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आज मम्मी जी पापा जी छोटे के लिए लड़की देखने जा रहे। हम दो भाई है, छोटे भाई का नाम अभिषेक है। मुझे तो बैंक जाना था, फरवरी मार्च दो महीने, बैंक से छट्टिया वैसे भी नहीं मिलतीं। सास- ससुर की लाड़ली बड़ी बहू उनके साथ जारही थी। बहुत खुश थी, बड़ी बहू-चयन का विशेष दायित्व जो मिल गया था। पापा जी ने तो कह दिया था, हम ठहरे पुराने जमाने के लोग, आजकल जो अपेक्षाएं, एक बहू से परिवार को हो सकती है तुम बेहतर जानती हो। ड्राईवर के आते ही कहा, गाड़ी लगाओ, रामबीर चार घंटे का रास्ता है । बारह बजे तक पहुँचना है, जिससे शाम तक लौट कर आ सकें। अभिषेक भी पहले से तैयार बैठा, तुम्हारा इंतजार कर रहा है। रास्ते भर पीछे की सीटों पर बैठे माँ, बेटे और बड़ी बहू ( मानसी ) होने वाली बहू में योग्यता के मानदंडों पर चर्चा करते रहे। रामबीर सुुनो, सैक्टर चार आ पहुुँचे है, बायीं और गली न. दो में मोड़ लो, पाँचवा मकान है, लड़की वालों का। पापा जी का यह निर्देश सुनते ही गाड़ी में पीछे बैठे माँ, बड़ी बहू और अभिषेक जैसे नींद से जाग बैठे हों, अब सँभल गए थे। साफ-सुथरा आवास था, परिष्कृत रुचि के लोग मालूम पड़ते थे, लड़की वाले। स्वागत कक्ष भी काफी विस्तृत , शायद बीस गुणा सोलह क्षेत्रफल रहा होगा। दीवारों पर कलाकृतियाँ सजीं थी। शालीन साज-सज्जा और आरामदेह सोफे। अभिषेक तो वाटर कलर की एक पैंटिंग को देखकर बिंध गया हो मानो। लड़की वालों को यह देखकर खासा अच्छा महसूस हुआ।लड़की की माँ ने बताया , यह पैंटिंग राखी ने स्वयं बनाई है। वाटर कलर पैंटिंग्स से लगाव है, उसे।


बिना विशेष देर किए जलपान अतिथियों के सामने रखा गया। ऱाखी ने आते ही मेहमानों का हाथ जोड़कर अभिवादन किया और अभिषेक के सामने बैठी थी। सो उठकर उसने पानी के गिलासों भरी ट्रे उठायी और अभिषेक की ओर बढ़ा दी। गिलास पकड़ते ही सर उठाया तो राखी से नजरे मिलीं। पानी का गिलास हाथ से गिरते- गिरते बचा। अभिषेक की कल्पनाओं से भी सुन्दर बाला उसकी बीवी बनने को प्रस्तुत थी। कद- काठी शिल्पा शेट्टी भी शर्मा जाए।और ऱाखी की शैक्षिक योग्यता..मानों सोने पर सुहागा। काश वह खुद अकेले अपनी होने वाली पत्नि का चुनाव कर पाता। उसकी तलाश पूरी हो चुकी थी.....

लेकिन वाह रे बुर्जुआ सोच... भाभी मानसी मम्मी जी को उठाकर एक ओर ले गयी थीं, कुछ विमर्श हुआ। फिर पापाजी से सलाह - मशविरा ...। अभिषेक स्वयं भी खड़ा हुआ और माता -पिता और भाभी जी के पास जा पहुँचा। भाभी जी के शब्द उसके कानों में गूँज रहे थे, हमे अभिषेक के लिए बहू चहिए माडल नहीं। मम्मी, पापा जी बडी बहू की हाँ में हाँ मिला रहे थे। लौटते हुए माता-पिता और भाभी जी ने परिवारके अन्य सदस्यों से भी परामर्श कर लें। तब फैंसला करेंगे, कहकर, लड़की वालों से विदा ली।

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मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Chetan Prakash on November 18, 2020 at 10:19pm

बंधु, बृजेश कुमार बृज शुभ सँध्या । लघु-कथा सार रूप में कथ्य की प्रस्तुति होती है। और, जनाब, शब्दों को संदर्भ में और वाक्य को उसके विन्यास और पूर्णता मे समझा जाता है, न कि संदर्भ से काटकर, अधूरे वाक्य उठाकर अर्थ का अनर्थ किया जाए । साभार

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 18, 2020 at 6:46pm

आदरणीय चेतन जी अन्यथा न लें...अगर गौर से पढता नहीं तो इतना लिखता नहीं..बहुत अच्छी लघु कथा लिख के निकल लेता।

खैर अपनी अपनी समझ है..जो आप कहना चाह रहे शायद मैं नहीं समझा...सादर

Comment by Chetan Prakash on November 18, 2020 at 6:20am

भाई बृजेश कुमार बृज, नमस्कार! आपने लघु कथा , "फैंसला" को ध्यान पूर्वक पढ़ा ही नही। कहानी आपको पुनः पढ़नी होगी, यदि आप वाकई अपने प्रश्नों का उत्तर चाहते है । एक बात और कहानीकार, कहानीकार ही होता है, कोई पात्र नहीं । वैसे भी लघु-कथा का मर्म कथ्य में खोकर ही पाया जा सकता है।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 17, 2020 at 8:32pm

कहानी तो अच्छी है आदरणीय लेकिन एक पाठक के तौर पे कुछ् बातें मुझे खटक रहीं।

पहली पंक्ति से स्पष्ट है कि कहानीकार बड़ा भाई है।लेकिन "काश वह खुद अपनी पत्नी का चुनाव कर पाता" "उसकी तलाश पूरी हो चुकी थी" जैसे वाक्यों से महसूस होता है जैसे छोटा भाई कहानीकार हो!! इसके अलावा "बड़ी-बहू चयन का दायित्व जो मिल गया था" बड़ी बहू तो वो स्वम है??

Comment by Chetan Prakash on November 9, 2020 at 8:09pm

मोहतरम जनाब समीर कबीर साहब, आदाब ! आपने लघुकथा "फैंसला" को पढ़कर तबसिरे की ज़हमत उठाई, इसके लिए दिल से आपका आभार ! तवालत की ओर आपने मुझे आगाह किया, मोहतरम, कथावस्तु के गठन हेतु ताना-बाना बुनना उपरोक्त बिषय-वस्तु के सम्यक वहन हेतु कदाचित बहुत ज़रूरी था। साभार !

Comment by Samar kabeer on November 9, 2020 at 6:25pm
जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, लघुकथा का प्रयास अच्छा है,लेकिन तवालत कुछ ज़ियादा हो गई है,बहरहाल बधाई स्वीकार करें ।

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