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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - १६ (Now closed with 740 Replies )

परम आत्मीय स्वजन,

"OBO लाइव महाउत्सव" तथा "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता में आप सभी ने जम कर लुत्फ़ उठाया है उसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत है "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - १६ और इस बार का तरही मिसरा १२ अक्टूबर १९३८ को दिलवालों की नगरी दिल्ली में जन्मे प्रसिद्ध शायर जनाब निदा फ़ाज़ली साहब की गज़ल से हम सबकी कलम आज़माइश के लिए चुना गया है | तो आइये अपनी ख़ूबसूरत ग़ज़लों से मुशायरे को बुलंदियों तक पहुंचा दें |

"ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो"

ज़िन्दगी क्या/ है किताबों/ को हटा कर/ देखो

2122            1122       1122        22 

फाएलातुन / फएलातुन / फएलातुन / फैलुन
रमल मुसममन मख़बून महज़ूफ़


कफिया: आ की मात्रा ( हटा, बना, सजा, बजा, मिला, बचा, भगा... आदि )
रदीफ   : कर देखो

विनम्र निवेदन: कृपया दिए गए रदीफ और काफिये पर ही अपनी गज़ल भेजें | अच्छा हो यदि आप बहर में ग़ज़ल कहने का प्रयास करे, यदि नए लोगों को रदीफ काफिये समझने में दिक्कत हो रही हो तो आदरणीय तिलक राज कपूर जी की कक्षा में यहाँ पर क्लिक कर प्रवेश ले लें और पुराने पाठों को ठीक से पढ़ लें| 

मुशायरे की शुरुआत दिनाकं २७ अक्टूबर दिन गुरूवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक २९ अक्टूबर दिन शनिवार के समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा |


अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक १६ जो तीन दिनों तक चलेगा,जिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन स्तरीय गज़लें ही प्रस्तुत की जा सकेंगीं | साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती   है :

 

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

 

( फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो २७ अक्टूबर दिन गुरूवार लगते ही खोल दिया जायेगा )

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योगराज प्रभाकर
(प्रधान सम्पादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन 

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Replies to This Discussion

आभार X 100 ...:))

bahut badhia sir ji

Thanks....

आदरणीय राजेंद्र जी ! आपकी यह हज़ल बहुत ही खूबसूरत बन पड़ी है ! सारे के सारे शेर एक से बढ़कर एक हैं .....इस के लिए ख़ास तौर पर मुबारकबाद क़ुबूल करें ! :-)))))

 

 
Smiley MSN Emoticon hi 012.gif    आपका भी ख़ास तौर  से शुक्रिया ! Smiley MSN Emoticon hi 012.gif

क्या ज़रूरी है कि हर काम का कुछ हासिल हो

हरक़ते-फ़ालतू में वक़्त गंवा कर देखो    

सच कह रहे हैं राजेन्द्रजी, कभी -कभी फालतू में वक़्त गंवाने का  अपना ही एक मजा है ................. मूड बदलने के लिए साधुवाद..

आभार एवं शुभकामनाएं !

अभी अभी रिश्तेदारों के  यहां से लौटा हूं …

क्या अंदाज है राजेंद्र जी, मुझे खुद हास्य लिखना बड़ा मुश्किल लगता है। क्योंकि ऐसा हास्य जो सुने सुनाए चुटकुले की तुकबंदी न हो मेरे विचार में लिखना बड़ा कठिन है। इस मजाहिया ग़ज़ल के लिए दिली दाद कुबूल कीजिए

पते की बात कही आपने धर्मेन्द्र जी. मैं आपकी बात का अनुमोदन करता हूँ. 

शुक्रिया सौरभ जी, वरिष्ठ जनों का अनुमोदन मिलने से विचार का मन में आना सार्थक हो जाता है।

मैंने भी वही कहा कि हास्य या व्यंग्य लिखना सहज नहीं है.. मैं तो बुरी तरह से हाशिये पर हूँ इस मामले में. ..:-))

अद्भुत है आद राजेन्द्र भईया आपकी यह ग़ज़ल....

सादर बधाई...

 

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