For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रामानुज के छोटे भाई शिवशंकर अन्तरिक्ष संचार विभाग में कार्यरत थे |विभाग के उपमहा प्रबंधक धोकलराम पंवार ने शिवशंकर को आकाशपुर की स्टेशनरी फर्मो से निविदाए एवं साथ में बंद लिफाफे एकत्रित कर प्रस्तुत करने का कार्य करने का निर्देश दिया | डी.जी.एम् धोकलराम पंवार को उसने बताया कि उसकी सेवा निवृति होने में अब 15 माह का समय ही शेष बचा है, अतः यह कार्य किसी अन्यसे सम्पादित करावे | डी.जी.एम्. पंवार ने कहा कि सेवा निवृति से पूर्व,मै चाहता हूँ कि आप भी लाभ ले लो,फिर आपकी इमानदार छवि के चलते किसी को कोई शंका भी नहीं होगी | आप १५ अगस्त को सम्मानित भी हुए है |आपको तो निर्देशानुसार गाडी में जाकर चुनिन्दा फर्मो से कागजात और उनके द्वारा दिया गया लिफाफा लाकर हमें सुपुर्द कर देना है | आपके ना करने पर आपका आकाश नगर से स्थानान्तरण भी हो सकता है | शिवशंकर ने अपने अग्रज रामानुज से सलाह की | रामानुज ने राय दी कि टेंशन पालने से तो अच्छा है,स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति लेलो |
.
4-5 दिन बाद ही रामानुज और शिवशंकर कि वयोवृद्ध एवं बीमार माताजी का निधन हो गया |तीये कि बैठक में विभागीय लोगो के साथ आये डी.जी.एम् पंवार को शिवशंकर ने बताया कि "उसे माताजी की अस्थियाँ लेकर आज रात्रि को ही हरिद्वार जाना है और 15 दिन के अवकाश पर है |"डी.जी.एम् ने कहाँ कि आप २ दिन का समय निकालकर फर्मो से कागजात लेकर ड्राइवर को सुपुर्द कर दे ताकि जी एम् सा. को रिपोर्ट बनाकर अनुमोदन कराया जा सके |
.
पंवार सा. के बार-बार मोबाईल आनेलगे,फिरचालक गाडी लेकर आ गया, जबकि घर पर गीताजी के पाठ हो रहे थे | आख़िरकार शिवशंकर एक फ़र्म से सामग्री संग्रह कर दूसरी फ़र्म के पास जा ही रहा था कि पंवार सा. ने सूचना दी कि शिवशंकर पहले चंद्रलोक डिपों जाओ,वहां तुम्हारा परिहार इंतज़ार कर रहे है, शीघ्र ही वे चंद्रलोक डिपों पहुंचे,जहाँ जाते ही परिहार ने कहाँ मै आपका इंतजार ही कर रहा था, जल्दीमें हूँ,ये नोट गिन लो | शिवशंकर ने कहाँ कि मुझे तो बंद लिफाफा संग्रह कर लाने का आदेश है | श्री परिहार बोंले,मै जल्दी मेंहूँ, तभी तो पंवार सा.से आपको फोन कर पहले बुलवाया है |शिवशंकर जैसे ही नोट गिनकर जेब में रखने लगा, ए.सी.बी स्टाफ ने रंगे हांथों पकड़ लिया और हाथ में नोटों पर पाउडर लगे होने से जेब भी लाल हो गयी | मौके पर बरामदगी में नोट, लिफाफे सहित शिवशंकर को डी जी एम् पंवार के घर लेकर गए जहाँ पंवार नोट व् लिफाफा लेकर पलंग कि चद्दर के नीचे रखने लगा | झट ए.सी.बी स्टाफ ने पंवार को रंगे हाथो रिश्वत के रुपये बरामद होने पर ट्रेप कर लिया | आदतन प्रातः 5 बजते ही अखबार में रामानुज ने प्रथम प्रष्ट पर ही अन्तरिक्ष संचार विभाग के अधिकारियो के पकडे जाने और शिवशंकर से मौके पर ही रंगे हाथो नोट बरामदगी की खबर पढ़ी तो रामानुज के होश उड़ गए | न्यायालय में पेशी में वकील ने कहाँ कि शिवशंकर की माताजी के निधन के कारण वह तो अवकाश पर था,जहाँ डी.जी.एम्.पंवार ने जरूरी कार्य बताते हुए शिवशंकर पर दबाव डालकर यह कार्य करवाया |
.
5 वर्ष बाद न्यायाधीश ने फैंसले में टिपण्णी की 'इस मामले से लगता है,भ्रष्टाचार ऊपर के आधिकारियों की भूख के चलते हो रहा है, और कनिष्ठ वर्ग के कंधे पर बन्दूक रखी जाती है | फिर भी कोर्ट में तो रंगे हाथों पकडे जाने वाले कर्मचारी को मुख्य अभियुक्त बनाना भ्रष्टाचार निरोधक विभाग की मजबूरी है | इस केस से जाहिर होता है कि भ्रष्टाचार की जड़े हमारे देश में उच्च पदों पर बैठे नेताओ और आधिकारियों में निहित है | बड़ी बड़ी मुर्गियाँ बच जाती है, और हलाल होती रहती है छोटी छोटी मुर्गियाँ" |

Views: 1899

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 15, 2012 at 10:07am

आदरणीय अम्बरीश श्रीवास्तवजी भ्रस्ताचार की जड़े काटने हेतु भावी पीढ़ी को  सन्देश देने का मेरा चुल्लू भर प्रयास है,आपकी सराहना की लिए  के लिए हार्दिक धन्यवाद | प्र.स.की टिपण्णी पर गौर करने के सुझाव पर तो मेरा दायित्व है ही, गंभीरता से लेने के अतिरिक्त क्या मै आपसे भावी रचना पर राय ले सकता हूँ  ?

Comment by Er. Ambarish Srivastava on August 14, 2012 at 10:56pm

भाई लक्ष्मण जी ! भ्रष्टाचार की जड़े बहुत ही गहरी हैं .....इन्हें बेनकाब करती हुई अच्छी कहानी लिखने का प्रयास  किया है आपने ......बहुत बहुत बधाई मित्र ......कृपया प्रधान संपादक जी की प्रतिक्रिया पर भी ध्यान  दें !

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 14, 2012 at 12:11pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी और शुभ्रांशु  पाण्डेय जी 'भ्रष्टाचार की जड़े' कहानी के संबंध में आपके आपके विचार मेरे लिए बड़े सार्थक है | कथानक को शब्द शब्द करने का, और 'बड़ी मुर्गीयाँ ही नहीं, लोमड़ियों का भी जमावड़ा' इस कहानी रुपी कथानक को आप द्वारा दिए गए प्रमाणपत्र से मै पुकरत हुआ | आदरणीय योगराज जी के सुझाव/आदेश मेरी भावे धरोहर है, जिन्हें संभालते हुए सुधार करने का प्रयास करूँगा | आप सभी का हार्दिक धन्यवाद |  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 14, 2012 at 9:05am

अपील करते कथानक को आपने शब्दबद्ध किया है लक्ष्मण भाईजी. इस सघन प्रयास के लिये बहुत-बहुत बधाई.

आदरणीय योगराज भाई के सुझाव समीचीन हैं. अमल करने पर किसी भी लेखक की लेखनी समृद्ध हो सकती है.

सादर

Comment by Shubhranshu Pandey on August 14, 2012 at 8:05am

डी.जी.एम्. पंवार ने कहा कि सेवा निवृति से पूर्व,मै चाहता हूँ कि आप भी लाभ ले लो,फिर आपकी इमानदार छवि के चलते किसी को कोई शंका भी नहीं होगी | आप १५ अगस्त को सम्मानित भी हुए है

यहाँ पर बड़ी मुर्गीयाँ ही नहीं, लोमड़ियों का भी जमावड़ा है...एक सुन्दर कथानक. ....

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 13, 2012 at 8:45pm
स्नेहिल श्री सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर'जी,'भ्रष्टाचार की जड़े' कहानी  पर आपकी 
टिपण्णी मेरे लिए उत्साहवर्धक है | हार्दिक धन्यवाद | 
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 13, 2012 at 8:39pm

आदरणीय श्री योगराज प्रभकर जी, आपने जो बिंदु सुझाए है, वे मेरे लिए मेरे हित में और साहित्यिक मंच का स्तर बनाए रखने के लिए प्रधान संपादक की द्रष्टि से भी बहुत जरूरी और उपयोगी है | इसके लिए आपका हार्दिक आभारी हूँ और पूर्ण रूप से पालन करने का प्रयास करूँगा | सादर | 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 13, 2012 at 6:58pm

शिवशंकर जैसे ही नोट गिनकर जेब में रखने लगा, ए.सी.बी स्टाफ ने रंगे हांथों पकड़ लिया और हाथ में नोटों पर पाउडर लगे होने से जेब भी लाल हो गयी | मौके पर बरामदगी में नोट, लिफाफे सहित शिवशंकर को डी जी एम् पंवार के घर लेकर गए ..

आदरणीय लक्ष्मण जी सटीक लेख सामजिक परिदृश्य को दिखाते हुए काश लोग इनसे भरपूर बचें बड़ी मछलियाँ छोटी को निगल तो लेती ही हैं उन पर नजर रखा जाए और कानून अधिक लचीला और ढीला न हो तो आनंद और आये 
आदरणीय योगराज जी के  सुझाव पर गौर करियेगा और थोडा रचना को और समय दीजियेगा बधाई 
भ्रमर ५ 

 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on August 13, 2012 at 4:49pm

श्री लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला जी,


आपका उत्साह एवं मंच के प्रति संलग्नता स्तुत्य है, अत: आपकी इस कहानी के सम्बन्ध में कुछ सुझाव दे रहा हूँ: 

१. रचना में हर पात्र का नाम लेना या लिखना आवश्यक नहीं होता. आप इतने ज्यादा नाम कहानी में ठूंस देते हैं कि बंदा नामों में ही उलझ कर रह जाता है.

२. केवल सीधी सादी और सपाट बयानी कहानी नहीं होती इस तरह से तो रचना केवल बात होकर रह जाती है, अत: उस में कला का भी एक पक्ष होता है, जो यहाँ नदारद है. 

३. कहानी या कोई अन्य रचना केवल रनिंग में टाईप किया करें, अनावश्यक "एंटर" करने से गद्य और पद्य का घालमेल हो जाता है.

४. रचना पोस्ट करने से पहले भाषाई त्रुटियाँ अवश्य देख लिया करें. शायद भविष्य में ऐसी त्रुटियाँ प्रबंधन की तरफ से ठीक न की जाएँ और रचना सीधे अस्वीकृत ही कर दी जाए.

५. कहानी या रचना का शीर्षक जब एक बार मेन विंडो में (Post Title) दे दिया गया तो रचना के ऊपर दोबारा से शीर्षक लिखनेकी आवश्यकता नहीं होती.

६. रचना पोस्ट करने से पहले किसी एक्सपर्ट की राये ले लिया करें.  

सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
21 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service