पहला प्रयास है ,निसंकोच समझा दीजिए
धरती के चिथड़े हुए ,जल बिन सब बेजान |
खाली बर्तन ले सभी ,भटक रहे इन्सान ||
गर्मी से सूखा बढ़ा , जल की हाहाकार |
अफरा तफरी है मची ,प्यासे है नर नार ||
ताल भये सूखे सभी, पारा बढता जाय |
खाली गागर ले फिरे, पानी नजर न आय ||
मिनरल वाटर कंपनी ,धार रूप विकराल |
पानी सारा ले उडी ,जन जन है बेहाल ||
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
जल बिन कैसे कल पड़े, जल बिन कल का होय
आपके दोहे पडकर इंद्र भगवान प्रसन्न हो गए , वर्षा हो गयी है
आदरणीय अशोक कुमार raktale जी आपने सुंदर दोहा रच कर उत्साह बढाया है आभार
संदीप कुमार पटेल जी शुभाशीष
चारों दोहे छंद सुन, ताप न आवे पास |
बादल नभ पर हैं घिरे, अब वर्षा की आस ||
आदरणीया सरिता जी बहुत सुन्दर दोहे रचे हैं सादर बधाई स्वीकारें.छंद कर्म पर निरंतरता बनाए रखें. सादर.
पाठक सस्वर बाँचते, चारों दोहा छंद
घोर ग्रीष्म साझा करें, सरिताजी के बंद
हृदय से बधाई स्वीकारें, आदरणीया.. .
सफल प्रयास हेतु शुभ-कामनायें........निर्दोष दोहे......
बहुत ही सुंदर दोहे रचे हैं आदरणीया आपने सदर बधाई स्वीकरें
सभी आदरणीय जनों का हार्दिक आभार मेरा उत्साहवर्धन करने के लिए ,post करते हुए डर रही थी ,यहाँ बहुत गुणीजन बैठे हैं पता नहीं कैसी प्रतिक्रिया आएगी परन्तु सब ने जो उत्साह बढाया है आगे कुछ भी रचना post करने में मेरा आत्मिक बल बढाएगा और मेरी लेखनी को प्रबल करने में सक्षम होगा ,तह दिल से सभी का शुक्रिया ,मार्गदर्शन करते रहें
सादर
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