:38pm

बहुत बहुत शुक्रिया विजय मिश्र जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 11:38pm

बहुत बहुत धन्यवाद अरुन शर्मा 'अनन्त' जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 11:35pm

बहुत बहुत धन्यवाद SANDEEP KUMAR PATEL जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 11:34pm

तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ जितेन्द्र 'गीत' जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 11:33pm

बहुत बहुत धन्यवाद Neeraj Kumar 'Neer' जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 22, 2013 at 11:28pm

बहुत बहुत धन्यवाद गिरिराज भंडारी जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"धन्यवाद"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"ऑनलाइन संगोष्ठी एक बढ़िया विचार आदरणीया। "
8 hours ago
KALPANA BHATT ('रौनक़') replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"इस सफ़ल आयोजन हेतु बहुत बहुत बधाई। ओबीओ ज़िंदाबाद!"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"बहुत सुंदर अभी मन में इच्छा जन्मी कि ओबीओ की ऑनलाइन संगोष्ठी भी कर सकते हैं मासिक ईश्वर…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion

ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024

ओबीओ भोपाल इकाई की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी…See More
Sunday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ठीक है "
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"शुक्रिया आ सादर हम जिसे अपना लहू लख़्त-ए-जिगर कहते थे सबसे पहले तो उसी हाथ में खंज़र निकला …"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"लख़्त ए जिगर अपने बच्चे के लिए इस्तेमाल किया जाता है  यहाँ सनम शब्द हटा दें "
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service