उतरा है मधु मास धरा पर
हर शय पर मस्ती छाई है !
जन गण के तन मन सुरा घुली
गुनगुनी धूप की चोट लगी
कली खुल, वन प्रसफुटित हुई,
मुस्काय बेला चमेली है !
उतरा है मधुमास धरा पर
हर शय पर मस्ती छाई है !!
कमल खिले हैं सरोवरों मेंं
मौज करे हम नावों में
मगन चिड़िया झील के तन हैं
वर बसन्त, प्रकृति मुस्काई है !
उतरा है मधुमास धरा पर
हर शय पर मस्ती छाई है !!
बाण चलाया कामदेव ने
घायल चम्पा गुलमोहर…
Added by Chetan Prakash on March 5, 2021 at 1:30am — 3 Comments
चम्पई गंध बसे मन, स्वर्णिम हुआ प्रभात ।
कौन बसा प्राणों, प्रकृति, तन - मन के निर्वात ।।
धूप हुई मन फागुनी, रजनीगंधा रात ।
नद-नाले मचलते वन,गंगा तीर प्रपात।।
रजत रश्मियाँ हँसे नद, चाँद झील के गात ।
काँप जाय है चाँदनी, बरगद हृदय आत ।।
पोर- पोर टेसू हुआ, प्राणों बसे पलाश ।
गुलाबी रंग मन अहा, घर नीला आकाश ।।
रंग - बिरंगी छटा वन, सतरंगा आकाश ।
इन्द्रधनुष रच रहा, पत्ती फूल पलाश।।…
Added by Chetan Prakash on February 28, 2021 at 1:30pm — 4 Comments
यह दुनिया है, या जंगल
आजकल पेशोपेश में हूँ,
इन्सान और जानवर का
भेद मिटता जा रहा है
मौका पाते ही इन्सान
हैवान बन जाता है
अकेले किसी अबला को
कही बेसहारा पाकर
कुत्तों सा टूट पड़ता है,
नोच डालता है अस्मत
किसी बेवा की, किसी कुंवारी की
परम्परा की बेड़िया काटकर शैतान
उजालों के अन्तर्ध्यान होने पर
बोतल से जिन्न निकलकर
विराट राक्षस होकर सड़क पर
आ जाता है,
मानवों का भक्षण करने
सड़क पर आ जाता…
Added by Chetan Prakash on February 12, 2021 at 1:30pm — 4 Comments
राधे इस बार गाँव लौटा तो उसने देखा कि उसके दबंग पड़ौसी ने वाकई उसके दरवाजे पर अपना ताला जड़ दिया था ।
दर असल जयसिंह उसे कहता, " काम जब करते ही शहर में हो तो मकान हमें दे दो" कभी कहता, " मान जाओ, नहीं तो तुम्हारे जाते ही अपना ताला डाल दूंगा ।"
राधे को एकाएक कुछ सूझा, बच्चों और पत्नि को वहीं खड़े रहने को कहा, खुद भागा-भागा अपने दोस्त करीमू के पास जा पहुँँचा और बोला, " भाई करीमू, चल, चल जल्दी कर, बच्चे ठंडी रात मे घर से बाहर खड़े है, ताला खोल" ! चाबी मुझ से रास्ते मे खो गयी, इस…
Added by Chetan Prakash on February 5, 2021 at 5:00pm — 2 Comments
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नज़र कहीं निशाना ताज़ हो रहा बवाल है
मदद नहीं किसान की गरीब घर सवाल है।
ज़मीं सदा इन्हीं की मौत है गरीब की यहाँ
वो मर रहा है भूख से जनाब याँ बवाल है।
कि आइये कभी गंगा तटों जमुन जहान में
वो ज़िन्दगी रहती कहाँ सनम कहाँ कवाल है।
लड़़ो मरो हक़ूक हित दिखाइये वो जख्म भी
जो माँगते थे मिल गया वो फिर कहाँ सवाल है ।
तुम्हारी ही बिरादरी तुम्हारे ही युवा जहाँ
जवान खौफ वो रहा…
Added by Chetan Prakash on February 4, 2021 at 6:30pm — 2 Comments
शेर की सवारी
और ज्यादा दिन
मौत है नजदीक तेरी
गिन रहा दिनमान है,
तोड़ देगा आन तेरी
यही उसका काम है
जिन्दगी देता अगर
मौत उसका फरमान है।
कहावते और मुहावरे
बुज़ुर्ग दे गये बावरे
सुनोगे उनको
गुनोगे सबको
जीवन सफल हो जाएगा
उद्धार होगा तुम्हारा
देश भी रह जाएगा
दोस्त,
कहानियाँ गर पढ़ो तो
तो पंचतंत्र की
जीवन अमृत हो जाएगा
तू अमर हो जाएगा
साथी,
परमार्थ भी हो जाएगा ।
धर्म हो या संस्कृति…
Added by Chetan Prakash on February 4, 2021 at 7:30am — 4 Comments
स्वार्थ रस्ता रोके बैठे है.....!
कई दिनों से सोन चिरैया
गुमसुम बैठी रहती है
देख रही चहुँ ओर कुहासा
भूखी घर बैठी रहती है
चौराहे पर बंद लगे हैं
स्वार्थ रस्ता रोके बैठे हैं !
कितने बच्चे कितने बूढ़े
कितनों के रोज़गार छिने हैं
लोग मर गए बिना दवा के
हार गए जीवन से हैं...
जंतर मंतर रोज रचे हैं
हँसते हँसते रो दे ते हैं !
तोड़ रहे कानून …
ContinueAdded by Chetan Prakash on February 2, 2021 at 2:02pm — 5 Comments
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आग़ाज मुहब्बत का वो हलचल भी नहीं है
आँखों में इजाज़त है हलाहल भी नहीं है।
क्या हिन्दू मुसलमाँ बना फिरता है ज़माने
इन्सान बनेगा कोई अटकल भी नहीं है ।
आसान नहीं होता जहाँ रोटी जुटाना,
तू मौज मनाता दुखी बेकल भी नहीं है |
क़मज़र्फ बने मत कि कमाना नहीँ पड़ता
मुँहजोर है औलाद उसे कल भी नहीं है |
है एक मुसीबत वो निभाने हैं मरासिम,
अब वक्त बचा क़म है, वो दल-बल भी नहीं…
Added by Chetan Prakash on December 5, 2020 at 7:30am — 2 Comments
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आग़ाज़ मुहब्बत का वो हलचल भी नहीं है
आँखों में इज़ाज़त है तो हलचल भी नही हैं
क्या हिन्दू मुसलमाँ बना फिरता है, ज़माने
ऐसी तो खुदाया यहाँ हलचल भी नहीं है
आसान नहीं होता जहाँ रोटी का कमाना
इस ओर तो तेरी कहीं हलचल भी नहीं है
क़मज़र्फ बने मत कि कमाना नहीं आता
औलाद ने उस ओर की हलचल भी नहीं है
है एक मुसीबत वो निभाने हैं, मरासिम
सुन वक़्त बचा क़म है वो हलचल भी…
Added by Chetan Prakash on December 3, 2020 at 7:00pm — 5 Comments
गोल -गोल होती है रोटी
गाँव-गाँव से शहर आता
आकर अपना खून बेचता
वो गँवार आदमी देखो तुम
रोटी खातिर महल बनाता |
गोल- गोल होती है रोटी...!
सच्चा कर्म-योगी वही है
प्याज-हरी धर खाता रोटी,
धरती माँ का पुत्र वही है
मोटी- मोटी उसकी रोटी |
गोल-गोल होती है रोटी..!
दुनिया बनी ये काज रोटी
बाल-ग्वाल कमा रहे रोटी
सारा शहर रचा हे, रोटी,
गाँव- गाँव बना है रोटी |
गोल-गोल होती है…
ContinueAdded by Chetan Prakash on December 3, 2020 at 7:26am — 3 Comments
कल मानव और विभा की शादी के दस वर्ष पूरे हो रहे थे। सो इस बार की मैरिज एनीवर्सरी विशेष थी। दाम्पत्य जीवन में कोई अभाव प्रकटतः तो विभा को नहीं था। दो बच्चे, बेटी मानसी और बेटा विशेष प्राइवेट स्कूल में पढ़ रहे थे। विभा एम, ए. बी. एड. थी, मिजाज़ से हाउस वाइफ थी। सारा दिन चौका बर्तन, सफाई, बच्चों की सुख-सविधा में कोई कमी न रहे इसमें निकल जाता था । हाँ मानव से ज़रूर उसे शिकायत थी। मानव एक कस्बे के महाविद्यालय में अंग्रेजी के प्रवक्ता थे। उनका ज्यादातर समय अध्ययन और अध्यापन में ही निकल जाता और बचता…
ContinueAdded by Chetan Prakash on November 29, 2020 at 6:00am — 3 Comments
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राज़ आशिक़ के पलने लगे हैं
फूल लुक-छिप के छलने लगे है
उनके आने से जलने लगे हैं
मुँह-लगे दिल तो मलने लगे हैं
कोई आता है खिड़की पे उसकी
रात में गुल वो खिलने लगे हैं
चल रही है मुआफिक हवा भी
बागवाँ फूल फलने लगे हैं
आज पूनम दुखी है बहुत सुन !
आँख में ख्वाब खलने लगे हैं
रंग सावन ग़जल आ घुले फिर
अब तो चेतन बदलने लगे हैं
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Chetan Prakash on November 23, 2020 at 6:30pm — 2 Comments
आज मम्मी जी पापा जी छोटे के लिए लड़की देखने जा रहे। हम दो भाई है, छोटे भाई का नाम अभिषेक है। मुझे तो बैंक जाना था, फरवरी मार्च दो महीने, बैंक से छट्टिया वैसे भी नहीं मिलतीं। सास- ससुर की लाड़ली बड़ी बहू उनके साथ जारही थी। बहुत खुश थी, बड़ी बहू-चयन का विशेष दायित्व जो मिल गया था। पापा जी ने तो कह दिया था, हम ठहरे पुराने जमाने के लोग, आजकल जो अपेक्षाएं, एक बहू से परिवार को हो सकती है तुम बेहतर जानती हो। ड्राईवर के आते ही कहा, गाड़ी लगाओ, रामबीर चार घंटे का रास्ता है । बारह बजे तक पहुँचना है,…
ContinueAdded by Chetan Prakash on November 8, 2020 at 7:00pm — 6 Comments
वीणावादिनी सरस्वती,
माँ शारदे भारती वर दे !
अँधकार की गर्द बढी है
सूरज की रौशनी घटी है
रतौँधी से ग्रस्त है मानव,
कवि की दृष्टि पड़ी धुँधली है
शिव-नेत्र -कवि हृदय जगा दे !
कि माँ शारदे रात जगा दे
जग से अँधकार मिटा दे
वर दे माँ शारदे वर दे !
तमसो मा ज्योतिर्गमय मंत्र
समस्त विश्व प्रसारित कर दे !
द्रोही हैं जो मानवता के
जन-धन की आवश्यकता के
चुन-चन कर संहार करो माँ
वंचित जन-मन…
Added by Chetan Prakash on October 29, 2020 at 1:00pm — 3 Comments
रोटी का जुगाड़
कोरोना काल में
आषाढ़ मास में
कदचित बहुत कठिन रहा
आसान जेठ में भी नहीं था.
पर, प्रयास में नए- नए मुल्ला
अजान उत्साह से पढ रहे थे...
दारु मृत संजीवनी सुरा बन गयी थी
सरकार के लिए भी,
कोरोना पैशैन्ट्स के लिए भी
और, पीने वालों का जोश तो देखने लायक था,
सबकी चाँदी थी...!
आषाढ़ तो बर्बादी रही..
इधर मानसून की बारिश
उधर मज़दूरो की भुखमरी
और, बेरोज़गारी.....
सच, मानो कलेजा मुुँह
को आ गय़ा...!…
Added by Chetan Prakash on July 11, 2020 at 1:00pm — No Comments
बाबू राम नाथ पचहत्तर पार कर चुके हैं। शरीर अब जवाब देने लगा है। अभी कई दिन पहले जरा डाॅक्टर से चैक-अप कराने गये थे कि देर तक धूप में खड़ा रहना पड़ा । घर लौटते तेज़ बुखार हो गया। बेटा संयोग से इस वीक एन्ड पर सपत्नीक चला आया। दोनों बहनें जो अपने बच्चों के गर्मियो की छुट्टियों में आयी हुईं थी।सो डाॅक्टर को घर बुला लाया।
"हीट स्ट्रोक हुआ है', ङाॅक्टर बोला था। दवा दे गया था। अब आराम था। लेकिन कमजोरी बहुत थी। लू मानो सारा खून चूस गई थी। बाथरूम भी मुश्किल से जा पाते थे।
अभी कल…
Added by Chetan Prakash on June 30, 2018 at 6:00pm — 14 Comments
नई सुबह का इन्तिज़ार
मुझे भी है.....
काले पीले पत्ते पेड़ों पर
सूखगए हैं, किसी नमी
आँखों में पानी नहीं है
हो गयी हैं निष्ठुर पीतल सी !
नई सुबह क्या बेहतर होगी
प्रश्न खड़ा है, मेरे सम्मुख
नये साल का मैं लिखूँ क्या
आमुख.......?
हर दिन एक नया दिन होता है
कल से आज सदा बेहतर होता है
निर्विवाद यह उक्ति अब तो
शरमाई सी अलग खड़ी है......!
नई सुबह का इन्तिज़ार भी
करना बेमानी है, यारो !
परिवेश जब इतना अंधकार मय है
पौ…
Added by Chetan Prakash on January 1, 1970 at 12:00am — 1 Comment
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