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कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ

२१२२ १२१२ २२/११२

तमतमा कर बकी हुई गाली

कापुरुष है, जता रही गाली

 

भूल कर माँ-बहन व रिश्तों को
कोई देता है बेतुकी गाली

 

कुछ नहीं कर सका बुरा मेरा
खीझ उसने उछाल दी गाली 

 

ढंग-व्यवहार के बदलने से
हो गयी विष बुझी वही गाली
 
कब मुलायम लगी कठिन कब ये
सोचना कब दुलारती गाली
 
कौन कहिए यहाँ जमाने में
अदबदा कर न दी कभी गाली
 
नाज से तुम सहेज कर रखना
संस्कारों पली-बढ़ी गाली
***
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Saurabh Pandey 3 hours ago

प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. 


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Comment by गिरिराज भंडारी 20 hours ago

आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले तारीफ़ है , सभी  शेर  सामयिक और सार्थक लगे , ख़ास कर ये दो शेर , 

कुछ नहीं कर सका बुरा मेरा
खीझ उसने उछाल दी गाली  

कब मुलायम लगी कठिन कब ये
सोचना कब दुलारती गाली

ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाईयाँ 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on Saturday

आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपसे मिले अनुमोदन हेतु आभार

Comment by Chetan Prakash on Friday

मुस्काए दोस्त हम सुकून आली

संस्कार आज फिर दिखा गाली

 

वाहहह क्या खूब  ग़ज़ल ' गाली' हुई।  हार्दिक बधाई,  आदरणीय,  भाई  सौरभ पाण्डेय  जी !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on Wednesday

आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 2, 2025 at 1:36pm

आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई है। बहुत बहुत हार्दिक बधाई।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 30, 2025 at 11:14am

आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार

Comment by Sushil Sarna on August 29, 2025 at 9:17pm

वाह आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी एक अलग विषय पर बेहतरीन सार्थक ग़ज़ल का सृजन हुआ है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें सर ।

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